-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
हरियाणा के एक गांव का संयुक्त परिवार। परिवार के चहेते कर्ता-धर्ता महेंद्र को सबकी फिक्र रहती है। इस चक्कर में उसकी शादी करने की उम्र भी निकली जा रही है। अब कहीं जाकर उसका रिश्ता हुआ है। लेकिन…! उसका मंझला भाई जयबीर हिसार यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए एक लड़की को चाहने लगता है। लेकिन…! इन दोनों से छोटे लाड़ले जुगनू को इश्क हुआ है सीधे आलिया भट्ट से। और हद यह कि वह मुंबई उसके घर तक जा पहुंचता है। लेकिन…!
सैंसर बोर्ड से हिन्दी फिल्म का सर्टिफिकेट लेकर आई इस फिल्म के नब्बे प्रतिशत संवाद हरियाणवी भाषा में है। यह हरियाणा के किसी गांव के एक संपन्न परिवार की कहानी दिखाती है जिसमें इन तीनों भाइयों की प्रेम-कहानियों के साथ-साथ वहां के समाज के रीति-रिवाजों, तंग और खुली सोच, आपसी भाईचारे और वैमनस्य जैसी ढेरों बातें भी हैं। ये तमाम बातें और दिखाई गई घटनाएं ‘फिल्मी’ लगने की बजाय हरियाणा के ग्रामीण समाज की असल झलक दिखाती हैं और यही इस फिल्म की बड़ी सफलता है। हरियाणा के गांवों में जिस तरह की भाषा, बातचीत, हंसी-मजाक, मेल-मिलाप, मार-पीट, आंखों की शर्म, आपसी रिश्ते, पगड़ी की शान, अभिमान आदि पाया जाता है, यह फिल्म उन तमाम चीज़ों को उनके असल रूप में सामने लाती है। फिल्म में हर छोटे-बड़े को शराब का दीवाना दिखा कर भी यह फिल्म हरियाणा की एक कड़वी सच्चाई से ही रूबरू करवाती है। लेकिन…!
फिल्म लिखी बहुत ही कायदे से गई है। जिस सिचुएशन पर आप जैसे संवाद या घटना की उम्मीद करते हैं, लेखक संदीप बसवाना जैसे आपके मन को पढ़ कर ठीक वही लिख देते हैं। बरसों तक एक्टिंग करते रहे संदीप ने पहली बार लेखक-निर्देशक का चोला पहना है और बड़े ही सलीके के साथ फिल्म को बनाया है। सीन बनाना उन्हें बखूबी आता है और कई जगह आंखों को हल्का भिगोना भी। लेकिन…!
महेंद्र बने यश टोंक इस सहजता से अपने किरदार में उतरते हैं कि उनसे रश्क होने लगता है। एक्टिंग तो खैर, एक-एक कलाकार ने लाजवाब की है। छोटा-बड़ा, हर कलाकार अपने किरदार के साथ भरपूर न्याय करता नज़र आया है तो यह निर्देशक संदीप बसवाना की भी सफलता है। रॉबी मेढ़, आकर्षण सिंह, अश्लेषा सावंत, मोनिका शर्मा, सतीश कश्यप, हरिओम कौशिक जैसे सभी कलाकार उम्दा रहे हैं। फिल्म के गीत न सिर्फ अच्छे से लिखे गए हैं बल्कि उनका संगीत व गायन भी उम्दा है। कैमरा, लोकेशन भी नंबर वन है। लेकिन…!
दिक्कत दरअसल फिल्म के ‘कहन’ के साथ है। यह फिल्म दिखाती तो बहुत कुछ है लेकिन कहती क्या है या कहना क्या चाहती है, यह काफी देर तक स्पष्ट नहीं हो पाता। और यह कोई एक-दो बातें नहीं कहती बल्कि एक साथ सब कुछ समेटना चाहती है। हरियाणा के समाज में महिलाओं को हाशिये रखने की बात हो, जात-बिरादरी से बाहर मोहब्बत करने की, चुनावों के समय धौंस दिखाने की, आपसी अपनेपन की, शहरी माहौल के खोखलेपन की और ऐसी कितनी ही बातों को एक साथ एक ही जगह समेटने के फेर में यह फिल्म किसी एक दिशा में बढ़ने की बजाय चारों तरफ फैलने लगती है। इसकी ढाई घंटे की लंबाई इसके मिज़ाज से मेल नहीं खाती। अपने लिखे और फिल्माए हुए दृश्यों से थोड़ा मोह त्याग कर निर्देशक अगर इस फिल्म को दो घंटे तक सीमित रख पाते तो यह ज़्यादा कस कर अपनी बात कह पाती। कई जगह फिल्म की धीमी रफ्तार चुभने लगती है। जुगनू वाले ट्रैक को बहुत छोटा होना चाहिए था। फिर इसका नाम ‘हरियाणा’ भी तो कुछ स्पष्ट नहीं कर पाता कि यह किस रास्ते पर बढ़ना चाहती है। बावजूद इस कमी के यह एक प्यारी और मनोरंजक फिल्म है जो देखी जानी चाहिए।
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Release Date-05 August, 2022 in theaters.
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
प्रिय दीपक दुआ जी, हरियाणा की मिट्टी कि महक लिए हुए है “”हरियाणा ” लेकिन… लेकिन .. लेकिन काफी खामियों के बावजूद भी इसे देखा जा सकता है वैसे भी फिल्म चाहे जैसे भी हो रिव्यू तो शानदार ही लिखा होगा!
शुक्रिया
हरियाणा को पर्दे पर देखना हमेशा दिलचस्प होता है , लव हॉस्टल की सिहरन अभी तक है