-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
सिनेमा के लिए लिखी गई हर कहानी बड़े पर्दे के लिए नहीं होती। होती, तो लंबे अर्से से बन कर रखी यह फिल्म काफी पहले रिलीज़ हो गई होती। एक सच और भी है कि सिनेमा के लिए लिखी गई हर कहानी पर ‘सिनेमा’ बन ही जाए, यह भी ज़रूरी नहीं। इसी कहानी को ही देखिए। कोलकाता में रह रहा तारिणी बंदोपाध्याय अखबार में विज्ञापन देख कर अहमदाबाद जा पहुंचता है जहां उसे एक ऐसे अमीर कारोबारी रतन गरोडिया को कहानियां सुना कर सुलाने का काम मिलता है जिसे नींद न आने की बीमारी है। कहानियां सुनने-सुनाने के दौरान इन दोनों की बातें इस फिल्म को एक अलग दिशा देती हैं।
फिल्मकार सत्यजित रे ने बतौर लेखक जो लोकप्रिय किरदार रचे उनमें एक पात्र तारिणी खुरो का भी था। इस किरदार को केंद्र में रच कर लिखी गईं उनकी ढेरों कहानियों में से आखिरी कहानी ‘गोल्पो बोलिए तारिणी खुरो’ यानी ‘कहानियां सुनाने वाला तारिणी अंकल’ थी। उसी लघु कथा को आधार बना कर तीन लेखकों ने इस फिल्म की पटकथा तैयार की है जिसमें इंसानी जीवन और दुनियावी पेचीदगियों के बारे में बातें हैं। लेकिन इस फिल्म के साथ दिक्कत यही है कि इसमें बातें ही बातें हैं। हालांकि ये बातें बुरी नहीं हैं और इन्हें ध्यान से सुना जाए तो ये कुछ बताती-सिखाती ही हैं।
कलाकारों का उम्दा अभिनय इस फिल्म का मज़बूत पक्ष है। गुजराती परेश रावल को बंगाली तारिणी के किरदार में देखना सुखद लगता है। वहीं गुजराती व्यवसायी के किरदार में आदिल हुसैन का अभिनय बेहद प्रभावशाली है। अपनी मुख मुद्राओं से वह अभिनय का पाठ पढ़ाते हैं। रेवती, तनिष्ठा चटर्जी, जयेश मोरे व अन्य कलाकार भी प्रभावी रहे हैं।
अपने साहित्यिक फ्लेवर और सुस्त रफ्तार के चलते यह फिल्म सिर्फ गूढ़ चीज़ें लिखने-पढ़ने-देखने वालों को ही भाएगी। इसे देखते हुए बहुत जगह ऐसा आभास होता है कि हम कोई सिनेमाई कृति नहीं बल्कि कोई रंगमंचीय प्रस्तुति देख रहे हैं। बहुत जगह इसे फास्ट फॉरवर्ड में देखने का मन भी होता है। डिज़्नी-हॉटस्टार पर आई निर्देशक अनंत महादेवन की यह फिल्म धीर-गंभीर मिज़ाज वाले फिल्म समारोहों की विषयवस्तु अधिक लगती है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-28 January, 2025 on Disney+Hotstar
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)