-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
तन्वी एक खूबसूरत युवती है। दिल्ली में अपनी मां के साथ रहती है। मीठा गाना गाती है। किस्म-किस्म की जानकारी जुटाना और उसे याद रखना उसकी आदत है। लेकिन वह ‘नॉर्मल’ नहीं है। वह ‘अलग’ है। ‘अलग’ है लेकिन किसी से ‘कमतर’ नहीं है यानी ‘डिफरेंट बट नो लैस’। दरअसल उसे ‘ऑटिज़्म’ है। (‘ऑटिज़्म’ यानी एक ऐसी अवस्था जिसमें इंसान के मस्तिष्क के विकास को नियंत्रित करने वाले धागे कुछ अलग, कुछ कमज़ोर, कुछ उलझे हुए होते हैं जिसके चलते उसका व्यवहार, उसकी आदतें, रूचियां, प्रतिक्रियाएं, सीखने की क्षमता आदि आम लोगों के मुकाबले कुछ अलग होती हैं, कभी कम तो कभी ज़्यादा होती हैं।) तन्वी के फौजी पिता एक हादसे में मारे जा चुके हैं। उसकी मां उसे उसके दादा के पास एक पहाड़ी कस्बे में छोड़ कर विदेश गई है। नई जगह, नए लोग, नया माहौल और तन्वी, जिसे पूरे करने हैं कुछ सपने-कुछ अपने, कुछ अपनों के। लेकिन कैसे? जिस तन्वी को जूतों के फीते तक बांधने में, घर की चौखट तक लांघने में मुश्किल आती है, वह कैसे लांघेगी सपनों के ऊंचे पर्वत…?
‘अलग’ किस्म के लोगों की प्रेरक कहानियां अक्सर समाज में और यदा-कदा फिल्मों में सुनाई-दिखाई पड़ जाती हैं। ऑटिस्टिक युवाओं की एक उम्दा कहानी पिछले दिनों आमिर खान ‘सितारे ज़मीन पर’ में लेकर आए थे। अब अनुपम खेर ने अपनी लिखी इस फिल्म (Tanvi The Great) को अपने ही निर्देशन में प्रस्तुत किया है जिसमें एक युवती अपनी ज़िद से कुछ अनोखा करने की न सिर्फ ठान लेती है बल्कि अपने जुनून से उसे हासिल करने में भी जुट जाती है। इस किस्म की कहानियां प्रेरक तो होती ही हैं, भावुक भी कर जाती हैं और ‘तन्वी द ग्रेट’ ये दोनों काम बखूबी करती है। इसे देखने के बाद आपको ऑटिस्टिक लोगों पर दया नहीं आती, आप उन्हें हीन नज़र से नहीं देखते, बल्कि आपको वे लोग भी सक्षम दिखाई देते हैं, कहीं-कहीं तो आप से भी ज़्यादा। यह फिल्म (Tanvi The Great) आपकी सोच बदल पाती है और यही इस फिल्म की सफलता है। लेकिन…!
(रिव्यू-मन में उजाला करते ‘सितारे ज़मीन पर’)
अभिषेक दीक्षित और अनुपम खेर की कहानी बढ़िया है लेकिन पटकथा में खामियां हैं। कहानी का बहाव कहीं बहुत हल्का रहा है तो कभी अचानक से हाई प्वाईंट पर आकर कहानी गोता खा जाती है। कभी इसे अपनी सुविधा से मोड़ा गया तो कभी इसे मुड़ने से रोका ही नहीं गया। पटकथा लेखन के बुनियादी उसूलों का पालन करते हुए इसे लिखा जाता तो यह न सिर्फ पटरी पर रहती बल्कि बीच-बीच में हिचकोले भी न खाती। संवाद कुछ जगह बेहतर हैं और कई जगह बहुत ही कामचलाऊ। कहीं-कहीं उच्चारण की गलतियां भी हैं। कर्नल रैना को कर्नल रायना तो खैर, कई बार कहा गया है। फिल्म लंबी भी बहुत है और कई सारी गैरज़रूरी चीज़ों के चलते बीच-बीच में अखरने लगती हैं। कुछ गाने ठूंसे गए हैं जो फिल्म (Tanvi The Great) के प्रवाह में बाधा बनते हैं। गीत-संगीत तो वैसे भी साधारण ही है।
फिल्म (Tanvi The Great) की एक बड़ी कमी है अनुपम खेर का निर्देशन। 2002 में ‘ओम जय जगदीश’ बना कर उंगलियां झुलसा चुके अनुपम इस फिल्म का निर्देशन किसी और को सौंपते तो यह ज़्यादा निखर सकती थी। कई सीन हैं जो कच्चेपन से फिल्माए गए हैं, कई बातें हैं जो बनावटी लगती हैं। चूंकि अनुपम इस फिल्म के लेखक, निर्देशक और निर्माता भी हैं तो संभव है कि अपने लिखे और फिल्माए दृश्यों के प्रति उनका मोह (या अहं) आड़े आ गया हो। लेकिन इससे फिल्म का स्तर हल्का हुआ है और यह ‘द ग्रेट’ बनने से चूक गई है।
शुभांगी दत्त ने तन्वी के किरदार में उम्दा काम किया है। हालांकि कुछ जगह उनके किरदार का ग्राफ डगमगाया है लेकिन वह लेखन की गलती है, उनकी नहीं। अनुपम खेर, पल्लवी जोशी, बोमन ईरानी, जैकी श्रॉफ, करण टैकर, अरविंद स्वामी, नासिर आदि ने अपने काम से फिल्म (Tanvi The Great) को सहारा दिया है।
‘तन्वी द ग्रेट’ जैसी कहानियां आती रहनी चाहिएं। ऐसी कहानियां हिम्मत देती हैं, हौसला भी।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-18 July, 2025 in theaters
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)
आपके समीक्षा ने देखने की उत्सुकता बढा दी है। सितारे जमीन पर की ऊंचाई को यह फिल्म भले ही न छूए लेकिन हम दर्शक अच्छी फिल्मों को देखकर बढ़ावा न देंगे तो अच्छे फिल्मकारों का हौसला कैसे बढ़ेगा ?
धन्यवाद