• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home विविध

किस्से सुनाते और दिखाते हैं राकेश चतुर्वेदी

Deepak Dua by Deepak Dua
2020/03/06
in विविध
0
किस्से सुनाते और दिखाते हैं राकेश चतुर्वेदी
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

–दीपक दुआ…

थिएटर यानी रंगमंच मूलतः कहानियां कहने का ही मंच हैं जहां पर कलाकार खुद को विभिन्न कहानियों के किरदारों में बदल कर अपने अभिनय से मंचित करते हैं। लेकिन रंगमंच भी अपने भीतर कई तरह की विधाएं समेटे है। इन्हीं में से एक है किसी अकेले कलाकार द्वारा मंच पर कहानियों को भावों और भंगिमाओं द्वारा सुनाना या दिखाना। आम भाषा में इसे किस्सागोई कह सकते हैं। लेकिन देखा जाए तो यह किस्सागोई की प्रचलित परंपरा से भी अलग है। क्या है यह और कैसे होता है कहानियों का मंचन। आइए जानते हैं दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक, प्रसिद्ध अभिनेता-निर्देशक राकेश चतुर्वेदी से जो अधिकतर सआदत हसन मंटो की कहानियों को रंगमंच पर सुनाते हैं। पिछले वर्ष आई अक्षय कुमार की फिल्म ‘केसरी’ में मुल्ला सैदुल्लाह के किरदार से काफी चर्चित हुए राकेश नसीरुद्दीन शाह को लेकर ‘बोलो राम’ और मनोज पाहवा के साथ ‘भल्ला एट हल्ला डॉट कॉम’ निर्देशित कर चुके हैं। अब राकेश अपनी तीसरी फिल्म ‘मंडली’ लाने की तैयारियों में व्यस्त हैं। लेकिन अपने पहले प्यार यानी थिएटर पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं। वह बताते हैं:-

‘किस्सागोई या दास्तानगोई अपने यहां की सदियों पुरानी परंपरा है। लेकिन इसमें आमतौर पर दो कलाकार एक जगह बैठ कर किसी किस्से को काव्यात्मक अंदाज में सुनाते हैं। इसमें उनकी एक तय पोशाक भी होती है और संगीत आदि का सहारा भी लिया जा सकता है। लेकिन हम लोग जो करते हैं उसे आप कहानियों का मंचन कह सकते हैं। यह ठीक वैसे ही है जैसे अपने यहां दादी-नानी बच्चों को बिठा कर कोई कहानी सुनाती हैं। न कोई साज-सामान होता है, न संगीत की व्यवस्था, न ही कोई तय पोशाक। बस एक स्टेज होता है और अगर कहानी सुनाने वाले को बैठने की जरूरत महसूस हुई तो एक कुर्सी, मोढ़ा या हद से हद चारपाई। कहानी सुनाने वाला कहानी कहते-कहते कब उसके किरदारों में तब्दील हो जाता है, कब अभिनय करने लग जाता है, पता ही नहीं चलता।’

‘कहानियों का इस तरह से मंचन भी काफी पुरानी विधा है। नसीरुद्दीन शाह यह करते रहे हैं। स्वर्गीय फारूक शेख साहब और शबाना आजमी ‘तुम्हारी अमृता’ में आमने-सामने बैठ कर जो खत पढ़ा करते थे, वह भी इसी विधा में ही गिना जा सकता है। जहां तक मेरी बात है मैंने नसीर साहब के थिएटर ग्रुप ‘मोटले’ के अलावा और भी कई लोगों के साथ यह काम किया है। आजकल मैं और मधुरजीत सरगी (फिल्म ‘छपाक’ में दीपिका पादुकोण की वकील) मिल कर यह करते हैं। इस काम के लिए हम आमतौर पर ऐसी कहानियों का चयन करते हैं जो बड़े लेखकों की हों, जिन्हें लोगों ने पढ़ा हो ताकि वे इनसे खुद को जोड़ पाएं। हालांकि कई बार नए लेखकों की कहानियां भी ले लेते हैं लेकिन मंटो, अमृता प्रीतम आदि की कहानियों को लेने में सुविधा यह रहती है कि ज्यादातर लोग इनसे वाकिफ होते हैं और जब वे इन्हें एक नए अंदाज में अपने सामने मंचित होते हुए देखते हैं तो रोमांचित हो उठते हैं।’

