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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-टैगोर की दमदार कहानी पर हल्की ‘दरबान’

Deepak Dua by Deepak Dua
2020/12/05
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-टैगोर की दमदार कहानी पर हल्की ‘दरबान’
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

टैगोर की कहानियों पर अपने यहां अलग-अलग भाषाओं में कई फिल्में बन चुकी हैं। ज़ी-5 पर आई यह फिल्म टैगोर की 1918 में लिखी एक शॉर्ट-स्टोरी ‘खोकाबाबूर प्रत्याबर्तन’ पर आधारित है जिस पर बांग्ला में 1960 में इसी नाम से उत्तम कुमार और सुमिता सान्याल को लेकर एक फिल्म बन चुकी है। यह कहानी है एक अमीर आदमी के घर में नौकर का काम करने वाले रायचंद यानी रायचू की। उसका काम है उस आदमी के छोटे-से बच्चे की देखभाल करना। एक दिन रायचू उस बच्चे को घुमाने ले जाता है और बच्चा कहीं गायब हो जाता है। नदी में उसके जूते मिलते हैं लेकिन लाश नहीं। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि बेऔलाद रायचू उसे चुरा कर अपने घर ले गया। उधर रायचू लगातार पश्चाताप की आग में जल रहा है। अंत में वह इस से उबरने के लिए कुछ अनोखा ही कर बैठता है।

कहानी दमदार है और संवेदनशील भी। लेकिन इस कहानी को एक फिल्म के लायक स्क्रिप्ट में तब्दील करते हुए इसके लेखक बुरी तरह से चुके हैं। सिनेमा की अपनी एक अलग भाषा, अपनी एक अलग शैली होती है और इस फिल्म की स्क्रिप्ट न तो उस भाषा को पकड़ पाई पर न ही इसे बनाने वाले उस शैली को अपना सके। हालांकि मूल कहानी में कहीं-कहीं हल्के-फुल्के बदलाव किए गए हैं लेकिन फिल्म की मांग के हिसाब से ये बदलाव बहुत कमज़ोर और कम दिखाई देते हैं। कहानी में और ज़्यादा नाटकीयता, और ज़्यादा घटनाएं, और ज़्यादा संवेदनाएं डाल कर इसे रोचक और मज़बूत बनाया जा सकता था। फिल्म के शुरू, अंत और बीच-बीच में ढेर सारा नैरेशन है जिसे अन्नू कपूर ने प्रभावी तरीके से दिया है लेकिन सिनेमाई व्याकरण यह कहता है कि जिस कहानी को कहने के लिए बार-बार नैरेशन की ज़रूरत पड़े तो समझिए कि न तो लेखक उपयुक्त चीज़ें लिख पाया और न ही निर्देशक उसे कायदे से दिखा पाया। डेढ़ घंटे से भी छोटी फिल्म के लिए अगर आप कसी हुई कहानी नहीं लिख पा रहे हैं तो आपको इस कहानी को छूना ही नहीं चाहिए था। फिलहाल तो यह आधे घंटे का कोई एपिसोड सरीखी लगती है जिसे खींच कर और गाने डाल कर लंबा किया गया है। और हां, फिल्म के नाम का भी इसकी कहानी से कोई सीधा-नाता नहीं दिखता। ‘दरबान’ में ‘रक्षक’ वाला भाव है ही नहीं।

निर्देशक विपिन नाडकर्णी मराठी फिल्मों से आए हैं। वह राष्ट्रीय पुरस्कार भी पा चुके हैं। लेकिन इस फिल्म के दृश्यों को पर्दे पर उतारते समय उनके काम में वह दमखम नज़र नहीं आता कि उनके लिए तालियां बजाई जाएं।

फिल्म की दो अच्छी चीज़ों में से पहली है इसकी लोकेशन। बहुत ही खूबसूरत और लुभावनी जगहों पर इसकी शूटिंग की गई है। कैमरे ने भी उन जगहों को खूबसूरती से पकड़ा है। फिल्म की दूसरी और सबसे दमदार चीज़ है इसके कलाकारों का अभिनय। रायचंद के किरदार में शारिब हाशमी ने अपना पूरा ज़ोर दिखाया है। लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक फैले अपने किरदार की हर अवस्था को उन्होंने भरपूर जिया है और पुरस्कार पाने लायक काम किया है। फिल्म के बाकी कलाकार थोड़ी-थोड़ी देर के लिए ही पर्दे पर आए लेकिन सभी का काम अच्छा रहा, चाहे वह रसिका दुग्गल हों, फ्लोरा सैनी, शरद केलकर या हर्ष छाया।

इस किस्म की फिल्मों को टिकट लेकर थियेटरों में देखने का माहौल तो अपने यहां ज़्यादा नहीं है लेकिन ओ.टी. टी. मंचों के ज़रिए ऐसा सिनेमा दर्शकों तक पहुंच पा रहा है, यही बड़ी बात है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-04 December, 2020

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: bipin nadkarniDarbaan reviewflora sainirasika duggalsharad kelkarsharib hashmiZEE5दरबान
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