-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
ज़रा सोचिए-आपका मोबाइल फोन, जिसमें आपके सारे राज़, सारे पासवर्ड, सारा कच्चा-चिट्ठा है, वह किसी के हाथ लग जाए और उसके बाद वह आपको अपने इशारों पर नचाने लगे तो…?
ज़ी-5 पर आई इस फिल्म ‘लॉगआउट’ की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। सोशल मीडिया पर कंटैंट बना कर डालने वाले प्रत्यूष दुआ यानी प्रैटमैन को लगता है कि उसके एक करोड़ प्रशंसकों का रिमोट कंट्रोल उसके हाथ में है। लेकिन उसे असलियत का अहसास तब होता है जब एक दिन उसका फोन किसी लड़की के हाथ लग जाता है और अब प्रत्यूष का रिमोट कंट्रोल उसके पास है। वह जो चाहती है, प्रत्यूष को करना पड़ता है। और तभी होता है एक मर्डर…!
यह नए ज़माने की कहानी है। इसे आप टेक-थ्रिलर कह सकते हैं। सोशल मीडिया पर अपने फॉलोवर्स बढ़ाने के लिए कुछ भी ऊल-जलूल पोस्ट कर रहे कंटैट क्रिएटर्स के खट्टे, मीठे और कभी-कभी कड़वे किस्से हम-आप गाहे-बगाहे पढ़ते ही रहते हैं। यह फिल्म हमें उन लोगों की उस दुनिया में ले जाती है जो दूर से तो चमक-दमक भरी दिखती है लेकिन उसके अंदर का सच सिर्फ वे ही जानते हैं, या शायद वे भी नहीं जानते हैं। सोशल मीडिया पर किसी कंटैट क्रिएटर को फॉलो करने वालों को ‘लगता’ है कि वे उस क्रिएटर के फैन हैं और वह क्रिएटर उनका हीरो। लेकिन असलियत अक्सर इससे उलट ‘होती’ है। यह फिल्म इसी ‘लगने’ और ‘होने’ के फर्क को अंडरलाइन करती है।
एक अलग फ्लेवर वाली यह कहानी अपनी शुरुआत के कुछ ही पलों में एक मूड तय कर देती है और फिर यह उससे बाहर नहीं आती। फिल्म का अधिकांश हिस्सा एक कमरे में होने के बावजूद इसे देखते हुए आप बंध कर बैठते हैं और सोचते रहते हैं अपनी एक प्रशंसक द्वारा डिज़िटली अरेस्ट किया जा चुका एक सेलिब्रिटी आखिर इस पिंजरे से कैसे बाहर निकलेगा…! ‘काला पानी’ जैसी उम्दा वेब-सीरिज़ और ‘फाईटर’ जैसी मसालेदार फिल्म लिख चुके विश्वपति सरकार ने इस फिल्म में सोशल मीडिया के दीवाने और मोबाइल फोन के एडिक्ट हो चुके लोगों को निशाने पर लिया है और वह कामयाब भी रहे हैं। हालांकि यह भी लगता है कि वह थोड़े और मारक, थोड़े और कड़वे हो जाते तो बेहतर होता। निर्देशक अमित गोलानी ने भी सधे हाथों से स्क्रिप्ट को पर्दे पर उतारा है। यही कारण है कि कहीं-कहीं थोड़ी-सी हल्की व सुस्त पड़ने के बावजूद यह फिल्म जो कहने निकली थी, उसे कायदे से कह पाती है। यह फिल्म हर समय मोबाइल से चिपके रहने वालों को डराती भले ही न हो, समझाती ज़रूर है कि इस छोटे-से डिब्बे के भीतर बसे वर्चुअल वर्ल्ड से बाहर भी एक दुनिया है और दरअसल वही सच्ची दुनिया है। उसे जानिए, उसे जी लीजिए।
(रिव्यू : हवाई-वीरों की हवा-हवाई कहानी ‘फाईटर’)
फिल्म के अधिकांश हिस्से में स्क्रीन पर बाबिल खान हैं और एक बार फिर उन्होंने अपने अभिनय से प्रभावित किया है। अपने किरदार की विशेषताओं को समझ कर भावों का सटीक प्रदर्शन करना उन्हें आता है। लेकिन उन्हें अपनी संवाद-अदायगी में वैरायटी लाने की ज़रूरत है। यह ख्याल फिल्म के राइटर को भी रखना था कि दिल्ली-गुरुग्राम का एक पंजाबी युवा (जिसका सरनेम ‘दुआ’ हो), वह किस तरह से बोलेगा। कुछ पल के लिए आने वाली रसिका दुग्गल लुभाती हैं। निमिषा नायर, गंधर्व दीवान व बाकी कलाकारों ने भी अच्छा काम किया। फिल्म की लोकेशन फिल्म के मूड के मुताबिक है, कैमरा वर्क उम्दा है।
(वेब-रिव्यू : इंसानी फितरतों की उम्दा कहानी ‘काला पानी’)
अक्सर यह विलाप होता है कि हिन्दी वाले कुछ नया, कुछ हट के नहीं देते हैं और यहां तो बस हर मौसम में मसालों की ही बरसात होती है। यह फिल्म ‘लॉगआउट’ मसालों की उस बरसात से परे सचमुच कुछ नया, कुछ हट के, कुछ संजीदा, कुछ बढ़िया लेकर आई है। इसे देखिए, सराहिए और हो सके तो कुछ सीखिए, काम आएगा।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-18 April, 2025 on ZEE5
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)
इस फिल्म की मार्केटिंग को और बेहतरीन तरीके से करना चाहिए, वरना यह फिल्म भी भावेश जोशी और रमन राघव 2.0 की तरह ठंडे बस्ते में बंद होकर रह जाएगी।
लेकिन यह कहना भी गलत नहीं होगा कि इस फिल्म के दर्शक मुख्य टायर 1 सिटी के teenager होंगे इसलिए इस फिल्म की कमाई बहुत ज्यादा देखने को नहीं मिलेगी
Nice…. A lesson maximum to all of us…. No doubt in its message….