‘किसी कहानी को चुनने के बाद उसे मंच तक ले जाने के बीच आमतौर पर तीन से छह महीने का फासला होता है। इस बीच मैं उस कहानी को पढ़ता हूं, बार-बार पढ़ता हूं, इतनी बार पढ़ता हूं कि वह मेरे भीतर पैठ जाती है और उसका हर किरदार मुझे अपने भीतर आकार लेता हुआ महसूस होने लगता है। इसके बाद आमतौर पर हम लोग पहले कहानी सुनाने से शुरूआत करते हैं। दोस्तों की महफिल में या किसी समारोह आदि में सिर्फ उसे सुनाया जाता है बिना किसी भावाभिनय के। फिर धीरे-धीरे हम उसमें भावों को पिरोते चले जाते हैं और जब फाइनली उसे स्टेज पर उतारते हैं तो हमारी कोशिश यही रहती है कि देखने वाले को यह आभास ही न हो कि वह कहानी सुन रहा है या देख रहा है। जैसे मंटो की कहानी ‘मम्मद भाई’ करते समय मैं मंटो होता हूं तो कभी मम्मद भाई तो कभी उस कहानी का कोई और किरदार।’

‘पिछले कुछ समय से कहानी कहने की इस विधा को काफी पसंद किया जाने लगा है। मुंबई और दिल्ली के अलावा छोटे शहरों में भी ऐसे छोटे-छोटे मंच विकसित हुए हैं जहां पर सौ-दो सौ लोगों के बीच इस तरह की कला का प्रदर्शन किया जाए। चूंकि इसमें किसी तरह का कोई तामझाम नहीं होता है इसलिए कोई खास खर्चा भी नहीं आता है और जो भी टिकट रखी जाती है उससे कलाकारों के खर्चे भी निकल ही आते हैं।’

‘इस तरह के शोज में दर्शकों की भागीदारी की बात करें तो यह सही है कि ज्यादा संख्या में युवा दर्शक ही आते हैं लेकिन बड़ी उम्र के लोग भी हमने देखे हैं जिन्होंने साहित्य पढ़ा होता है, नाटक देखे होते हैं और फिर भी वे लोग हमें देखते हैं, सराहते हैं तो बहुत अच्छा लगता है। एक कलाकार के तौर पर तो हमारा हौसला बढ़ता ही है साथ ही यह विश्वास भी मजबूत होता है कि थिएटर के प्रति लोगों का रुझान कम नहीं हुआ है। हम कलाकारों के लिए यह विश्वास ही काफी बड़ा सहारा है।’

(नोट-यह लेख एयर इंडिया की इन-फ्लाइट पत्रिका ‘शुभ यात्रा’ के मार्च-2020 अंक में प्रकाशित हुआ है।)

(‘केसरी’ फिल्म का ‘चल झूठा’ यानी राकेश चतुर्वेदी)

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: kissagoikisserakesh chaturvedirakesh chaturvedi omराकेश चतुर्वेदी
ADVERTISEMENT
Previous Post

वेब-रिव्यू : इंसानी मन के अंधेरों को दिखाती ‘असुर’

Next Post

रिव्यू-क्यों तारीफों के काबिल है ‘बागी 3’

Related Posts

2024 की इन वेब-सीरिज़ में से आप किसे अवार्ड देना चाहेंगे?
विविध

2024 की इन वेब-सीरिज़ में से आप किसे अवार्ड देना चाहेंगे?

2024 की इन फिल्मों में से किसे मिलेंगे क्रिटिक्स चॉयस अवार्ड्स?
विविध

2024 की इन फिल्मों में से किसे मिलेंगे क्रिटिक्स चॉयस अवार्ड्स?

लहरों पर फिल्मी हलचलें
विविध

लहरों पर फिल्मी हलचलें

इफ्फी गोआ में लोक-संगीत व नृत्य का आनंद
विविध

इफ्फी गोआ में लोक-संगीत व नृत्य का आनंद

निर्देशक राजीव राय की धमाकेदार वापसी
विविध

निर्देशक राजीव राय की धमाकेदार वापसी

2023 की इन वेब-सीरिज़ में से आप किसे अवार्ड देना चाहेंगे?
विविध

2023 की इन वेब-सीरिज़ में से आप किसे अवार्ड देना चाहेंगे?

Next Post
रिव्यू-क्यों तारीफों के काबिल है ‘बागी 3’

रिव्यू-क्यों तारीफों के काबिल है ‘बागी 3’

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment