-दीपक दुआ…
अक्टूबर, 2010 की बात है। सुभाष घई के एक्टिंग स्कूल ‘व्हिस्लिंग वुड्स’ से मेल आया कि उनके यहां से निकले छात्र साहिल वैद के बारे में ‘फिल्मी कलियां’ में जगह दें जो पंकज कपूर को लेकर ‘धर्म’ बना चुकीं भावना तलवार की अगली फिल्म ‘हैप्पी’ में पंकज के साथ आ रहे हैं। नए लोगों को प्रोत्साहित करने की अपनी आदत के चलते उनसे कहा कि चलिए, साहिल से बात करवाइए। सोचा था कि एक छोटी-सी खबर बना देंगे, बंदा खुश हो जाएगा। पर जब साहिल से बात चली तो चलती ही चली गई और हमने उन्हें ‘फिल्मी कलियां’ में पूरे दो पेज दे डाले। तब से शुरू हुआ हमारी दोस्ती का सफर लगातार जारी है। इस बीच साहिल ने फिल्मों में कम और थिएटर में काफी काम किया। ‘हंपटी शर्मा की दुल्हनिया’ में निभाया पोपलू का इनका किरदार भुलाया नहीं जा सकता। छुटपन से ही थिएटर कर रहे साहिल अब ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ में एक बार फिर वरुण धवन के दोस्त के किरदार में नजर आ रहे हैं। हाल में साहिल दिल्ली आए तो मिलने चले आए और हमने फिर ढेरों बातें कीं। उसी बातचीत को सिलेसिलेवार ढंग से परोसा है, देखिए, पढ़िए-
-एक्टिंग के कीड़े ने कब काटा?
-पता ही नहीं चला, बहुत छोटा था शायद तभी काट कर चला गया। पांच-छह साल की उम्र में मैं एक नाटक में सुभाषचंद्र बोस बना था। मेरे पास वह फोटो आज भी है।
-और वह वायरस धीरे-धीरे फैलता चला गया?
-फैलना ही था। पढ़ाई से ज्यादा मजा मुझे एक्टिंग में आता था। हालांकि फुटबॉल भी खेली लेकिन देखा कि वहां तो मार-मार कर सिखाते हैं जबकि स्टेज पर हर चीज बड़े प्यार से सिखाई जाती थी और ढेरों तालियां अलग से मिलती थीं।
-तो स्कूल के बाद आप सीधे मुंबई आ गए?
-नहीं-नहीं। मुंबई आने के बारे में या एक्टिंग को प्रोफेशन बनाने के बारे में कभी नहीं सोचा था। मेरे लिए एक्टिंग एक नशा था, आज भी है जिसे करके मुझे आनंद मिलता है। स्कूल के बाद मैंने मॉस कम्युनिकेशन की पढ़ाई की लेकिन थिएटर था कि छूटता ही नहीं था। दिल्ली में अजय मनचंदा जी के साथ थिएटर कर रहा था। धीरे-धीरे सब ने कहना शुरू कर दिया कि इसे कैरियर बनाओ। और एक दिन पापा ने भी वह सवाल पूछ लिया जो हर बाप अपने बेटे से पूछता है-आगे क्या करना है? और बस, मुंह से निकला-एक्टिंग।
-घरवालों ने एतराज नहीं किया?
-बचपन से ही मेरे घरवालों की तमन्ना थी कि मैं आर्मी में जाऊं। मेरी बुआ आर्मी में बहुत बड़ी अफसर हैं, फूफा जी ब्रिगेडियर हैं, मैंने खुद भी आर्मी में जाने के लिए पेपर दिए लेकिन जब जाने का मन नहीं था तो पेपर भी पास नहीं होने थे। सो, घरवालों को लगा होगा कि जिसमें इसका मन है, वही करने दो। सो, कोई एतराज नहीं हुआ।
-मुंबई जाने की टिकट क्या सोच कर खरीदी थी?
