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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-पैनेपन की कमी से हुई ‘गुमराह’

Deepak Dua by Deepak Dua
2023/04/07
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-पैनेपन की कमी से हुई ‘गुमराह’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

दिल्ली शहर में एक मर्डर हुआ है। तफ्तीश के दौरान पुलिस को कातिल की एक तस्वीर मिलती है। उसे पकड़ भी लिया जाता है। तभी पुलिस को एक और युवक मिलता है जिसकी शक्ल, कद-काठी हूबहू उस कातिल जैसी है। पुलिस को यकीन है कि खून इन दोनों में से ही किसी ने किया है। हालांकि ये दोनों ही खुद को बेकसूर बता रहे हैं। तो कौन है कातिल? पहला युवक…? दूसरा युवक…? दोनों…? या कोई नहीं…?

चार साल पहले आई तमिल फिल्म ‘थड़म’ के इस हिन्दी रीमेक को असीम अरोड़ा ने लिखा है। वैसे इसे लिखने की बजाय अनुवाद करना कहें तो ज़्यादा सही होगा क्योंकि कहानी तो वही है जो मूल तमिल फिल्म की थी। बस, उसे दिल्ली-गुरुग्राम की पृष्ठभूमि में लाकर संवादों को हिन्दी में लिख दिया गया है। लेकिन अगर फिल्म के ट्रेलर में ही आदित्य रॉय कपूर ‘सरिया’ को ‘सारिया’ और रोनित रॉय ‘टुकड़ा’ को ‘तुकड़ा’ बोल रहे हों तो आप किसे दोष देंगे? वैसे भी ऐसी हर रीमेक फिल्म इस बात को और पुख्ता ही करती है कि हिन्दी वालों के पास सोचने-लिखने को कुछ ओरिजनल या तो है नहीं या फिर यहां ओरिजनल की कद्र नहीं रह गई है। खैर…!

फिल्म क्राइम थ्रिलर है जिसमें हमशक्ल का तड़का लगने से सस्पैंस की खुराक भी काफी बढ़ गई है। लेकिन इसे उस तरह से कसा नहीं गया है कि देखने वाले बंधे हुए से बस यही इंतज़ार करते रहें कि अब आगे क्या होगा। कसूर पहली बार निर्देशक बने वर्धन केतकर का भी है जिन्होंने इंटरवल तक कहानी खींचने के नाम पर उसमें बेवजह गाने भर-भर कर इसे पोपला बना दिया। जब दर्शक कुछ सॉलिड होने की उम्मीद लिए बैठा होता है ठीक उसी समय फिल्म उसे रोमांस की चाशनी और गानों की लस्सी परोसने लगती है। परोसने वालों को समझना चाहिए कि सस्पैंस और थ्रिल के साथ इन चीज़ों का मेल बदहज़मी करने लगता है।

पटकथा में कहीं-कहीं तर्क बुरी तरह से छूटते दिखाई दिए हैं। किरदारों का चरित्र-चित्रण भी कई जगह उलझा हुआ है। हीरो की प्रेमिका एक सीन में अपनी मां से साल में सिर्फ दो बार रस्मी तौर पर बात होने की बात बताती है और अगले ही सीन में वह उसी मां से मिलने को तड़पने लगती है। दोनों हमशक्ल नायकों के किरदारों में भी सहज प्रवाह नहीं दिखता। फिर इस किस्म की थ्रिलर कहानी यदि संयोगों के दम पर आगे बढ़ने लगे तो क्या फायदा? पुलिस को मात्र संयोग से कातिल की तस्वीर के तौर पर जो लीड मिलती है वह अगर न मिली होती तो पूरी कहानी की लीद निकल जाती। दरअसल मूल तमिल से कहानी उठाते समय उसकी खूबियों के साथ-साथ कमियों को भी उठा लिया गया जिन्होंने इस फिल्म को कमज़ोर ही किया है।

आदित्य रॉय कपूर अपनी रेंज में रह कर अच्छा काम करना जानते हैं। मृणाल ठाकुर की एंट्री से लगता है कि इस फिल्म में वह नायिका बन कर उभरेंगी। लेकिन बहुत जल्द उनके किरदार को विस्तार मिलना बंद हो गया और रही-सही कसर उनके चेहरे पर चिपके इकलौते एक्सप्रैशन ने पूरी कर दी। रोनित रॉय खुद को दोहराते रहे। दीपक कालरा, मनोज बक्शी आदि ठीक-ठाक रहे। कुछ और बड़े नाम वाले कलाकारों की कमी भी खलती रही। गाने ठीक-ठाक ही रहे, हालांकि इनकी ज़रूरत नहीं थी।

यह फिल्म गुमराह तो नहीं करती लेकिन सीधी राह भी नहीं पकड़ती। इसे और ज़्यादा पैना बनाया जाता तो इसका वार गहरा व असरदार होता। फिलहाल तो यह बस टाइम पास किस्म की ही बन कर रह गई है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-07 April, 2023 in theaters

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: aditya roy kapooraseem aroradeepak kalragumraahgumraah reviewgumrahmanoj bakshimrunal thakurronit roythadamvardhan ketkarvedika pinto
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