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Home बुक-रिव्यू

पुस्तक समीक्षा-सिलोन वाले रेडियो का सफर

Deepak Dua by Deepak Dua
2018/04/30
in बुक-रिव्यू
0
पुस्तक समीक्षा-सिलोन वाले रेडियो का सफर
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-दीपक दुआ…
आज की पीढ़ी शायद यह जानती भी न हो कि आजादी के तुरंत बाद सरकार ने भारतीय रेडियो पर हिन्दी फिल्मों के गीत प्रसारित करने पर पाबंदी लगा दी थी और तब इस मौके का फायदा सिलोन यानी श्रीलंका से प्रसारित होने वाले रेडियो सिलोन ने उठाते हुए करोड़ों श्रोताओं पर गीत-संगीत की ऐसी मनोरंजक वर्षा की थी लोग बरसों तक उससे सराबोर होते रहे।

उस दौर की एक पूरी पीढ़ी रेडियो सिलोन, उस पर आने वाले कार्यक्रमों और उसके उद्घोषकों की दीवानी हुआ करती थी। इन्हीं बेहिसाब दीवानों में से एक थे अनिल भार्गव जिन्होंने 6-7 साल की उम्र से ही अमीन सायानी के रेडियो कार्यक्रम ‘बिनाका गीतमाला’ को सुनना और उसमें सुनाए जाने वाले गीतों को अपनी नोटबुक में लिखना शुरू किया। धीरे-धीरे उनकी यह दीवानगी हद पार करती गई और वह बिना रुके करीब 42 साल तक यह काम करते रहे। लेकिन तब किसे पता था कि इन गीतों की सूचियां बनाने के साथ-साथ वह असल में हिन्दी फिल्मों के गीत-संगीत का ऐसा चिठ्ठा तैयार कर रहे हैं जो आने वाली नस्लों के लिए बतौर धरोहर काम आएगा। राजस्थान के विभिन्न कॉलेजों में अध्यापन करने और फिर बतौर प्रिंसीपल रिटायर होने के बावजूद अनिल भार्गव ने अपनी यह दीवानगी बरकरार रखी और ‘बिनाका गीतमाला का सुरीला सफर’, ‘हिन्दी फिल्म संगीत-75 वर्षों का सफर’, ‘हिन्दी फिल्मों के गीतकार’, ‘सदी की सौ सर्वश्रेष्ठ फिल्में’, ‘स्वरों की यात्रा’, ‘भारतीय सिनेमा का इतिहास’, ‘हिन्दी सिनेमा-सदी का सफर’ जैसी कई पुस्तकें लिख डालीं। उनकी अगली किताब ‘रेडियो सिलोन: तब से अब तक’ इसी दीवानगी की श्रृंखला में अगली कड़ी है।

इस पुस्तक में अनिल भार्गव रेडियो सिलोन के परिचय से शुरू करके इसके खड़े होने, नाम और भवन बदलने, इसके पुराने उद्घोषकों से लेकर अब तक के एनाउंसरों के बारे में बताने, इसके तमाम कार्यक्रमों से परिचय करवाने के साथ-साथ इसके महत्व, इसके गिरते स्तर, इसकी लोकप्रियता में कमी आने और इसके संभावित स्वरूप पर गहरी नजर डालते हैं। इसी के साथ-साथ वह ढेरों रोचक किस्सों के जरिए लगातार पठनीयता भी बनाए रखते हैं। जयपुर के सिने साहित्य प्रकाशन से आई यह किताब हिन्दी फिल्मी गीत-संगीत, संचार-क्षेत्र और विशेषकर रेडियो में रूचि रखने वालों के लिए एक पठनीय, सराहनीय और संग्रहणीय पुस्तक है।

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: anil bhargavacine sahitya prakashan jaipurradio ceylon book
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