-दरअसल मैंने सुभाष घई जी के इंस्टीट्यूट ‘व्हिस्लिंग वुड्स’ का एक विज्ञापन देखा था। तब मुझे लगा कि अगर एक्टिंग करनी है तो फिल्मों में चला जाए और अगर फिल्मों में जाना है तो मुझे यह कोर्स कर लेना चाहिए। पर जब फीस सुनी तो दिल बैठ गया। लेकिन पापा ने भांप लिया और उन्होंने मुझे भेजा कि जाकर वह काम कर, जिसमें तेरा दिल है।
-व्हिस्लिंग वुड्स से कोर्स करने का कोई फायदा हुआ?
-फायदा यह हुआ कि मुझे कैमरा फेस करना आ गया। बड़े-बड़े नामी लोग आते थे हमारी क्लास लेने। नसीरुद्दीन शाह साहब आते थे, उनके सामने बिना किसी झिझक के काम करना आ गया। फिल्म बनने का पूरा प्रोसेस सीखा। डायरेक्शन सीखा, कैमरा एंगल सीखे, फिल्में बनाईं, फस्र्ट आया, यानी फायदा तो बहुत हुआ।
-काम पाने के लिए कितना स्ट्रगल करना पड़ा?
-स्ट्रगल तो काफी करना पड़ा और वह आज भी चल रहा है। पंकज कपूर जी को लेकर ‘धर्म’ बनाने वाली भावना तलवार की ‘हैप्पी’ मिली जिसमें मैंने पंकज जी जैसे बड़े कलाकार के साथ काम किया लेकिन वह फिल्म रिलीज ही नहीं हो पाई। फिर ‘बिट्टू बॉस’ में एक अच्छा किरदार मिला। सुभाष घई जी ने ‘कांची’ में एक रोल दिया और उसके बाद ‘हंपटी शर्मा की दुल्हनिया’ मिली तो सारा खेल ही बदल गया।
-मगर ‘हंपटी शर्मा की दुल्हनिया’ के बाद लग रहा था कि आप फिल्मों की लाइन लगा देंगे। ऐसा न हो पाने की क्या वजह है?
-लाइन तो लगी थी। उस फिल्म के बाद मेरे पास बहुत सारे ऑफर्स आए लेकिन हर कोई मुझ से बस पोपलू जैसा ही किरदार करवाना चाहता था जबकि मैंने आज से नहीं, बल्कि बहुत पहले से तय किया हुआ है कि मैं एक बार जो किरदार निभा लूंगा, दोबारा वैसा रोल नहीं करूंगा। ‘वेडिंग पुलाव’ मैं साईन करने ही वाला था लेकिन नहीं की। शाहरुख खान की ‘दिलवाले’ में वरुण शर्मा वाला किरदार पहले मुझे ही ऑफर हुआ था लेकिन वह भी फिर दोहराव ही हो जाता।
-यानी आप एक इमेज में कैद होने से बचना चाहते हैं?
-बिल्कुल, और उसकी वजह यह है कि एक बार अगर आपके ऊपर किसी खास इमेज का ठप्पा लग गया तो फिर आप चाहे कितनी कोशिश कर लें, उससे बाहर नहीं निकल पाते। अपनी इंडस्ट्री में ऐसे कितने ही कलाकार हैं जिनमें से कई बड़े स्टार भी हैं, जो एक खास इमेज में बंध गए और फिर कभी उससे बाहर नहीं निकल पाए। मैं अपने साथ ऐसा नहीं होने दूंगा, यह तय है।
-अपनी किस खूबी के दम पर आपको इतना भरोसा है?
-मुझे लगता है कि मेरी विविधता मेरी सबसे बड़ी ताकत है। मैं पंजाबी हूं लेकिन पैदा तमिलनाडु में हुआ। बड़ा हुआ दिल्ली में और फिर मुंबई चला गया। भारत के अलग-अलग शहरों में मैं रह चुका हूं और कई सारी भाषाओं की और कई सारे राज्यों की संस्कृति की मुझे जानकारी है। जब मेरे अंदर यह सब है तो क्यों मैं किसी खास इमेज में खुद को बंध जाने दूं। मुझे यकीन है कि मुझे आप चाहे कैसा भी किरदार दें, मैं उसे निभा लूंगा। फिर चाहे वह कॉमेडी हो, सीरियस हो, रोमांटिक हो या निगेटिव हो।
-अपनी अगली फिल्म के बारे में बताएं?
