-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
करीब चार साल पहले आई राइटर-डायरेक्टर जियो बेबी की मलयालम फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन किचन’ को खासी चर्चा, सराहना और सफलता मिली थी। उस फिल्म में शादी के बाद ढेरों अरमान लेकर आई नई बहू सिर्फ किचन तक सिमट कर रह जाती है। उसका टीचर पति स्कूल में परिवार की अवधारणा तो समझा लेता है लेकिन अपने घर में मालिक बना रहता है। बाद में यह फिल्म तमिल में भी इसी नाम से बनी थी। अब इसी फिल्म का यह हिन्दी रीमेक ‘मिसेज़’ नाम से ज़ी-5 पर आया है।
मायके में डांस करने और सिखाने वाली ऋचा अब नई बहू है। उसका पति महिलाओं का डॉक्टर है। घर के काम में हाथ तो दूर, उंगली तक नहीं बंटाता। नहाने के बाद उसका अंडरवियर तक अलमारी से पत्नी निकालती है। घर लौटता है तो घुसते ही अपना बैग पत्नी को पकड़ा देता है। कसूर उसका भी नहीं है। बचपन से ही उसने अपने पिता को यही करते और मां को उनकी चाकरी करते देखा है। ऋचा भी अब इस घर में सिर्फ किचन तक सिमट कर रह गई है। लेकिन उसे तो अपने वजूद की तलाश है। कैसे कर पाएगी वह अपने अरमानों को पूरा?
चूंकि यह फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन किचन’ का हूबहू रीमेक है तो उस फिल्म को देख चुके दर्शकों के लिए तो यह फिल्म बिल्कुल भी नई नहीं है। यह ज़रूर है कि वह फिल्म मलयालम में अंग्रेज़ी सब-टाइटल के साथ थी और यह हिन्दी में आई है। लिखने वालों ने इसे हिन्दी में रूपांतरित करते हुए नायक को स्त्रियों का डॉक्टर बना कर सटीक काम किया है। एक ऐसा व्यक्ति जिसे औरतों का शरीर तो ठीक करना आता है लेकिन अपनी ही पत्नी की शारीरिक इच्छाओं की उसके लिए कोई अहमियत नहीं। कहने को यह परिवार आधुनिक, अमीर और हाई-क्लास है लेकिन अपने घर की बहुओं को सिर्फ किचन तक सीमित रखना और खुद जूठे बर्तन तक उठा कर न रखना इनकी फितरत है। फिल्म दिखाती है कि किस तरह से ‘अब तो यह हमारी बेटी है’ कह कर दूसरे की बेटी को अपने घर की लक्ष्मी बना कर लाने वाले लोग उसे बस एक कामवाली बाई में तब्दील करके रख देते हैं और बहुतेरी औरतें इस ज़िम्मेदारी को खुशी-खुशी अपनी नियति समझ कर ज़िंदगी बिता भी देती हैं।
लेकिन इस फिल्म की लिखाई में पैनेपन की कमी खलती है। बार-बार किचन में कुछ न कुछ पकना और बार-बार ससुराल वालों का एक-सा रवैया फिल्म को एकरस बनाता है। रीमेक बनाते समय कुछ नई घटनाओं, कुछ नई कल्पनाओं का छौंक इस फिल्म को अधिक चटपटा बना सकता था। हम हिन्दी वालों को वैसे भी बकबके स्वाद वाला सिनेमा ज़्यादा नहीं भाता। संवादों को कस कर भी इस फिल्म को तीखा बनाया जा सकता था।
निर्देशक आरती कडव 2020 में एक कमज़ोर फिल्म ‘कार्गो’ दे चुकी हैं। इस बार उन्हें पहले ही आजमाई जा चुकी रेसिपी को फिर से बनाना था जिसे उन्होंने ठीक से बना दिया। वह अपनी तरफ से कुछ और मसाले बुरकतीं तो उनकी यह डिश बेहतर हो सकती थी। सो, उनके काम की गहराई को अगली किसी फिल्म में चखा जाएगा।
सान्या मल्होत्रा ने ऋचा के किरदार को जीवंत ढंग से निभाया है। निशांत दहिया, कंवलजीत व कुछ-कुछ देर को आए लवलीन मिश्रा, वरुण वडोला आदि शानदार रहे। गीत-संगीत साधारण रहा।
अपने दृश्यों के दोहराव और अपने नाम तक से साधारण लगती यह फिल्म दर्शकों को पूरी तरह से तृप्त नहीं कर पाती। फिर भी इसे उन लोगों को अवश्य देख लेना चाहिए जो समझते हैं कि घर की किचन सिर्फ औरतों के लिए है, मर्दों का वहां क्या काम…!
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Release Date-07 February, 2025 on ZEE-5
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)
Thanks for the Review….. Lot of films are available in Bollywood and Southern Cinema… Nothing New…. Just a Timepass movie.