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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-चीज़ी स्लीज़ी क्वीज़ी ‘बागी 4’

Deepak Dua by Deepak Dua
2025/09/05
in फिल्म/वेब रिव्यू
5
रिव्यू-चीज़ी स्लीज़ी क्वीज़ी ‘बागी 4’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

पहली वाली ‘बागी’ 2016 में, ‘बागी 2’ 2018 में और ‘बागी 3’ 2020 में रिलीज़ हुई थी। पहली वाली को छोड़ कर बाकी दोनों में जो कचरा मनोरंजन परोसा गया था उसके बाद मुमकिन है कि प्रोड्यूसर साजिद नाडियाडवाला को लगा हो कि अब की बार कोई बढ़िया कहानी तलाशेंगे। यही कारण है कि पिछली वाली फिल्म के करीब साढ़े पांच साल बाद अब ‘बागी 4’ आई है जिसकी कहानी और स्क्रिप्ट का श्रेय निर्माता साजिद नाडियाडवाला ने खुद को दिया है। तो आइए, ठीकरा उन्हीं के सिर फोड़ते हैं।

पहले सीन में एक एक्सीडैंट में रॉनी बुरी तरह घायल हो जाता है। कई महीनों बाद होश में आने पर उसे अपनी गर्लफ्रैंड अलीशा याद आती है। लेकिन हर कोई उससे कहता है कि अलीशा नाम की कोई लड़की कभी थी ही नहीं और यह सिर्फ उसका दिमागी भ्रम है। न कहीं कोई तस्वीर, न नाम, न पहचान…! तो क्या सचमुच अलीशा नहीं थी…? और अगर थी तो कहां गई…? गई या छुपा ली गई…? कौन है जो ऐसा कर रहा है…? क्यों कर रहा है वह ऐसा…? या सचमुच रॉनी को भ्रम हो रहे हैं…?

(रिव्यू-‘बागी 2’ अझेल भेल रेलमपेल)

दो-चार लाइनों में बताई जाए तो कहानियां तो सारी ही अच्छी लगती हैं। असल चीज़ होती है उस कहानी को स्क्रिप्ट के तौर पर दिया गया विस्तार और पर्दे पर उतारा गया उसका संसार। इस फिल्म में इंटरवल तक कहानी का जो ढांचा तैयार किया गया है वह दर्शकों को ही भ्रमित करने लगता है कि क्या सचमुच अलीशा नाम की कोई लड़की है भी या नहीं। इस दौरान कहानी इतनी सारी पटरियां बदलती है कि दर्शक सिर्फ भ्रमित ही नहीं होता, बोर भी होने लगता है। बहुत सारे सीन ज़रूरत से ज़्यादा लंबे हैं और इतने खराब लिखे गए हैं कि उन्हें देख कर झल्लाहट होती है।

(रिव्यू-क्यों तारीफों के काबिल है ‘बागी 3’)

इंटरवल के बाद भी हालात कोई खास नहीं बदलते हैं। बस, अब हिंसा की मात्रा बढ़ जाती है। और हिंसा भी कैसी, जिसका कोई सिर-पैर नहीं, कोई कारण नहीं। अपने ट्रेलर से यह फिल्म ‘एनिमल’ सरीखी लगती है लेकिन इसमें दिखाई गई हिंसा (इसे ‘एक्शन’ कहना सही नहीं होगा) में वैसा प्रभाव नहीं है। बस, हर कोई दूसरे को मारे जा रहा है। गोलियां, कुल्हाड़ियां, चक्कू चल रहे हैं। और खून तो इतना बह रहा है कि जो सैंडविच मैं खरीद कर लाया उसके साथ परोसी गई टोमैटो सॉस में भी मुझे कुछ देर बाद खून का स्वाद आने लगा था। छी…!