-अब मैं यशराज की ‘बैंक चोर’ में नजर आऊंगा। यह एक फुलटू एंटरटेंनिंग फिल्म होगी जिसमें रितेश देशमुख, विवेक ओबरॉय और मैं लीड रोल में हैं। इससे ज्यादा इस समय मैं नहीं बता पाऊंगा। जब आप यह फिल्म देखेंगे तो समझ जाएंगे कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं।
-यह तो वही फिल्म है न जो पहले कपिल शर्मा कर रहे थे?
-जी हां, उनके बाद भी करीब 10-12 लोगों के पास यह फिल्म गई लेकिन शायद यह मेरी ही किस्मत में लिखी थी।
-फिल्में काफी कम कर रहे हैं तो आर्थिक संघर्ष कितना करना पड़ा?
-वह भी करना पड़ा। काफी पहले ही तय कर लिया था कि घर से पैसे नहीं मंगवाऊंगा। मैंने तो मुंबई से पुणे के बीच रात-रात भर टैक्सी भी चलाई है। फिर नेशनल ज्योग्राफिर चैनल से जुड़ गया। वॉयस ओवर के काम मिलने लगे। आज भी मैं हिन्दी में डब होकर रिलीज होने वाली हॉलीवुड की बड़ी-बड़ी फिल्मों की डबिंग करता हूं। वहां के टॉप स्टार्स को हिन्दी में डब कर चुका हूं तो पैसे वाली मारामारी नहीं है और इसीलिए मैं बहुत कम और चुनिंदा काम कर पा रहा हूं।
-‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ में क्या किरदार निभा रहे हैं?
-इसमें भी मैं वरुण धवन का दोस्त बना हूं। लेकिन पिछली फिल्म में मैं निठल्ला था जबकि इसमें मैं एक वेबसाइट चलाता हूं ‘चुटकी में शादी डॉट कॉम’ और बद्री यानी वरुण की आलिया से शादी करवाने का जिम्मा इसने अपने ऊपर लिया हुआ है। बड़ा ही मजेदार कैरेक्टर है और यह पूरी फिल्म में वरुण को साधे रखता है।
-वरुण और आलिया, दोनों ही नामी फिल्मी परिवारों से हैं। इनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
-दोनों ही बहुत ही प्यारे, मेहनती और सच्चे इंसान हैं। वरुण की बात करूं तो उसके अंदर बिल्कुल भी यह हवा नहीं है कि वह इतने बड़े डायरेक्टर का बेटा है। कभी मैं उसे कहता हूं कि वरुण इस सीन को ऐसे नहीं, ऐसे करो तो ज्यादा अच्छा होगा, तो वह बात सुनता भी है और मानता भी है। जहां तक आलिया की बात है तो उससे तो मैं भी सीखता हूं। इस लड़की ने कभी छोटे शहर-कस्बे नहीं देखे, गरीबी नहीं देखी, उसके बावजूद वह ऐसे किरदार कर जाती है जैसे ‘उड़ता पंजाब’ में उसने किया तो यह उसके अंदर का वह टेलेंट है जो उसे ऊपर वाले से मिला है।
-कभी हीरो बन कर पर्दे पर आने का मन नहीं होता?
-पहले नहीं होता था लेकिन अब होने लगा है। हीरो बनने का तो नहीं, नाम कमाने का मन है और इसकी वजह यह है कि अच्छे किरदार तो सारे नामी लोगों के पास चले जाते हैं। मुझे बड़ा घर, बड़ी गाड़ी नहीं चाहिए, लेकिन बड़ा काम तो चाहिए, बड़ी संतुष्टि तो चाहिए और इसके लिए मैं जो बन पड़ेगा, करूंगा।
-थिएटर से अभी भी जुड़े हुए हैं?
-बिल्कुल। मैं कोई चीज छोड़ता नहीं हूं। मैं नसीर सर के थिएटर ग्रुप ‘मोटली’ से जुड़ा हुआ हूं और हम लोग लगातार कुछ न कुछ करते रहते हैं।
-एक्टिंग के अलावा भी और कुछ करने का मन है?
-डायरेक्टर बनूंगा। पहले जरा एक्टिंग में खुद को जमा लूं उसके बाद एक दिन अपनी फिल्म भी बनाऊंगा।
(रिव्यू-अपनों और सपनों के बीच भागती दुल्हनिया)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)