-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
हिन्दी सिनेमा की सबसे लोकप्रिय, सबसे सफल, सबसे बिकाऊ लेखक जोड़ी सलीम-जावेद के बारे जानना दरअसल हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री की उन भुला दी गई गलियों से होकर गुज़रना है जिनके बारे में सुना तो लगभग सब ने है लेकिन जिन्हें देखा बहुत कम लोगों ने है। ‘एंग्री यंग मैन’ नाम से अमेज़न प्राइम पर आई यह डॉक्यूमैंट्री हमें उन्हीं गलियों में ले जाने का काम करती है।
सलीम खान जो इंदौर में जन्मे और मुंबई आए थे एक्टर बनने। वहीं ग्वालियर में जन्मे जावेद अख्तर जब इस शहर में आए तो उनका शुरुआती मकसद किसी डायरेक्टर को असिस्ट करना था। लेकिन वक्त ने इन दोनों को साथ कर दिया और देखते ही देखते सलीम-जावेद की जोड़ी हिट फिल्मों का ज़बर्दस्त फॉर्मूला बन गई। यह डॉक्यूमैंट्री बताती है कि कैसे इन दोनों ने फिल्मों के पोस्टरों पर अपना नाम छपवाने के लिए ज़िद की, जब कोई नहीं माना तो मुंबई शहर में लगाए जा चुके फिल्म ‘ज़ंजीर’ के पोस्टरों पर खुद ही अपना नाम पेंट करवा दिया। जब ‘शोले’ को समीक्षकों और फिल्मी पंडितों ने फ्लॉप करार दे दिया तो इन्होंने खुद एक विज्ञापन छपवाया और दावा किया कि यह फिल्म देश के हर वितरण क्षेत्र से एक करोड़ रुपए कमाएगी।
सलीम-जावेद, उन के परिवार वालों, उनके साथ काम कर चुके और उन्हें व उनके काम को देखते आ रहे लोगों के साथ बातचीत के ज़रिए यह डॉक्यूमैंट्री धीरे-धीरे इन दोनों के सलीम और जावेद से सलीम-जावेद बनने की कहानी तो सुनाती ही है, इनके अलग होने के बारे में भी बताती है कि कहीं कोई लड़ाई, कोई अदावत नहीं थी, बस इन्हें अलग होना था, हो गए। ठीक वैसे ही जैसे इन्हें साथ काम करना था, कर लिया।
लेकिन तीन एपिसोड की यह डॉक्यूमैंट्री पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर पाती। इसमें बातें ज़्यादा हैं, दृश्य कम। इसमें दिखाए गए तमाम लोग हिन्दी सिनेमा से जुड़े हुए हैं लेकिन ज़्यादातर ने अपनी बातचीत में हिन्दी बोलने से परहेज़ किया है। हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री का यह दुखद सत्य है। एक सीन में तो ‘ज़ंजीर’ का गलत उच्चारण करने वाली डायरेक्टर रीमा कागती को ज़ोया अख्तर ने टोका भी है। दूसरी कमी यह है कि इस डॉक्यूमैंट्री को बनाने वाले मुंबई से बाहर नहीं जाते। यह भी कह सकते हैं कि ये लोग सलीम-जावेद से जुड़े स्टार कलाकारों से भी आगे नहीं जाते। कुछ और लोगों से मिलना और सलीम खान के शहर इंदौर, जावेद के ग्वालियर, लखनऊ व भोपाल की झलकियां दिखाना इसे और समृद्ध बना सकता था। बावजूद इसके इस डॉक्यूमैंट्री की डायरेक्टर नम्रता राव ने इसकी पैकेजिंग बढ़िया की है जिसके चलते यह देखने लायक बन पड़ी है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-20 August, 2024 on Amazon Prime Video
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
सत्यता औऱ निष्पक्षता से लबालब रिव्यु….. यह डॉक्यूमेंटरी शायद अतीत क़े उन पन्नों को खोलने का काम करेगी जिसकी सच्चाई सभी जानना चाहते हैँ..