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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-सत् और असत् का फर्क दिखाती ‘द वैक्सीन वॉर’

Deepak Dua by Deepak Dua
2023/09/28
in फिल्म/वेब रिव्यू
3
रिव्यू-सत् और असत् का फर्क दिखाती ‘द वैक्सीन वॉर’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

‘‘सृष्टि से पहले सत् नहीं था, असत् भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था। छिपा था क्या, कहां, किसने ढका था, उस पल तो अगम, अतल जल भी कहां था।’’

ऋग्वेद के नासदीय सूक्त को पूरा सुनें तो सृष्टि के उन गूढ़ रहस्यों के प्रति मानव के अतिसीमित ज्ञान के बारे में पता चलता है जिनके बारे में लोग आज भी ज़्यादा कुछ नहीं जानते। एक ऐसी स्थिति कुछ बरस पहले मानवता के सामने तब आई थी जब कहीं से आए एक वायरस ने पूरी मानव जाति को लाचार कर दिया था। मौत और मौत की आशंका सिरों पर नाच रही थी। वैसे माहौल में भी कुछ लोग थे जो खुद को भुला कर उस वायरस को दबोचने और परास्त करने के लिए एक वैक्सीन बनाने में दिन-रात लगे हुए थे। फिल्म बताती है कि यदि उस समय के अधिकांश लोगों की तरह उन वैज्ञानिकों ने भी अपने लक्ष्य से नज़र हटाई होती तो भारत की अपनी, सबसे बढ़िया वैक्सीन इतनी जल्दी न आ पाती, या शायद आ ही न पाती। यह फिल्म हमारे वैज्ञानिकों की उन कोशिशों को करीब से देखने-दिखाने आई है।

भारतीय वैक्सीन का निर्माण करने वाले वैज्ञानिकों के लीडर रहे डॉ. बलराम भार्गव की किताब ‘गोईंग वायरल’ पर आधारित यह फिल्म कई जगह डॉक्यूमैंट्री नुमा हो जाती है। लेकिन यहां बतौर लेखक विवेक अग्निहोत्री की तारीफ होनी चाहिए कि कैसे वह इस किस्म के ‘रूखे’ और ‘सूखे’ विषय को एक फीचर फिल्म की कहानी में ढाल लेते हैं और उन वैज्ञानिकों के संघर्ष के साथ-साथ उनकी कोशिशों, उनके रास्ते में आ रही बाधाओं, उनके जीवट और उनका ध्यान भटकाने में लगे कुछ तत्वों की हरकतों को उस कहानी में समेटते हुए दर्शकों को एक ऐसी मंज़िल पर ले जाते हैं जहां वह अपने वैज्ञानिकों पर, उनकी कोशिशों पर, उन कोशिशों से आए नतीजों पर और उन से भी बढ़ कर अपने भारत पर गर्व कर सकते हैं। यह फिल्म हमें गर्व महसूस कराने आई है।

कहने वाले कह सकते हैं कि यह फिल्म कोरोना काल के सिर्फ एक-दो पक्षों को ही दिखाती है। उन दिनों और भी तो बहुत सारी बातें, चीज़ें हो रही थीं, उन्हें क्यों नहीं दिखाती? लेकिन ऐसा तो कोरोना पर बनने वाली हर फिल्म के बारे में कहा जा सकता है। उन दिनों देश-समाज में जितना कुछ हो, घट रहा था उन सब को किसी एक फिल्म में समेट पाना नामुमकिन है। इतना ज़रूर है कि किसी को उन दिनों भी सिर्फ समस्याएं दिख रही थीं और बाद में किसी ने सिनेमा भी उन समस्याओं पर ही बनाया। मगर कुछ लोग थे जो उन दिनों भी हल खोजने में लगे थे। यह फिल्म उन हल खोजने वालों को सलाम करने आई है।

फिल्म में हर किसी ने उम्दा काम किया है। गिरिजा ओक, नाना पाटेकर और पल्लवी जोशी सबसे आगे खड़े हैं। निवेदिता भट्टाचार्य, अनुपम खेर, सप्तमी गौड़ा, मोहन कपूर, रायमा सेन आदि ने भी कसर नहीं छोड़ी है। लोकेशन और बैकग्राउंड म्यूज़िक फिल्म को प्रभावी बनाते हैं। इसकी लंबाई ज़रूर कुछ जगह अखरती है। संवाद जानदार हैं, मारक हैं। बहुत सारी वैज्ञानिक व तकनीकी शब्दावली व अंग्रेज़ी का इस्तेमाल इसे बांधता है। बावजूद इसके विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में यह फिल्म असर जमाने आई है।

बड़ी बात यह भी है कि यह फिल्म कोई राजनीति कमेंट नहीं करती। पूरी फिल्म में एक भी राजनेता का नाम, चेहरा या बयान नहीं है। जबकि ऐसा हो सकता था। बिना राजनीतिक सद्इच्छा के इतने कम वक्त में हमारे वैज्ञानिक इतना अच्छा परिणाम नहीं दे सकते थे, इसे दिखाया जाना चाहिए था। लेकिन तब कुछ लोगों को बड़े ज़ोर से मिर्ची लगती। हालांकि अभी भी इसे देख कर कुछ लोगों का धुआं निकलेगा। वह धुआं निकलना भी चाहिए। ये उसी तरह के लोग हैं जो उन दिनों भी जान-बूझ कर ऐसे सवाल उठाने में लगे हुए थे जिनसे उनका और उनके आकाओं का ही भला हो सकता था। यह फिल्म ‘गोईंग वायरल’ किताब के सत् के बहाने से उन असत् फैलाने वालों को जवाब देने आई है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-28 September, 2023 in theaters

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: anupam khergirija oakMohan Kapurnana patekarnivedita bhattacharyapallavi joshiraima sensapthami gowdaThe Vaccine WarThe Vaccine War reviewvivek agnihotri
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Comments 3

  1. Pawan Sharma says:
    2 years ago

    *किसी भी फिल्म की कहानी, कथ्य और फिल्मांकन वगैरह संबंधी, सिने-प्रेमियों की बहुत कुछ जानने की खुजली को, आपकी इस समीक्षा ने भी दूर किया है। *****👍
    -पवन शर्मा

    Reply
  2. NAFEESH AHMED says:
    2 years ago

    कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैँ जिनके बनाने का साहस “कुछेक” अग्निहोत्री जी जैसे ही कर पाते हैँ… मेरे कविता जगत के सबसे करीब कवि ‘श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ जी की कविता की सार पंक्तियाँ याद आ गयी जो मेरी ज़िन्दगी में भी मायने रखती हैँ :-

    “लीक पर वे चले जिनके चरण दुर्बल और हारे हैँ।
    हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैँ।।

    किसी भी फ़िल्म का रिव्यु एक आईने का काम करता है कि फ़िल्म कैसी है, काम कैसे किया गया है, काम कि गुणवत्ता क्या है, पार्श्व संगीत, गाने, निर्देशन और अभिनेताओं का चयन इत्यादि। रिव्यु पढ़कर ही पता चल गया कि ये फ़िल्म कुछ “लीक से हठकर ” और आज के सराबोर में अहम भूमिका निभाती है ।

    रिव्यु पढ़कर रिव्युकर्ता के बारे में इनकी निष्पक्षता, सटीकता और फ़िल्म जगत की बारिकियों की जानकारी से रूबरू कराता है।

    Reply
  3. B S BHARDWAJ says:
    2 years ago

    बहुत बेहतरीन तरीके से आपने इस फिल्म की समीक्षा की है दीपक जी, शानदार विश्लेषण हमेशा की तरह 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

    Reply

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