• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-क्या बुलशिट फिल्म बनाई है रे ‘देवा’…!

Deepak Dua by Deepak Dua
2025/01/31
in फिल्म/वेब रिव्यू
1
रिव्यू-क्या बुलशिट फिल्म बनाई है रे ‘देवा’…!
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

फिल्म ‘देवा’ का ट्रेलर बताता है कि किसी ने पुलिस के फंक्शन में घुस कर किसी पुलिस वाले को मारा है, अब पुलिस वाला यानी देवा उनके यहां घुस कर उनको मारेगा।

जी हां, इस इतना-सा ही ट्रेलर है। दरअसल इस फिल्म को बनाने वालों के पास इससे ज़्यादा बताने लायक कुछ था ही नहीं। चलिए, आगे का हम से सुनिए। फिल्म की शुरुआत दिखाती है कि देवा ने यह केस सुलझा लिया है कि उसके दोस्त पुलिस वाले को किस ने मारा। लेकिन इससे पहले कि वह किसी को कुछ बताए, उसका एक्सिडैंट हो जाता है और उसकी काफी सारी याद्दाश्त चली जाती है। लेकिन वह इस केस पर काम करता रहता है और आखिर पता लगा ही लेता है कि कातिल आखिर कौन है।

2013 में आई अपनी ही बनाई मलयालम फिल्म ‘मुंबई पुलिस’ का 12 साल बाद हिन्दी में रीमेक लेकर आए वहां के निर्देशक रोशन एन्ड्रयूज़ ने मूल फिल्म की कहानी में कुछ एक बदलाव करके कत्ल के एंगल को बदला है जो विश्वसनीय भी लगता है। लेकिन इस फिल्म की हिन्दी में पटकथा लिखने के लिए लेखकों की टीम ने जो मसालेदार हलवा तैयार किया है, उसने जलवा कम बिखेरा है, बलवा ज़्यादा मचाया है। इस फिल्म को देखते हुए पहला अहसास तो यह होता है कि इसे लिखने, बनाने वालों को न तो पुलिस डिपार्टमैंट की गहरी जानकारी है और न ही उनके काम करने के तौर-तरीकों की। अब चूंकि फिल्म लिखनी ही थी तो इन लोगों ने मिल कर अपनी सहूलियत के हिसाब से सीन गढ़े। जहां चाहा फिल्म में आधुनिक गैजेट्स दिखा दिए, जहां चाहा सी.सी.टी.वी. तक गायब करवा दिया। पुलिस वाले कभी बिना बुलैट प्रूफ जैकेट के एनकाऊंटर पर चल दिए तो कभी उन्हें बेसिक समझ से भी पैदल दिखा दिया।

कैरेक्टर्स को खड़ा करने में भी लेखक कन्फ्यूज़न का शिकार रहे हैं। फिल्म की हीरोइन को अपने हीरो देवा यानी ए.सी.पी. देव आंब्रे में एक मासूम बच्चा नज़र आता है जबकि देव गुंडा किस्म का है, वर्दी नहीं पहनता, हेलमेट नहीं लगाता, पड़ोसन के साथ रंगरेलियां मनाता है, ड्यूटी पर शराब पीता है और हर समय सिगरेट तो ऐसे पीता है जैसे किसी सिगरेट बनाने वाली कंपनी ने निर्माता सिद्धार्थ रॉय कपूर को स्पान्सर किया हो कि जनाब, आप फिल्म बनाइए, चले या न चले, इस फिक्र को धुएं में उड़ाइए। वैसे रॉय कपूर साहब, आपकी फिल्म के शुरू में पर्दे पर हिन्दी में जो ‘म्यूज़िक कंपोज़र’, ‘प्रोड्यूस्ड बाय’, ‘रिटेन बाय’, ‘डायरेक्टिड बाय’ लिखा हुआ आता है न, उसके लिए हिन्दी वाले बरसों से ‘संगीतकार’, ‘निर्माता’, ‘लेखक’ और ‘निर्देशक’ जैसे शब्द इस्तेमाल करते आ रहे हैं। खैर, जब फिल्म के नाम पर आप लोगों ने कचरे का ढेर ही खड़ा करना था तो उसके ऊपर हिन्दी की बिंदी लगाने से भी क्या हासिल होता।

