-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
यू-ट्यूब पर मुफ्त में उपलब्ध इस फिल्म के शुरू होने से पहले एक क्यू.आर. कोड के साथ मैसेज आता है कि फिल्म देखने के बाद आपके मन में जो आए, वह राशि आप भेज सकते हैं। और यकीन मानिए, फिल्म देखने के बाद लगता है कि जितने की टिकट थिएटर में खरीदते हैं, उससे दो-चार रुपए ज़्यादा ही दे दिए जाएं इस वन-शॉट फिल्म को।
यह भी अचरज की बात है कि इस सवा दो घंटे की फिल्म को एक ही शॉट में फिल्माया गया है। यानी घटनाएं घट रही हैं, पात्र बदल रहे हैं, लोकेशन भी चेंज हो रही है मगर कैमरा बंद नहीं हो रहा है, वह लगातार चलता जा रहा है और उसी के सामने सब कुछ घट रहा है। और ऐसा भी नहीं है कि यह कोई एक कमरे में हो रही घटनाओं को शूट कर के बनाई गई फिल्म हो बल्कि इसमें अलग-अलग लोकेशन हैं जिनमें कुछ आउटडोर भी हैं, चलती हुई गाड़ी है, लगातार बदलता घटनाक्रम है, ढेर सारे पात्र हैं और इन सबसे ऊपर कई सारे फ्लैशबैक भी हैं। इन सबको एक सूत्र में पिरोने के लिए लेखक हेमवंत तिवारी ने जो मेहनत की है, वह पर्दे पर छलक-छलक उठती है। पटकथा की रफ्तार इतनी अधिक तेज है कि कई बार चीज़ें हाथ से फिसलती हुई-सी लगती हैं।
बिहार के किसी छोटे-कस्बे की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में नौजवानों को अपने जाल में फंसाते और काम निकल जाने के बाद उन्हें पुलिस से मरवाते भ्रष्ट राजनेता हैं, राजनीति-पुलिस-अदालत का भ्रष्ट गठजोड़ है, लड़कियों पर अत्याचार है, जातिभेद है, लिंगभेद है, समलैंगिकता की बातें हैं, हिन्दू-मुस्लिम की बाते हैं, समाजशास्त्र है और बड़ी बात यह कि यह सब कुछ अतीत में हो चुकी घटनाओं से प्रेरित है। रेगुलर अखबार पढ़ते रहे लोग स्क्रीन पर घट रही घटनाओं को आसानी से पकड़ पाएंगे।
बतौर निर्देशक भी हेमवंत तिवारी का काम उम्दा रहा है। सिंगल-शॉट फिल्म की तकनीकी सीमाओं के बावजूद उन्होंने दृश्यों पर अपनी पकड़ बनाए रखी है। इससे पहले भी वह ‘लोमड़’ नामक वन-शॉट फिल्म बना चुके हैं और वह भी इस फिल्म की तरह यू-ट्यूब पर उपलब्ध है। ‘कृष्णा अर्जुन’ के साथ खास बात यह भी है कि इसमें नायक का डबल रोल है-कृष्णा भी, अर्जुन भी। हेमवंत का दावा है कि सिंगल-शॉट में डबल रोल वाली यह दुनिया की पहली फिल्म है। हेमवंत ने ही ये दोनों भूमिकाएं निभाई हैं और क्या गजब निभाई हैं। काम तो खैर बाकी सभी कलाकारों ने बहुत खूब किया है चाहे वह रत्ना नीलम पांडेय हों, सत्यकाम आनंद, संदीप गोपाल, आरुषिका डे या वरिष्ठ अभिनेता विनीत कुमार। त्रिभुवन बाबू ने कैमरे से फिल्म के भीतर की दुनिया को जीवंत बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
मगर कुछ बातें खटकती हैं। एक तो फिल्म की रफ्तार है जो कई जगह बहुत तेज़ रही है लेकिन कहीं-कहीं ऐसा लगता है कि किसी सीन को काफी लंबा खींचा जा रहा है। अश्लील संदर्भों, गालियों और दृश्यों वाली इस फिल्म को आप न तो किसी के साथ देख सकते हैं और न ही बिना ईयर-फोन के, जबकि इन सबसे आसानी से बचा जा सकता था। ऐसा होता तो इस फिल्म की पहुंच अधिक व्यापक हो सकती थी। हालांकि फिल्म देखते समय बजट की कमी और तकनीकी हल्कापन साफ झलकता है लेकिन एक अकेला निर्माता बेचारा अपने पैसों से इतना बड़ा एक्सपेरिमैंट कर पा रहा है, यही काफी है।
(यह फिल्म ‘कृष्णा अर्जुन’ इस लिंक पर क्लिक कर के देखी जा सकती है।)
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Release Date-27 March, 2025 on YouTube
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)