-दीपक दुआ…
यह जेन ज़ी की फिल्म है। जेन ज़ी बोले तो 21वीं सदी के पहले दशक में जन्मी वह पीढ़ी जिसने पैदा होते ही मोबाइल देखा और इस यंत्र को इस कदर अपना लिया कि अपने दोस्तों, परिवार वालों से ज़्यादा यारी इससे कर ली। इस यंत्र में इन्होंने इतना कुछ भर लिया कि उसे अपनों से ही छुपाने की नौबत आ गई और यही कारण है कि इस जेनरेशन का शायद ही कोई शख्स होगा जिसके मोबाइल में ताला न लगा हो। यह फिल्म उसी ताले के पीछे छुपे राज़ सामने लाकर इस पीढ़ी के रिश्तों के खोखलेपन का दीदार कराती है।
बानी और गौरव आपस में प्यार करते हैं। बानी के पिता इन दोनों के सामने शर्त रखते हैं कि तुम दोनों एक दिन के लिए अपने-अपने मोबाइल फोन एक-दूसरे को दे दो। इसके बाद इनके जो राज़ खुलने लगते हैं उससे इनके रिश्ते की दरारों के साथ-साथ इनकी और इनके आसपास के लोगों की ज़िंदगियों का खोखलापन भी दिखने लगता है।
करीब सवा दो साल पहले आई तमिल फिल्म ‘लव टुडे’ के इस हिन्दी रीमेक की कहानी को दिल्ली में स्थापित किया गया है। गौरव का परिवार पंजाबी है और इसीलिए उसके संवादों में ‘मैंने कर देना है, मैंने मार देना है’ की टोन रखी गई है। लेकिन इस फिल्म को वहां से उठा कर यहां लाने वाले यह भूल गए कि सिर्फ जगह और परिवारों की पृष्ठभूमि भर बदल देने से आप दर्शकों की संवेदनाओं को नहीं छू सकते। जो तमिल में चलता है, वह सब अगर हिन्दी में भी चलता होता तो रीमेक की बजाय वहां की हर फिल्म यहां डब होकर सुपरहिट हो रही होती। खैर…!
यह फिल्म नई पीढ़ी के युवाओं की बदरंग तस्वीर दिखाती है। दिखाती है कि इन लोगों के बीच आपसी विश्वास ही नहीं है। ये एक-दूसरे से ही नहीं, अपने परिवार वालों से भी बातें छुपाते हैं, झूठ बोलते हैं और सिर्फ अपने स्वार्थ को साधने में लगे रहते हैं। अपने पिता से मिलने आए लड़के को लड़की सिखाती है कि उसे क्या-क्या झूठ बोलने हैं। वही लड़की जो इस लड़के से शादी करना चाहती है लेकिन अपने अतीत के प्रेमियों से भी जुड़ी हुई है। उधर इस लड़के के भी अपने राज़ हैं। और हां, यह नई पीढ़ी शराब और सिगरेट को अपनाना ‘कूल’ मानती है, ऐसा यह फिल्म स्थापित करती है।
हालांकि टुकड़ों-टुकड़ों में यह फिल्म असरदार बातें करती है। टुकड़ों-टुकड़ों में ही यह हंसाती है, मनोरंजन भी देती है। दरअसल यह फिल्म टुकड़ों-टुकड़ों में ही अच्छी लगती है। आज की जेन ज़ी चूंकि इस तरह की हरकतों, रिश्तों और बातों में ज़्यादा इन्वॉल्व रहती है, सो वे लोग इससे ज़्यादा रिलेट भी कर पाएंगे। लेकिन लेखन के स्तर पर यह फिल्म इतनी सशक्त नहीं है कि इसे देख कर दिल वाह-वाह कर उठे।
‘सीक्रेट सुपरस्टार’ और ‘लाल सिंह चड्ढा’ निर्देशित कर चुके अद्वैत चंदन ने फिल्म की रफ्तार काफी तेज़ रखी है। मनोरंजन के लिहाज़ से यह अच्छा माना जाना चाहिए। लेकिन ऐसी फिल्म जो कुछ कहना चाहती हो, कुछ समझाना चाहती हो, उसकी गति तेज़ होने से नुकसान यह होता है कि आप कुछ समझने या ग्रहण करने की बजाय बस हा-हा, ही-ही करके निकल लेते हैं। वैसे जेन ज़ी वाले चाहें तो इस फिल्म से इस तरह के सबक भी ले सकते हैं कि उन्हें फोन, इंटरनेट, सोशल मीडिया आदि का सुरक्षित इस्तेमाल क्यों करना चाहिए।
आमिर खान के बेटे जुनैद खान और श्रीदेवी की बेटी खुशी कपूर के रंग-ढंग और उनका काम देख कर महसूस होता है कि स्टार-किड्स पर अपनी इंडस्ट्री किस कदर मेहरबान रहती है। इन दोनों की ही अभिनय-क्षमता अभी काफी सीमित दिखती है। इन्हें अपने लुक पर भी काम करने की ज़रूरत है। आशुतोष राणा, ग्रूशा कपूर, कीकू शारदा, देविशी मदान, तन्विका पर्लिकर आदि का काम काफी अच्छा रहा। गाने-वाने ठीक-ठाक हैं।
नई पीढ़ी के आपसी रिश्तों में भरोसे की कमी की बात करती यह एक साधारण फिल्म है जिसे साधारण मान कर देखा (या छोड़ा भी) जा सकता है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-07 February, 2025 in theaters
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)
Good Review.. .but Acting is not a 2 minutes practice. It may take time for years…may be decades.. Star Kids are new in this field and they may take time to sharp thier acting, if they want to stay in Bollywood for decades..
However, topic is excellent. This a Slap on the young generation and a lesson to all of us. Good Movie.