हिंसा किसी कारणवश हो तो जंचती भी है। ‘एनिमल’ की हिंसा कुछ हद तक और ‘किल’ की हिंसा काफी हद तक जंची थी। लेकिन जब वैसी ही हिंसा सोनू सूद वाली ‘फतेह’ में बिना वजह के आई थी तो बेकार लगी थी। ‘बागी 4’ में भी यही हुआ है। सीधा सवाल यह है कि जब विलेन ने हीरो को मारना ही है तो वह पूरी फिल्म में मज़े किस से ले रहा है…? हम दर्शकों से ही न…! निर्देशक ए. हर्षा को साउथ से लाया गया है। क्यों लाया गया है, इसका कारण स्पष्ट नहीं है। ऐसा रंग-बिरंगा, ढीला-ढाला तमाशा तो हिन्दी वाले भी तैयार कर ही सकते थे। पिछली दो बागियों वाले अहमद खान कर ही रहे थे न।

(रिव्यू : गैट-सैट-स्लीप ‘फतेह’)

टाइगर श्रॉफ पर पहले तरस आता था, अब शर्म आती है। यह तय कर पाना मुश्किल है कि उन्हें किसी फिल्म में लेने के बाद खासतौर पर कचरा स्क्रिप्ट लिखी जाती हैं या कचरा स्क्रिप्ट लिखने के बाद उन्हें उस फिल्म में लिया जाता है। हालांकि जहां-जहां वह सीरियस रहे, जंचे हैं। लेकिन ज़्यादातर जगह तो वह मारते रहे, पिटते रहे, चिल्लाते रहे, खिजाते रहे। सोनम बाजवा अच्छा काम कर गई हैं। मिस यूनिवर्स रह चुकीं हरनाज़ संधू को एक्टिंग में तो अभी बहुत कुछ सीखना है, ‘बाकी काम’ उन्होंने बखूबी सीख लिए हैं। वह आपकी टिकट के पैसे बेकार नहीं जाने देंगी। संजय दत्त ने रणबीर कपूर को कॉपी किया है। सौरभ सचदेवा हर बार एक जैसी भंगिमाएं रखेंगे तो प्रभावी नहीं लगेंगे। श्रेयस तलपड़े और उपेंद्र लिमये बढ़िया काम कर गए। गाने-वाने रंग-बिरंगे हैं, चाहे-अनचाहे बीच में टपक-शपक पड़ते हैं।

‘बागी 3’ के रिव्यू में मैंने लिखा था, ‘‘तारीफ तो आप दर्शकों की भी होनी चाहिए। और करवाइए ‘बागी 2’, ‘दबंग 2’ जैसी फिल्मों को हिट और झेलिए ‘बागी’, ‘दबंग’ 3, 4, 5, 6… 10…20…!’’ अब ‘बागी 4’ देख कर लगता है कि फिर से आप लोगों की तारीफ करने का समय आ गया है।

‘बागी’ सीरिज़ की फिल्मों की जो हालत कर दी गई है, वैसे में इनका रिव्यू करना कोई अक्लमंदी का काम नहीं कहा जा सकता। ये फिल्में दरअसल इस कदर ‘चीज़ी’ (घटिया) और स्लीज़ी (कमज़ोर) हैं कि इन्हें देख कर किसी भी समझदार आदमी को ‘क्वीज़ी’ (उल्टी करने का) अहसास हो सकता है। आपको भी ऐसा अहसास लेना है तो जाइए, देख लीजिए ‘बागी 4’। आप पैसे खर्चेंगे तभी तो ‘बागी’ 5, 6, 7, 8… भी आएंगी।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-5 September, 2025 in theaters

(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)

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Comments 5

  1. B S BHARDWAJ says:
    2 months ago

    क्या सही धुलाई की है आपने। इस फिल्म का सारा रंग रोगन बिना बारिश के दो दिया आपने 😂😂😂😂😂👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻सही कहूं तो आपने केवल धोया नहीं है इस फिल्म की और इसे बनाने वाले की गफलतें दूर कर दी हैं जिसके लिए आपको साधुवाद है 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

    Reply
    • CineYatra says:
      2 months ago

      धन्यवाद…

      Reply
  2. Dr. Renu Goel says:
    2 months ago

    Behtarin or bariki se likha hua review 👏👏👏👏

    Reply
    • CineYatra says:
      2 months ago

      धन्यवाद…

      Reply
  3. Jatin Binny says:
    2 months ago

    Baaghi ko nagha Krna pdega

    Reply

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