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Home फ़िल्म रिव्यू

रिव्यू-फिल्म वालों के दोगलेपन की कहानी है ‘एके वर्सेस एके’

Deepak Dua by Deepak Dua
2021/01/10
in फ़िल्म रिव्यू
0
रिव्यू-फिल्म वालों के दोगलेपन की कहानी है ‘एके वर्सेस एके’
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 -दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

बरसों पहले ए.के. यानी अनुराग कश्यप ने ए.के. यानी अनिल कपूर को ले कर एक फिल्म एनाउंस की थी जिसका नाम था-ए.के यानी ‘आल्विन कालीचरण’। किन्हीं कारणों से वो फिल्म बन नहीं पाई। इस दौरान अनिल कपूर अनुराग जैसे डार्क फिल्में बनाने वालों से खुद को दूर रखते हुए मनोरंजक फिल्मों के स्टार बने रहे और अनुराग कश्यप अनिल जैसे लोगों को गरियाते हुए अपनी तरह के स्टार बन गए। यह फिल्म इन दोनों के मौजूदा स्टेट्स से शुरू होती है। अनुराग को अनिल से आज भी खुन्नस है। वह उनके साथ काम करना चाहते हैं लेकिन अनिल उन्हें वक्त नहीं दे रहे हैं। एक दिन अनुराग अनिल की बेटी सोनम को किडनैप कर लेते हैं और अनिल को मजबूर करते हैं कि वह कल सुबह से पहले अपनी बेटी को तलाशें और इस पूरी रात में एक कैमरा उन्हें लगातार शूट करता रहेगा। क्या होता है इस एक रात में? कितना सच (या झूठ) छुपा है इन दोनों की इस भिड़ंत में?

फिल्म इंडस्ट्री (या किसी भी दूसरे कारोबार) में आपसी रंजिशों का होना आम बात है। लेकिन इन रंजिशों को इस तरह से किसी फिल्म में लाने का ख्याल अपने-आप में अनोखा है कि सामने जो कुछ हो रहा है वह ‘फिल्मी’ न लग कर रियल लगे। लगे कि अनुराग ने सचमुच सोनम को किडनैप किया है, लगे कि अनिल सचमुच अपनी बेटी को तलाश रहे हैं, लगे कि इन दोनों के दरम्यां ऐसे ही संबंध होंगे और मौका मिलने पर ये लोग एक-दूसरे के साथ ऐसे ही बर्ताव भी करते होंगे। इस फिल्म का यह यथार्थवादी लेखन और पिक्चराइज़ेशन ही इसकी सबसे बड़ी खासियत है जो दर्शक को लगातार बांधे रखता है। आगे क्या होगा, यह जानने की उत्सुकता लगातार बनी रहती है और अंत चौंकाता है। विक्रमादित्य मोटवानी का निर्देशन इसे कसावट और रफ्तार देता है।

अनिल कपूर बेहद उम्दा काम करते नज़र आते हैं। बहुत जगह लगता है कि वह ‘एक्ट’ नहीं कर रहे हैं बल्कि सचमुच उनके साथ ऐसा हुआ होगा और वह सिर्फ ‘रिएक्ट’ कर रहे हैं। कमी अनुराग के काम में भी नहीं है। उन्हें कैमरे को फेस करना बखूबी आता है लेकिन जब-जब वह और अनिल एक फ्रेम में होते हैं तो अनिल बखूबी जता देते हैं कि एक्टिंग के मामले में वह अनुराग पर कितने भारी हैं। बाकी किसी को खास मौके नहीं मिले। अनिल के बेटे हर्षवर्द्धन को देखने के बाद फिर से यह विचार मन में आता है कि हर्ष को कैमरे के सामने आकर अपनी ‘बची-खुची’ इज़्ज़त लुटाने की बजाय किसी और काम-धंधे में हाथ आजमाना शुरू कर देना चाहिए।

नेटफ्लिक्स पर आई यह फिल्म हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के नामी लोगों के दोगलेपन को भी सामने लाती है। ये लोग जिसे गरियाते हैं उसी की पीठ खुजाते हैं, जिसे गले लगाते हैं उसी का बुरा चाहते हैं। असल में यह फिल्म अपनी फिल्म इंडस्ट्री की उन हकीकतों को सामने लाती है जो मौजूद तो हैं लेकिन पर्दों के पीछे कहीं गुम हैं। थ्रिलर की कतार में आने वाली यह फिल्म कोई बहुत सधी हुई थ्रिलर नहीं है और न ही ऐसी फिल्में, ऐसी कहानियां हर किसी को पसंद आ सकतीं हैं। बावजूद इसके अपने अलग मिज़ाज, अपने अलग तेवर के चलते यह खुद को एक बार देखने लायक तो बना ही लेती है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-24 December, 2020

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: AK vs AK reviewAnil KapoorAnurag Kashyapharshvardhan kapoorNetflixsonam kapoorvikramaditya motwaneएके वर्सेस एके’
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