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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-मत देखिए ‘द बंगाल फाइल्स’

Deepak Dua by Deepak Dua
2025/09/06
in फिल्म/वेब रिव्यू
2
रिव्यू-मत देखिए ‘द बंगाल फाइल्स’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

‘प्रहार’ में मेजर चव्हाण बने नाना पाटेकर कोर्ट से पूछते हैं-‘देश का मतलब क्या है? सड़कें, इमारतें, खेत-खलिहान, नदियां, पहाड़, बस इतना ही? और लोग, लोग कहां हैं?’

सच तो यह है कि देश की बात करते समय हुकूमतों ने कभी लोगों के बारे में सोचा ही नहीं। विवेक रंजन अग्निहोत्री की यह फिल्म ‘द बंगाल फाइल्स’ उन्हीं लोगों, हम लोगों, ‘वी द पीपल ऑफ भारत’ की बात कहने आई है, सुनाने आई है। पर क्या सचमुच कोई ‘वी द पीपल’ की बात सुनना भी चाहता है? समझना चाहता है?

आज के पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में एक दलित लड़की के गायब होने के मामले की तफ्तीश करने के लिए दिल्ली से सी.बी.आई. अफसर शिवा पंडित को भेजा जाता है। शक स्थानीय विधायक सरदार हुसैनी पर है। शिवा पर वहां हमला होता है क्योंकि उस इलाके में पुलिस की नहीं सरदार हुसैनी की चलती है। वही सरदार हुसैनी जो सीमा पार से अवैध लोगों को वहां लाकर बसा रहा है, उन्हें यहां का नागरिक बना कर उस इलाके की डेमोग्राफी बदल रहा है, हर चीज़ को हिन्दू-मुसलमान बना रहा है ताकि उसकी हुकूमत चलती रहे। तफ्तीश के दौरान शिवा को भारती बैनर्जी मिलती है जिसने आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी, अगस्त 1946 का बंगाल का वह ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ देखा था जिसमें हज़ारों लोग मारे गए थे, नोआखाली के दंगे देखे थे और जो आज भी बात-बात पर बीते दिनों की उन भयानक यादों में खो जाती है। शिवा पंडित पाता है कि हालात आज भी कमोबेश वैसे ही हैं। हुकूमत में बैठे लोग आज भी अपने स्वार्थ के लिए ‘वी द पीपल’ को इस्तेमाल ही कर रहे हैं।

‘द कश्मीर फाइल्स’ की तरह इस फिल्म में भी विवेक ने इतिहास के पन्नों से धूल झाड़ते हुए कुछ ऐसी बातों पर रोशनी डालनी चाही है जिन्हें जानता तो शायद हर कोई है लेकिन उनके बारे में बात करने से कतराता है। इस फिल्म का ढांचा भी उस फिल्म जैसा ही है जहां आज के समय को बीते समय से जोड़ा गया है। फिल्म लिखने में की गई विवेक की रिसर्च प्रशंसनीय है। दस्तावेजों में दर्ज बातों और घटनाओं को पर्दे पर दिखाते हुए विवेक ने कई रूपक भी बहुत सलीके से इस्तेमाल किए हैं। भारत छोड़ो आंदोलन के समय से अब तक ज़ख्म झेल रही भारती बैनर्जी भारत देश का बिंब दिखाती है, गायब हुई दलित लड़की आवाज़ उठाने वाली आम जनता का, पुलिस वाले मजबूर सरकारी कर्मियों का, नेता लोग हुक्मरानों का।

(रिव्यू-इतिहास के पन्नों से धूल झाड़ती ‘द कश्मीर फाइल्स’)

बीते समय को दिखा कर फिल्म इतिहास की और उस समय के हमारे कर्णधारों की भूलों को रेखांकित करती है। उस दौर के नेताओं को और उनके फैसलों को जब यह फिल्म वर्तमान की खिड़की से देखती है तो तारीफ पाने लायक काम करती है। आज के समय के हालात पर जब यह फिल्म कड़वी मगर सच्ची टिप्पणियां करती है तो यह भी समझ आता है कि क्यों कुछ लोग इस फिल्म को बिना देखे, इसके बारे में बिना जाने इसके खिलाफ उठ खड़े हुए हैं।

लेकिन यह फिल्म पूरी तरह से असरदार नहीं बन पाई है। दरअसल विवेक ने अतीत की घटनाओं को ले तो लिया लेकिन उन्हें सिलसिलेवार तरीके से पिरोते समय और उन्हें वर्तमान से जोड़ते समय लेखन के स्तर पर मामला हल्का रह गया। संवाद भी कुछ एक जगह ही गहरी मार कर पाए हैं। ‘टुकड़ों’ को ‘तुकड़ों’ तो ट्रेलर में ही बोला गया, हद है। यह फिल्म भी टुकड़ों-टुकड़ों में ही असर छोड़ती है। बतौर निर्देशक विवेक ने कुछ एक सीन तो इतने प्रभावी बनाए हैं कि आप पलक झपकाना भूल जाएं लेकिन ज़्यादातर समय फिल्म औसत बनी रही है और कुछ एक बार तो इतनी फीकी, रूखी और कमज़ोर भी हुई है कि उकताहट होने लगती है। हालांकि सिनेमाई शिल्प के मामले में विवेक पहले से अधिक पैने हुए हैं। लेकिन एक साथ बहुत सारी बातें कहने और समेटने की कोशिश में फिल्म की लंबाई बिखर कर 3 घंटे 25 मिनट हो गई है जो बहुत बार अखरती है। इसे देखते हुए महसूस होता है कि विवेक अपने लिखे और फिल्माए से कुछ ज़्यादा ही मोह पाल बैठे। कम से कम आधा घंटा कुतरा जाए तो यह फिल्म खुद को भी कसेगी और दर्शकों को भी कस कर रखेगी।

