-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
इंग्लैंड के छोटे-से शहर बकिंघमशायर में 10 साल के एक बच्चे की लाश एक पार्क में मिलती है। उसी पार्क में दो नशेड़ियों को देखा गया था। पुलिस को यकीन है कि इनमें से एक उस बच्चे का कातिल है। लेकिन शक तो कइयों पर है-घर वालों पर, पड़ोसियों पर, दोस्तों पर। और हर किसी के पास वजह भी है कत्ल की। लेकिन कौन है असली कातिल? और क्या है असल वजह?
इंग्लैंड में स्थित कहानी पर बनी इस फिल्म (The Buckingham Murders) का बड़ा हिस्सा अंग्रेज़ी में है। हिन्दी बहुत कम और कहीं-कहीं पंजाबी सुनने को मिलती है। हालांकि निर्मात्री एकता कपूर और करीना कपूर खान ने इसे हिन्दी में डब करके भी रिलीज़ किया है।
दो घंटे से भी छोटी इस फिल्म को लिखने वाले असीम अरोड़ा, कश्यप कपूर और राघव राज कक्कड़ ने इसे कमोबेश कस कर बांधे रखा है। फिल्म के फ्लेवर में जासूसी, सस्पैंस, थ्रिल आदि के अलावा पारिवारिक उलझनें, रिश्तों की पेचीदगियां, आपसी अविश्वास और पुलिस अफसर की निजी ज़िंदगी के जिस असमंजस की ज़रूरत थी उसे भी लेखकों ने सलीके से उभारा है। हंसल मेहता हर किस्म के विषयों को अलग नज़र से देखने, दिखाने वाले निर्देशक हैं। यहां भी उन्होंने अपनी काबिलियत का भरपूर इस्तेमाल करते हुए कहानी को उसकी मंज़िल तक पहुंचाया है।
फिल्म के नाम ‘द बकिंघम मर्डर्स’ में ‘मर्डर्स’ शब्द है। साफ है कि फिल्म में एक नहीं कई कत्ल हैं। उनका मूल कहानी से क्या नाता है, इसे फिल्म में ही देखना उचित होगा। लेकिन इन हत्याओं के बहाने से यह फिल्म असल में इंग्लैंड, या कहें कि उन तमाम पश्चिमी मुल्कों, जहां भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि से लोग बेहतर ज़िंदगी की तलाश में गए हैं, की वह बदरंग तस्वीर भी दिखाती है जिनके बारे में आमतौर पर बात नहीं होती। फिल्म (The Buckingham Murders) दिखाती है कि वहां भारत से आए हिन्दुओं, सिक्खों और पाकिस्तान से आए मुसलमानों में हर किस्म की दोस्ती होने के बावजूद उनके संबंध तनावपूर्ण रहते हैं जो ज़रा-से उकसावे पर उन्माद में बदल जाते हैं। किसी पुलिस वाले का एक मुस्लिम शख्स से बात तक करना वहां तनाव का कारण हो सकता है। अपने मुल्क से ब्याह कर ले जाई गई औरतों के साथ वहां नौकरानी सरीखा बर्ताव होता है। ड्रग्स की लत वहां आम है। लेकिन यही फिल्म कुछ अच्छी तस्वीरें भी दिखा जाती है। एक बच्चे के लापता होने के मात्र छह घंटे में पुलिस की टीमें शहर भर में उसे ढूंढने में जुटी पड़ी हैं। किसी को पुलिस ने उठाया तो उसकी मदद के लिए सरकारी काउंसलर मौजूद है। शायद इसी बेहतर जीवनशैली के लिए ही लोग वहां जाते हैं।
करीना कपूर सधा हुआ अभिनय करते हुए अपने किरदार को अंदर तक छू पाने में कामयाब रही हैं। बाकी के कलाकार भी कमोबेश सहज रहे हैं। मशहूर शेफ रणवीर बराड़ को एक्टिंग करते देख कर सुखद हैरानी होती है।
थ्रिलर, मर्डर मिस्ट्री, सस्पैंस के संग रिश्तों के खोखलेपन की बात करती यह फिल्म बहुत गहरी और बहुत रोमांचक न होने के बावजूद देखी जा सकती है-अभी थिएटरों में या कुछ दिन बाद नेटफ्लिक्स पर।
Release Date-13 September, 2024 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Film ka review padhkar isko dekhna majedaar saabit hoga….. Kareena to Hai he Kareena… Umdah acting ki Adaakaara….