फिल्म की रफ्तार धीमी है, कई जगह सीन बेवजह लंबे खिंचे हुए हैं। फर्स्ट हॉफ में उलझाती और सैकिंड हॉफ में बोर करती यह फिल्म बहुत सारी आधी-अधूरी घटनाओं का ऐसा उलझा हुआ मिश्रण परोसती है जो आपके भीतर जाकर गुड़गुड़ पैदा कर सकता है। निर्देशक रोशन एंड्रयूज़ साहब, हम हिन्दी वालों के पास अपना खुद का और अब तो आपके साउथ से भी आने वाला बहुत सारा कचरा मौजूद है, आप क्यों बेकार में एक और कीचड़ लेकर आ रहे हैं? यहां आकर बेइज़्ज़ती करवाने से अच्छा है कि वहीं इज़्ज़त से रहिए।

शाहिद कपूर की पर्सनैलिटी पर इस तरह के ‘कमीने’ किस्म के किरदार जंचते हैं। उन्होंने मेहनत भी की है। पूजा हेगड़े को हिन्दी वालों ने हमेशा से शो-पीस की तरह इस्तेमाल किया है, यहां भी यही हाल है। बेचारी कुबरा सैत कायदे से इस्तेमाल ही नहीं हो सकीं। पवैल गुलाटी, प्रवेश राणा आदि ठीक रहे। एक्शन कहीं-कहीं बढ़िया रहा और वी.एफ.एक्स कच्चा। बाकी, फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जिसकी बात की जा सके। सच तो यह है कि यह फिल्म नहीं बल्कि बुलशिट है। इसे फ्लश कर दिया जाना चाहिए।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-31 January, 2025 in theaters

(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)

Tags: devadeva reviewkubbra saitkubra saitpavail gulatiPooja Hegdepravesh ranaRosshan Andrrewsshahid kapoor
ADVERTISEMENT
Previous Post

रिव्यू-सुलाने का काम करता ‘द स्टोरीटैलर’

Next Post

रिव्यू-अपने वजूद की रेसिपी तलाशती ‘मिसेज़’

Related Posts

रिव्यू-सिंगल शॉट में कमाल करती ‘कृष्णा अर्जुन’
CineYatra

रिव्यू-सिंगल शॉट में कमाल करती ‘कृष्णा अर्जुन’

रिव्यू-चिकन करी का मज़ा ‘नाले राजा कोली माजा’
CineYatra

रिव्यू-चिकन करी का मज़ा ‘नाले राजा कोली माजा’

रिव्यू-मज़ा, मस्ती, मैसेज ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ में
CineYatra

रिव्यू-मज़ा, मस्ती, मैसेज ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ में

वेब-रिव्यू : झोला छाप लिखाई ‘ग्राम चिकित्सालय’ की
CineYatra

वेब-रिव्यू : झोला छाप लिखाई ‘ग्राम चिकित्सालय’ की

रिव्यू-अरमानों पर पड़ी ‘रेड 2’
CineYatra

रिव्यू-अरमानों पर पड़ी ‘रेड 2’

रिव्यू-ईमानदारी की कीमत चुकाती ‘कॉस्ताव’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-ईमानदारी की कीमत चुकाती ‘कॉस्ताव’

Next Post
रिव्यू-अपने वजूद की रेसिपी तलाशती ‘मिसेज़’

रिव्यू-अपने वजूद की रेसिपी तलाशती ‘मिसेज़’

Comments 1

  1. Nafees Ahmed says:
    3 months ago

    Excellent… Visited theater to watch this movie… found as a normal pic with new actors and actoress with some Tadak-Bhadak diaologue and Modern Police Man….

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment