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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू- मसालों भरा अत्याचार ‘सलार’

Deepak Dua by Deepak Dua
2023/12/23
in फिल्म/वेब रिव्यू
4
रिव्यू- मसालों भरा अत्याचार ‘सलार’
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

एक अमीर आदमी की बेटी अमेरिका से भारत आई है और सारा अंडरवर्ल्ड उसके पीछे पड़ गया है। सिर्फ एक ही शख्स है जो उसे बचा सकता है। वह उसे बचा भी लेता है। लड़की सच जानना चाहती है। उसे एक कहानी सुनाई जाती है कि कैसे 25 साल पहले एक रियासत के राजकुमार को उसके दोस्त ने बचाया था। इस कहानी के अंदर एक और कहानी सुनाई जाती है कि कैसे उस रियासत के अंदर उथल-पुथल चल रही है। इस अंदर चल रही कहानी के अंदर एक और कहानी सुनाई जाती है कि कैसे वह राजकुमार और उसका दोस्त अभी भी इसमें शामिल हैं। इतना सब सुन कर वह लड़की कहती है-रुको, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, दारू है क्या?

इस फिल्म में तो उस लड़की को तो दारू मिल गई जिसे उसने फट से गटक भी लिया। हालांकि यह साफ नहीं है कि उसे दारू पी कर भी कहानी समझ में आई या नहीं लेकिन दिक्कत यह है कि आप चलती फिल्म में थिएटर के अंदर दारू कहां से लाएंगे? और कहीं आप मेरी तरह दारू-विहीन शख्स हुए तो…? खैर छोड़िए, इस किस्म की फिल्में कहानी समझने के लिए भला कौन देखता है।

इधर कुछ समय से ‘बॉलीवुड हाय-हाय’ का नारा लगाने वालों ने दक्षिण से आ रही कचरायुक्त आंधी को जिस तरह से ‘समीर-हवा का झोंका’ कह कर अपने फेफड़ों में भरा है और उससे फूला हुआ सीना तान कर लोगों को साउथ की फिल्मों के फायदे गिनवाए हैं, उसके बाद इस किस्म की फिल्मों का यहां आना और पसंद किया जाना स्वाभाविक भी है जिनमें न तो कहानी के पैर होते हैं और न ही सिर। पैर होते तो कहानी चलती, सिर होता तो बुद्धि सवाल पूछती। ऐसी फिल्मों का सिर्फ धड़ होता है जो तन कर खड़ा होता है, एक्शन करता है, कभी दूसरों को गिराता है तो कभी खुद गिरता है। तेलुगू में बनी और कई भाषाओं में डब हुई यह फिल्म भी ऐसी ही बिना सिर-पैर की कहानी पर बनी है।

दरअसल लेखक-निर्देशक प्रशांत नील ने बहुत पहले ही यह समझ लिया था कि इस किस्म की फिल्मों को जितनी ज़्यादा भव्यता से बनाया जाएगा, आम दर्शक उसे उतना ज़्यादा पसंद करेंगे। बड़े स्टार को वैसे भी उनके चहेते दर्शक लार्जर दैन लाइफ किरदारों में देखना चाहते हैं। और जब पर्दे पर उनका चहेता हीरो सुपरमैन बन कर गैर-मामूली करतब दिखा रहा होता है तो उन्हें सिर्फ तालियां बजानी होती हैं क्योंकि दिमाग तो वे लोग सुला चुके होते हैं। ‘के.जी.एफ.’ में उन्होंने यश को महामानव दिखाया तो यहां प्रभास को। प्रभास तो वैसे ही हर तरफ पसंद किए जाते हैं। तो बना दो उन्हें सलार, दे दो उन्हें असीमित ताकत, करवा दो उनके हाथ से पांच-छह हज़ार कत्ल। सैंसर ने ‘एनिमल’ की पशुता नहीं रोकी, इसे भला क्यों रोकेंगे। सैंसर ने तो इस फिल्म के ‘चलो नेपाल चलते हैं, नेपाली लड़कियां ताड़ेंगे’ जैसे संवाद तक पर गौर नहीं किया। और हां, फिल्म बनाने वालों ने इसे ‘सलार’ लिखा है, फिल्म में ‘सलार’ बोला है तो हिन्दी के विद्वानों, इसे ‘सालार’ मत बनाओ।

रिव्यू-बड़ी ही ‘दबंग’ फिल्म है ‘के.जी.एफ.-चैप्टर 2’

यह फिल्म देखिए-भरपूर एक्शन के लिए देखिए, बेहिसाब हिंसा के लिए देखिए। बस, यह ध्यान रखिएगा कि ऐसी फिल्में देखते-देखते जब आपके अंदर का एनिमल कहीं खुद हिंसक होकर गुर्राने लगे तो उसे आप कैसे रोकेंगे? 

ऐसी फिल्मों में एक्टिंग की नहीं एक्शन की बात होती है और वह इसमें भरपूर है। और भी सारे मसाले हैं इसमें। लंबे-लंबे उबाऊ सीन भी हैं और डब हुए बकवास गाने भी। स्याह रंग में रंगा पर्दा है और बिना लॉजिक की कहानी के ताने-बाने भी। 1985 में हीरो 10 साल का दिखाया है (बताया 10 का है, दिखता 16 का है) और अब फिल्म में 2017 चल रहा है, यानी अब वह 42 साल का है-बेचारा, कुंवारा।

दिल्ली में सड़क किनारे बिक रहे 20 रुपए के आठ मोमो खाने वालों को पता होता है कि वे किस कचरे में मुंह मार रहे हैं। फिर भी लाखों लोग इन्हें चटखारे लेकर खाते हैं। उन्हीं के लिए बनी है है यह फिल्म। तो, ‘सलार-पार्ट-1-सीज़फायर’ देख लीजिए, फिर ‘सलार-पार्ट-2-शौर्यांगा पर्वम’ भी तो देखनी है, चटखारे लेकर।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-22 December, 2023 in theaters

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: jagapathi babuprabhasprashanth neelprithviraj sukumaransalaarsalaar reviewshruti haasantelugutinu anand
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Comments 4

  1. B S BHARDWAJ says:
    2 years ago

    बहुत बेहतरीन विश्लेषण दीपक जी 👌👌👌👌👌

    Reply
    • CineYatra says:
      2 years ago

      धन्यवाद

      Reply
  2. Sanjeev Narayan says:
    2 years ago

    फिल्म जितनी अधिक थकाऊ समिछा उतनी ही उन्नत

    Reply
  3. NAFEESH AHMED says:
    2 years ago

    रिव्यु में रत्ती बाहर भी शक नहीं….

    बेशक़ दक्षिण भारतीय फ़िल्में एक्शन से भरपूर होती है और “धड़ ” से देखने वालों को अच्छी भी लगती है और मुझे भी…. लेकिन आज पता चला कि फ़िल्म दिल और दिमाग से देखी जाती है धड़ से नहीं…

    इस फ़िल्म क़े रिव्यु को पढ़कर और फ़िल्म को देखकर ण जाने क्यों अब फ़िल्में दिल से दिमाग़ से ही देखी जाय तो बेहतर होगा न कि धड़ से….

    कटाक्ष अच्छा है….₹20 क़े 8 मोमोज़….
    और साथ में “सूप free”….!!!

    Reply

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