कलाकारों का अभिनय इस फिल्म का मजबूत पक्ष है। दर्शन कुमार बेहद प्रभावी रहे। युवा भारती बनी सिमरत कौर अधिकांश जगहों पर काफी असरदार रहीं। वृद्ध भारती के रूप में पल्लवी जोशी ने असर छोड़ा। दिब्येंदु भट्टाचार्य ने खूब असरदार काम किया। शाश्वत चटर्जी, अनुपम खेर, राजेश खेरा, एकलव्य सूद, पुनीत इस्सर, प्रियांशु चटर्जी, सौरव दास, नमाशी चक्रवर्ती, मदालसा शर्मा जैसे तमाम कलाकार उम्दा काम कर गए। मिथुन चक्रवर्ती जब-जब आए, छाए रहे।

यह फिल्म एक ऐसे विषय पर है जिसे देखते समय आप बेचैन होते हैं, व्याकुल होते हैं। फिल्म में ऐसे अनेक दृश्य हैं जो आपकी बेचैनी को बढ़ाते हैं। मार-काट के दृश्य, औरतों को बकरों की तरह लटकाने के, हर तरफ बिखरी लाशों के, उन लाशों को नोचते गिद्धों के ये दृश्य आपको विचलित करते हैं। हिलता हुआ कैमरा ऐसे दृश्यों का प्रभाव और बढ़ा देता है। यदि आप ऐसे वीभत्स दृश्य न देख पाते हों तो यह फिल्म मत देखिए। यदि आपको अतीत के सच से परहेज़ हो तो यह फिल्म मत देखिए। यदि आप सिनेमा के पर्दे पर ‘वी द पीपल’ के बारे में बात किया जाना पसंद न करते हों तो यह फिल्म मत देखिए। यदि आपको पर्दे पर बीता हुआ कल देख कर आने वाले कल के लिए आगाह होना न भाता हो तो यह फिल्म मत देखिए। मत देखिए यह फिल्म क्योंकि यह बताती है कि अतीत के कुछ ज़ख्म कभी भरते नहीं हैं, शायद भर भी नहीं सकते।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-5 September, 2025 in theaters

(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)

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Comments 2

  1. suraj shukla says:
    2 months ago

    👏👏👏👏

    Reply
  2. Abhay says:
    1 month ago

    इस फ़िल्म मे सच्चाई दिखाई है कोई लाइला मजनू की फ़िल्म नहीं है जिसमे इंटरटेनमेंट ढूँढा जाये, सीसी ही फिल्मे बनना बहुत ज़रूरी है जिस से हम जान सके की इतिहास की सच्चाई क्या है, जिस से आने वाले वर्तमान को ले कर हम सचेत रहे ये फ़िल्म वर्तमान मे कश्मीर केरल और पच्छिम बंगाल मे होने वाले वाले मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा हमलो को सचितार्थ करती है इसे हम अगर ऐसे देखे 70 साल पहले नहीं आज भी 70 साल बाद कुछ राज्योंम वही हो रहा है जहा मुस्लिम आबादी ज्यादा है, हिन्दू मारे जा रहे है, अभी हाल ही मे हुवे ऑपरेशन सिन्दूर के बाद पता चला की कितनी ही मुस्तकीम महिलाओं ने यहाँ पर बच्चे जने और भारत के ही मुस्लिम भाई इन्हे छिपा रहे है भारत की जनसंख्याकी बढ़ा रहे है ये जबरदस्ती हिन्दू लड़कियों से दुराचार कर रहे है और भारत के ही नेता इनका सपोर्ट करते है जब इन पर कोई कार्यवाही होती है तो हिन्दू मुस्लिम एंगल ले आते है जहाँ मुस्लिम आबादीबकाम है दलित युवतिनके साथ कुछ होता है तो सारे नेता गिद्ध के जैसे वहा पहिंच जाते है पर पश्चिम बंगाल मे ममता राज मे जब कोई दलित युवती से दुराचार होता है तो सारे नेता वोट बैंक के कारण शांत हो जाते है, इस लिए प्रत्येक हिन्दू को ये फ़िल्म देखना बहुत जरूरी है, ताकि भारत का कोई अन्य टुकड़ा अन्य इस्लामिक देह की मांग न करे, जय हिन्द भारत माता की जय, कटोगे तो बांटोगे एक रहोगे सेफ रहोगे हर हर महदेव

    Reply

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