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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-देसी एंटरटेनमैंट देता ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज़’

Deepak Dua by Deepak Dua
2017/08/25
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-देसी एंटरटेनमैंट देता ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज़’
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

बाबू (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) आउटसोर्स करता है, यमराज के लिए। पैसे लेकर किसी को भी नीचे से ऊपर पहुंचाना उसका पेशा है। नेताओं और ठेकेदारों के इशारों पर वह किसी को भी टपका डालता है। फुलवा (बिदिता बाग) पर वह जान छिड़कता है। अचानक तस्वीर में आता है खुद को उसका चेला कहने वाला बांके (जतिन गोस्वामी)। अब दो-दो शूटर एक साथ कैसे रहें?

एकदम देसी टच लिए जमीनी किरदारों वाली प्यार, वासना, नफरत, छल-कपट और षड्यंत्रों से भरी कहानियां अब हिन्दी फिल्मों के लिए नई नहीं रहीं। ‘ओंकारा’, ‘इश्किया’, ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ जैसी उन फिल्मों की ही कतार में है यह फिल्म। निर्देशक से ज्यादा यह लेखक की फिल्म है। इसकी कहानी और स्क्रिप्ट से लेकर किस्म-किस्म के दिलचस्प किरदार गढ़ने में लेखक गालिब असद भोपाली की मेहनत और प्रतिभा साफ दिखती है। बाबू और बांके के बल खाते किरदारों के अलावा पुलिस वाले, राजनेता, उनके परिवार, बच्चे जैसे ढेरों छोटे-छोटे लेकिन रोचक किरदारों को यह फिल्म सामने लाती है और लेखक की ही काबिलियत है कि फिल्म खत्म होने के बाद भी वे याद रह जाते हैं। हां, कई जगह स्क्रिप्ट के झोल खाने का दाग भी लेखक के ही माथे पर लगेगा।

‘88 एन्टॉप हिल’ दे चुके निर्देशक कुषाण नंदी को लोग भूल चुके हैं। इस फिल्म से उनकी वापसी हुई है लेकिन इसे दमदार वापसी कहना गलत होगा। हां, फिल्म को एक जमीनी और यथार्थ लुक देने और तमाम किरदारों को साधे रखने के लिए वह तारीफ के पात्र हैं।

नवाजुद्दीन सिद्दिकी किसी भी किरदार को विश्वसनीय बना देते हैं। इस किस्म के रोल करने में तो उन्हें महारथ है। जतिन गोस्वामी साधारण भले रहे हों लेकिन आत्मविश्वास से भरपूर हैं। बिदिता बाग उभर कर सामने आती हैं। नवाज जैसे अभिनेता का वह भरपूर साथ देती हैं। अंतरंग दृश्यों में उनकी सहजता कमाल की है। अच्छे मौके मिलें तो वह हिन्दी सिनेमा में सशक्त पहचान बना सकती हैं। उनके किरदार में आए ट्विस्ट चौंकाते हैं। बाकी तमाम कलाकारों ने भी सधा हुआ काम किया है।

गीत-संगीत बहुत अच्छा है। गालिब असद भोपाली ने ‘ये बर्फानी रातें…’ में कमाल के शब्द पिरोए हैं। फिल्म का अंत भले ही अचानक आता हो लेकिन वही अंत टैगोर की एक रचना की धुन भी सुनाता है। फिर पूरी फिल्म में बजते पुराने फिल्मी गीतों से भी एक अलग किस्म का माहौल बनता है। दरअसल यही इस फिल्म की खूबी है कि यह जमीनी किरदार और भदेस माहौल तो दिखाती है लेकिन घटियापन के साथ नहीं। इस फिल्म को परिवार के साथ नहीं देखा जाएगा। इसे क्लास और मल्टीप्लेक्स वाला दर्शक भी शायद ही पसंद करे लेकिन इस फिल्म को सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता। नया भले ही कुछ न देती हो लेकिन इस किस्म की फिल्में पसंद करने वालों का मनोरंजन तो यह कर ही जाती है।

अपनी रेटिंग-तीन स्टार

Release Date-25 August, 2017

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: babumoshai bandookbaazbabumoshai bandookbaaz reviewbidita bagdivya duttaghalib asad bhopalijatin goswamikushan nandyNawazuddin Siddiquiबाबूमोशाय बंदूकबाज़’
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