-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
राजस्थान में कहीं भीतर एक छोटी-सी ढाणी में चाचा के साथ रह रहे परी और छोटू की है यह कहानी। अपनी आंखों की रोशनी खो चुके छोटू से बड़ी बहन परी ने वादा किया है कि उसके आने वाले नौवें जन्मदिन से पहले वह उसकी आंखें ठीक करवा देगी और वह धनक यानी इंद्रधनुष देख सकेगा। इनकी उम्मीदों के दूसरे सिरे पर है फिल्म स्टार शाहरुख खान जो वहां से बहुत दूर शूटिंग कर रहा है। एक रात ये दोनों शाहरुख से मिलने के लिए घर से निकल पड़ते हैं।
इस सफर में परी-छोटू दरअसल हमें भी अपने साथ ले जाते हैं। इन्हें जो अच्छे-बुरे किरदार मिलते हैं उनमें हम अपनी झलक देख सकते हैं। नागेश बड़ी ही सहजता से बिना कोई उपदेश दिए बताते हैं कि उम्मीद और कोशिशें मिल जाएं तो फिर कोई काम अधूरा नहीं रहता। नागेश कुकुनूर की फिल्मों का एक अलग ढर्रा और स्वाद होता है और यह फिल्म भी हमें उसी जाने-पहचाने स्वाद से रूबरू करवाती है।
कहीं-कहीं फिल्मी हो जाती यह कहानी शुरू से ही बांध लेती है। परी और छोटू के किरदार और उनकी आपसी चुहल लुभाती है। कई जगह हंसी भी छूटती है। राजस्थान के बंजर इलाके की एक अलग ही खूबसूरती नागेश सामने लेकर आते हैं।
हेतल गाडा और कृष छाबड़िया का उम्दा अभिनय और कहानी का सहज प्रवाह इस फिल्म की ताकत है। तापस रेलिया का संगीत मोहता है। इस किस्म की फिल्में उम्मीदें जगाती हैं-सिनेमा के प्रति, जीवन के प्रति और खुद अपने प्रति। इसे बाल-फिल्म समझ कर मत छोड़िएगा। कहीं मिल जाए तो देख लीजिएगा। आपके पैसे और वक्त बेकार नहीं जाएंगे।
अपनी रेटिंग-तीन स्टार
(मेरा यह रिव्यू फिल्म की रिलीज़ के समय किसी अन्य पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था।)
Release Date-17 June, 2016
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)