-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
निर्देशक एस.एस. राजमौली का नाम तेलुगू फिल्मों के सुपरहिट निर्देशकों में गिना जाने लगा है। उनकी फिल्म ‘विक्रमारकुड़ू’ हिन्दी में ‘राऊडी राठौड़’ के नाम से, तो ‘ईगा’ हिन्दी में ‘मक्खी’ नाम से डब होकर आ चुकी हैं। यह फिल्म ‘सन ऑफ सरदार’ (Son of Sardaar) भी उनकी ‘मर्यादा रामन्ना’ का ही रीमेक है जिसे अश्विनी धीर ने निर्देशित किया है । लेकिन जितना इसका शोर था और दीवाली वाले मौके पर इसके आने को लेकर जितना हो-हल्ला मचाया जा रहा था, उतना दम इस फिल्म में है नहीं।
इंग्लैंड में रहने वाला जस्सी (अजय देवगन) पंजाब जा रहा है अपनी पुश्तैनी जमीन का सौदा करने। रास्ते में जस्सी की दोस्ती सुखमीत (सोनाक्षी सिन्हा) से होती है और वह उसके घर में मेहमान बन कर पहुंच जाता है। पर यह घर उन्हीं लोगों का है जो 25 साल से उसके खून के प्यासे हैं। दोनों पक्ष यह बात जान भी जाते हैं। लेकिन उनका उसूल है कि वे अपने मेहमान पर हाथ नहीं उठाते। तो, उनकी कोशिश है कि जस्सी उनके घर से बाहर चला जाए ताकि वे उसे मार सकें। उधर जस्सी इस जुगाड़ में लगा रहता है कि उसे यहां से बाहर न जाना पड़े। अंत में हैप्पी एंडिंग तो खैर, होनी ही है।
फिल्म ‘सन ऑफ सरदार’ (Son of Sardaar)की कहानी अच्छी है और इसमें कॉमेडी के साथ-साथ एक्शन और इमोशन की भरपूर गुंजाइश भी है। लेकिन इसे उत्तर भारतीय और पंजाबी स्वाद देते समय इसकी गहरी और प्रभावी बातों को दरकिनार कर सिर्फ कॉमेडी और एक्शन पर ही सारा ज़ोर डाला गया। उस पर से इसकी स्क्रिप्ट का साधारण स्तर इसे ऊंचा उठने ही नहीं देता। पूरी कहानी बस एक घर और एक ही मकसद के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। यह ज़रूर है कि जो हो रहा है, वह फटाफट हो रहा है और यह फिल्म ‘सन ऑफ सरदार’ (Son of Sardaar) आपको बोर नहीं करती। फिल्म में कॉमेडी है लेकिन ऐसी नहीं कि हंसी के फव्वारे छूटें। एक्शन है लेकिन ऐसा नहीं कि आपकी मुठ्ठियां भींच दे। पंजाबियत की खुशबू और बातें हैं लेकिन ऐसी नहीं कि आपके दिल को भिगो दें। अजय देवगन के फिल्म में बार-बार बोले गए एक डायलॉग ‘कदे हंस वी लैया करो’ की ही तरह यह फिल्म कभी-कभार ही हंसा पाती है। निर्देशक अश्विनी धीर का काम औसत से ज़रा ही ऊपर रहा है।
अजय देवगन ने अपने किरदार को बखूबी पकड़ा और उसे कायदे से निभाया भी। सोनाक्षी सिन्हा इस तरह के रोल करके लगता है काफी खुश हैं जिनमें उनके करने के लिए कुछ खास नहीं होता। उनके भाइयों के रोल में संजय दत्त, विंदू दारा सिंह, मुकुल देव काफी जंचे। जूही चावला जब भी पर्दे पर आईं, होठों पर मुस्कान दे गईं। तनुजा, राजेश विवेक, अर्जन बाजवा, मेहमान रोल में सलमान खान, संजय मिश्रा आदि भी ठीक रहे। हिमेश रेशमिया ने फिल्म के मसालेदार मिज़ाज के मुताबिक जो म्यूज़िक रचा वह अखरता नहीं है। अखरती तो खैर यह पूरी फिल्म ही नहीं है। मसालेदार मनोरंजन की चाह रखने वाले इसे एक बार तो देख ही सकते हैं।
अपनी रेटिंग-2.5 स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था।)
Release Date-13 November, 2013
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)