-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
1997 का ऋषिकेश शहर। विकी-विद्या शादी के बाद हनीमून के लिए गोआ गए जहां इन्होंने अपने अंतरंग पलों का एक वीडियो बनाया। घर लौट कर उस वीडियो की सीडी देखी, खुश हुए और सो गए। उसी रात एक चोर इनके घर से सीडी प्लेयर चुरा ले गया। उसी में थी वह सीडी जिसमें था इनका ‘वो वाला वीडियो’। अब अगर वह वीडियो दुनिया के सामने आ गया तो…? यहां से शुरू हुई तलाश। तो क्या इन्हें मिल पाया वह चोर…? वह सीडी प्लेयर…? वह वीडियो…?
किसी का ‘वो वाला वीडियो’ वायरल होने का चलन आज के स्मार्ट फोन और सोशल मीडिया के दौर से पहले भी था। होटलों के कमरों में छुपे हुए कैमरों से या युवाओं की खुद की नादानियों से ‘ऐसे-वैसे’ वीडियो बन जाने और यहां से वहां तक फैल जाने की कहानियां पहले भी सुनाई देती थीं। लेखक-निर्देशक राज शांडिल्य की यह फिल्म (Vicky Vidya Ka Woh Wala Video) हमें उसी दौर में ले जाती है। राज ने टीवी शो ‘कॉमेडी सर्कस’ के ढेरों एपिसोड लिखे हैं इसलिए उनके फिल्मी लेखन का कलेवर और फ्लेवर कमोबेश वैसा ही रहता है। बतौर निर्देशक अपनी फिल्मों ‘ड्रीमगर्ल’ व ‘ड्रीमगर्ल 2’ में भी उन्होंने यही ढर्रा अपनाया था। एक रोचक प्लॉट, ढेर सारे अतरंगी किरदार, हर कोई हाजिरजवाब, तू-तड़ाक, न उम्र का लिहाज न रिश्तों की शर्म और लगातार बदलता घटनाक्रम, ताकि दर्शक को सोचने-समझने का वक्त ही न मिले और वह दो-ढाई घंटे तक रुक-रुक कर हंसता रहे। मगर उसके बाद…? खेल खत्म, पैसा हजम। तू तेरे रस्ते, मैं मेरे रस्ते। यह फिल्म ‘विकी विद्या का वो वाला वीडियो’ (Vicky Vidya Ka Woh Wala Video) भी इसी राह पर चल रही है।
(रिव्यू-किसी सायर की गज्जल-‘ड्रीम गर्ल’…)
इस फिल्म (Vicky Vidya Ka Woh Wala Video) के पात्र लगातार बोल रहे हैं। क्या बोल रहे हैं, कान लगा कर सुनें तो कॉमेडी उपजती है। ये किरदार हैं भी अतरंगी। लड़की डॉक्टर है जिसने पूरी फिल्म में बस एक बार अपना कोट हाथ में लिया है। लड़का दो हाथों से मेंहदी लगाने में माहिर है। दादा जी एक आंख वाले कंजूस हैं, एक पोता स को फ बोलता है, लड़की का पिता सरदार है, मां बिहारिन है जो हर वक्त पान मसाला खाती है, लड़के की बहन चालू है, इंस्पैंक्टर को बवासीर है, चोर हैदराबादी है… वगैरह-वगैरह। एक कॉमेडी फिल्म का रैपर लपेटे हुए यह फिल्म (Vicky Vidya Ka Woh Wala Video) दरअसल एक किस्म का कॉमेडी सर्कस ही है जो छोटे पर्दे की बजाय बड़े पर्दे पर रचा गया है।
वैसे यह फिल्म (Vicky Vidya Ka Woh Wala Video) चाहती तो आज की पीढ़ी को यह संदेश दे सकती थी कि किसी कैमरे में अपने निजी पलों को कैद मत कीजिए, पछताना पड़ेगा। लेकिन इसने ऐसा नहीं किया और अंत में फिल्म को एक ट्विस्ट देकर जबरन सीक्वेल की राह पर खुला छोड़ दिया। अब चूंकि छोटी-सी कहानी से काम चल नहीं रहा था तो इसमें परिवार, रोमांस, हॉरर, थ्रिलर, मर्डर जैसे कई सारे मसाले डाले गए हैं ताकि दर्शकों के हर वर्ग को कुछ न कुछ भा सके। अब यह अलग बात है कि इन मसालों के चक्कर में मसला यह हो गया कि किसी भी मसाले का स्वाद उभर कर न आ सका। अंत में उपदेश की घुट्टी पिला कर हाजमा और खराब कर गई यह फिल्म।
राज शांडिल्य ने रोचक सिचुएशन्स बनाने और कहानी को 1997 के वक्त में फिट करने में मेहनत की है। बावजूद इसके कई जगह फिल्म (Vicky Vidya Ka Woh Wala Video) लड़खड़ाई है और जबरन खिंची हुई सी भी लगी है। यह तो इसके अतरंगी किरदार निभाने वाले कलाकारों ने इसे संभाले रखा वरना यह झेलाऊ भी हो सकती थी। राजकुमार राव, तृप्ति डिमरी, राकेश बेदी, अर्चना पूरण सिंह, टिक्कू तल्सानिया, सहर्ष कुमार शुक्ला, मुकेश तिवारी, हैदराबादी चोर मस्त अली जैसे कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों को ठीक से निभाया है। विजय राज़ सब पर भारी पड़े और उनके सहयोगी पुलिस वाले बने जितेंद्र हुड्डा बेहद नैचुरल। मल्लिका शेरावत तो अपनी जवानी के दिनों में ही नहीं सही जाती थीं, अब तो और ढल गई हैं।
इस फिल्म (Vicky Vidya Ka Woh Wala Video) को बनाने वाली कंपनी टी सीरिज़ ने गीत-संगीत में अपने बैंक से पुराने गानों का भर-भर कर इस्तेमाल किया है। दरअसल मकसद यही है कि थाली में 56 भोग परोस दो, किसी को कुछ तो किसी को कुछ और पसंद आ ही जाएगा। बस दिक्कत यही है कि सब कुछ एक साथ परोसने के फेर में इस थाली में रायता फैल गया है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-11 October, 2024 in theaters
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)
देखी……
लगा एक बार तो कॉमेडी सर्कस ही देख रहा हूं 1997 का…..
कॉमेडी ठीक लगी…… सोचने ही नहीं देती…. जो सोचा जाए कि यह कैसे पॉसिबल है…..
देखने के बाद याद आता है…. अर्रे यह भी था उसमें…..