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Home CineYatra

रिव्यू-’शैतान’ से ’मां’ की औसत भिड़ंत

Deepak Dua by Deepak Dua
2025/06/27
in CineYatra, फिल्म/वेब रिव्यू
2
रिव्यू-’शैतान’ से ’मां’ की औसत भिड़ंत
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

मार्च, 2024 में आई अजय देवगन, आर. माधवन वाली फिल्म ’शैतान’ में एक अजनबी शख्स एक किशोरी को अपने वश में कर लेता है और उस लड़की का पिता उस शैतान से भिड़ कर अपनी और दूसरी बच्चियों को बचाता है। यह फिल्म ’मां’ भी उसी पटरी पर है। इसमें भी एक शैतान जवान होती बच्चियों को उठा लेता है। पर जब वह काजोल की बेटी को उठाता है तो वह उससे भिड़ जाती है। ज़ाहिर है कि मां की शक्ति के सामने शैतान को हार माननी ही पड़ती है।

‘शैतान’ जहां गुजराती फिल्म ’वश’ का रीमेक थी और उसमें रामगोपाल वर्मा की ’कौन’ का टच था वहीं ’मां’ में काली और रक्तबीज की पौराणिक कहानी, बलि की कुप्रथा, कन्या शिशु हत्या, शापित हवेली के साथ-साथ 2024 में आज ही के दिन यानी 27 जून को रिलीज़ हुई ’कल्कि’ का भी ज़रा-सा टच है। उसमें भी शैतान को अपनी नस्ल बढाने के लिए एक ताकतवर कोख चाहिए और इस फिल्म का शैतान भी वही तलाश रहा है।

यह एक हॉरर फिल्म है और ऐसी फिल्मों का पहला मकसद दर्शकों को डराना व रोमांचित करना होता है। इन्हें देखने वाले दर्शकों का पहला मकसद भी डर कर आनंदित होना होता है। लेकिन ऐसी फिल्मों के ’फील गुड’ न होने के कारण जहां पारिवारिक दर्शक वर्ग इनसे छिटकता है वहीं पिछले कुछ समय में हॉरर में कॉमेडी का जो तड़का लगने लगा है उसने भी दर्शकों की उम्मीदों को दूसरी तरफ मोड़ा है। चूंकि ’मां’ सिर्फ एक ही ट्रैक पर रही है और इसमें ’डर’ वाले झटके भी पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं इसलिए यह थोड़ी ’हल्की’ लगती है। दूजे, बच्चियों को मारने के पीछे की वजह और गांव के शापित होने की कहानी से जो सशक्त मैसेज निकल सकता था, वह दे पाने में भी लेखक, निर्देशक पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाए हैं। पटकथा में कुछ जगह चूक है, संवाद सपाट हैं लेकिन विशाल फूरिया ने अपने निर्देशन से निराश नहीं किया है। कुछ सीन उन्होंने बेहतर बनाए, अपने कलाकारों से उम्दा काम निकलवाया और सबसे बढ़ कर बेहतरीन वीएफएक्स के ज़रिए फिल्म के मूड को बनाए रखा जिससे यह देखने लायक हो उठती है।

काजोल अपनी पूरी रंगत में हैं। उनके अभिनय का ही असर है कि वह पर्दे पर होती हैं तो पर्दा जीवंत लगता है। लेकिन अधिकांश समय उन्हीं के छाए रहने और बाकी कलाकारों को सशक्त किरदार न मिल पाने के चलते एकरसता-सी बनी रहती है। हालांकि काम बाकी सब कलाकारों-रोनित रॉय, दिब्येंदु भट्टाचार्य, गोपाल के. सिंह, इंद्रनील सेनगुप्ता, खेरिन शर्मा, सुर्ज्याशिखा दास, रूपकथा चक्रवर्ती, विभा रानी आदि का भी अच्छा रहा है।

इस किस्म की फिल्में अपने दृश्यों, लोकेशन और बैकग्राउंड म्यूज़िक से ’डर’ का जो माहौल तैयार करती हैं वह दर्शक को अपनी गिरफ्त में लेकर उनके दिल-दिमाग में गहरी जगह बनाता है। लेकिन इस फिल्म में ऐसा नहीं हो पाया है। बेहतर होता यदि यह ’तुम्बाड़’ या ’कांतारा’ की राह पकड़ती। फिलहाल तो यह फिल्म औसत रोमांच और औसत मनोरंजन देते हुए टाइम पास किस्म की ही बन कर रह गई है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-27 June, 2025 in theaters

(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)

Tags: dibyendu bhattacharyaGopal K. SinghIndraneil Senguptakajolkherin sharmamaamaa reviewronit royRoopkatha ChakrabortySurjyasikha Dasvishal furia
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Comments 2

  1. suraj shukla says:
    2 weeks ago

    मुझे कॉमेडी मिक्स हॉरर बिल्कुल पसन्द नहीं आती, pure हॉरर में ज्यादा मजा आता है बस कहानी कसी हो तो फिर क्या कहने।

    Reply
  2. NAFEES AHMED says:
    1 week ago

    ये साउथ की बनाई गई नहीं है… वरना वहां की हॉरर… हॉरर ही लगती है…. औऱ कहीं टाइमपास से अच्छा ये फ़िल्म देखना रहा…

    Reply

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