-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
‘प्रहार’ में मेजर चव्हाण बने नाना पाटेकर मुंबई में हफ्ता वसूलने और आम आदमियों को आतंकित करने वाले गुंडों को मारने के बाद कोर्ट में कहते हैं-‘आर्मी में हमें सिखाया जाता है देश के लिए लड़ना… अगर लड़ाई के मैदान बदल जाते हैं तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं…?’
यह फिल्म ‘किल’ (Kill) भी इसी लाइन पर चलती है। रांची से दिल्ली जा रही ट्रेन में बहुत सारे डकैत लूटपाट, मारपीट कर रहे हैं। दो आर्मी कमांडो और उनमें से एक की प्रेमिका अपने परिवार के साथ इसी ट्रेन में हैं। दोनों कमांडो इन डकैतों से भिड़ जाते हैं और फिर शुरू होता है कत्ल-ओ-गारत का एक ऐसा सिलसिला जिसे देख पाना हर किसी के बस के बात नहीं।
(यादें-प्रहार’ का वो पहला अटैक)
किसी सफर के दौरान गुंडों के आने और आतंक मचाने की कहानी पर लेखक-निर्देशक निखिल नागेश भट ने कुछ ही महीने पहले ‘अपूर्वा’ बनाई थी जिसमें ग्वालियर-आगरा के बीच कहीं बीहड़ इलाके में चार गैंग्स्टर एक बस की सवारियों को लूट कर अपने मंगेतर से मिलने जा रही लड़की को उठा ले जाते हैं। उस फिल्म में लड़की खुद उन गुंडों से भिड़ गई थी जबकि ‘किल’ (Kill) में लड़की अपने परिवार के साथ है और उसका प्रेमी चलती ट्रेन में उसे प्रपोज़ करने के बाद जब उसे और बाकी सब को खतरे में देखता है तो अपने कमांडो अवतार में आ जाता है।
(रिव्यू-डगमगाते हुए मंज़िल पर पहुंची ‘अपूर्वा’)
करीब पौने दो घंटे की यह फिल्म (Kill) बेहद कसी हुई है। दो सीन में भूमिका बांध कर कहानी ट्रेन में पहुंचती है और सरपट अपने असली ट्रैक पर दौड़ना शुरू कर देती है। ट्रेन में दर्जनों डकैतों का एक साथ पूरी ट्रेन में लूटपाट करना दहलाता है और दर्शक को यह सोच कर और डर लगता है कि यदि सचमुच ऐसा हो तो वह बेचारा लुटने-पिटने के अलावा कुछ नहीं कर पाएगा। फौजी कमांडो को गुंडों से भिड़ते देख कर अपनी सेना के जवानों पर गर्व करने का मौका भी यह फिल्म देती है। साथ ही यह फिल्म इस ख्याल से डराती भी है कि इस फिल्म के डकैतों की तरह अगर कहीं सचमुच कुछ लोग आसानी से मिल रहे नेटवर्क जैमर लेकर किसी ट्रेन में चढ़ जाएं और लोगों के मोबाइल नेटवर्क जाम करके लूटपाट करने लगें तो कितनी तबाही होगी।
‘ए’ सर्टिफिकेट प्राप्त यह फिल्म (Kill) अपने कसे हुए एक्शन दृश्यों और उनके वीभत्सता की हद तक किए गए संयोजन के चलते देखने लायक बन पड़ी है। पलक झपकाने तक का वक्त नहीं देते हैं ये सीन। ट्रेन में लूटपाट कर रहे गुंडे किसी को मारते समय ज़रा भी दया नहीं दिखाते हैं और कमांडो भी उन्हीं के स्टाइल में उन्हें जवाब देते हैं। उन्होंने गुंडों को ऐसे-ऐसे और इस-इस तरह से मारा है कि देख कर जुगुप्सा होती है। यह हिंसा ‘एनिमल’ की फिज़ूल वाली मारामारी से अलग उद्देश्यपूर्ण हिंसा है जो जायज़ लगती है। इन्हें देखते हुए यह ख्याल भी मन में आता है कि समाज को इतना हिंसक होना भी चाहिए कि यदि कोई आतंक मचाने आए तो उसका जवाब उसका मुंह तोड़ कर दिया जा सके।
निखिल नागेश भट की लिखावट और निर्देशन, दोनों ही बेहद कसे हुए हैं। रांची का सबसे अमीर आदमी हवाई जहाज छोड़ कर ट्रेन के सैकिंड ए.सी. में सफर क्यों कर रहा है, इसकी वजह बताता कोई सीन होता और हीरो के सरनेम का उच्चारण राथोर की बजाय राठौड़ करवा दिया जाता तो और अच्छा लगता। एक्शन दृश्यों का संयोजन इस कदर वास्तविक और प्रभावशाली है कि लगता ही नहीं कि इसे एक सैट पर फिल्माया गया है। ट्रेन का विश्वसनीय सैट और उसमें की गई गहरी सिनेमैटोग्राफी इस फिल्म को तकनीकी रूप से भी बेहद उन्नत बनाती है।
फिल्म के नायक लक्ष्य टी.वी. से आए हैं और अपनी अदाकारी व मौजूदगी से उम्मीदें जगाते हैं। उनके साथी के रोल में अभिषेक चौहान भी प्रभावी रहे। इससे पहले ‘मुंबईकर’ में आ चुकीं नायिका तान्या माणिकटाला प्यारी लगीं और कम सीन मिलने के बावजूद असर छोड़ गईं। आशीष विद्यार्थी, हर्ष छाया आदि हमेशा की तरह असरदार रहे। बाकी के कलाकार भी अच्छा काम कर गए लेकिन उभर कर दिखे राघव जुयाल। उन्होंने अपने किरदार की बारीकियों पर काम करते हुए जिस तरह से उसे निभाया, उससे वह उसे एक अलग ही ऊंचाई पर ले गए।
यह एक बेहद हिंसक फिल्म है। कड़े दिल वाले ही इसे देख सकेंगे। बालक-बुद्धि वाले इसे न देखें, बौखला जाएंगे।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-05 July, 2024 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Kill .. naam hi kaafi hai..
Atyadhik Hinsa pradhaan films Hamse dekhi to nahiN jaati .. Lekin aapne kahaa hai Baalak z
buddhi naa dekheN .. to khud ko check karne ke liye dekh lete haiN. 😊