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Home फिल्म/वेब रिव्यू

ओल्ड रिव्यू-‘राज 3’ डराती है, दहलाती नहीं

Deepak Dua by Deepak Dua
2012/09/07
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
ओल्ड रिव्यू-‘राज 3’ डराती है, दहलाती नहीं
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

जब बात भूत-प्रेत और काले जादू की हो तो मौजूदा दौर में राम गोपाल वर्मा और विक्रम भट्ट ही हैं जो इस मसाले की दुकानें खोले बैठे हैं। भट्ट कैंप की ‘राज’ सीरिज़ की इस तीसरी फिल्म की खासियत यह है कि इसे पहले पार्ट की तरह विक्रम भट्ट ने ही निर्देशित किया है और इस बार उन्होंने समझदारी यह दिखाई है कि एक भावना प्रधान प्रेम-कहानी के इर्द-गिर्द भूत-प्रेत और काले जादू का आडंबर रचा है। यही वजह है कि इधर आई विक्रम की अपनी ही भूतिया फिल्मों से भी यह फिल्म इक्कीस बैठती है।

फिल्म की कहानी साधारण है। फिल्मों की एक चोटी की अभिनेत्री और एक मशहूर निर्देशक का अफेयर है। इस अभिनेत्री ने ही सहारा देकर इस निर्देशक को मशहूर बनाया। पर अब एक नई लड़की धीरे-धीरे इस हीरोइन को पीछे छोड़ रही है। उससे यह सहन नहीं होता और वह काले जादू की मदद लेकर उसकी ज़िंदगी बिगाड़ने पर तुल जाती है। उसका डायरेक्टर आशिक भी इस काम में उसकी मदद करता है। लेकिन धीरे-धीरे इस डायरेक्टर का झुकाव इस नई लड़की की तरफ होने लगता है तो पुरानी प्रेमिका इन दोनों से बदला लेने पर उतारू हो जाती है। इन दोनों लड़कियों का अपना-अपना अतीत भी है। अंत में बुराई पर अच्छाई की जीत तो होनी ही है।

इस कहानी में प्रेम-त्रिकोण, धोखा-समर्पण, छल-कपट जैसी भावनाएं हैं तो वहीं काले जादू और तंत्र-मंत्र का जो बैकड्रॉप तैयार किया गया है वह इसे एक दर्शनीय फिल्म में तब्दील करता है। फिल्म की पटकथा में कहीं-कहीं सुस्ती है लेकिन यह ठीक-ठाक रफ्तार से अपनी पटरी पर चलती रहती है। रही तार्किकता की बात, तो हॉरर फिल्मों में तर्क नहीं ढूंढे जाते और जो लोग इन्हें देखना पसंद करते हैं वे तक-वितर्क के पचड़े में पड़ते भी नहीं हैं। संवाद कुछ एक जगह काफी अच्छे हैं। गीतों के शब्द अर्थपूर्ण हैं और धुनें प्रभावी हैं। यह अलग बात है कि न सिर्फ म्यूज़िक बल्कि पूरी की पूरी फिल्म ही भट्ट कैंप की तमाम फिल्मों की तरह डार्क और जटिल है जिसमें किसी तरह के कॉमिक रिलीफ को खोजना बेकार है।

बिपाशा बसु और इमरान हाशमी का अभिनय किसी नएपन के न होने के बावजूद बुरा नहीं कहा जा सकता। ऐशा गुप्ता ज़रूर कहीं-कहीं लड़खड़ाती नज़र आईं। हां, न तो बिपाशा और न ही ऐशा ने गर्मागर्म सीन करने में किसी तरह की झिझक दिखाई। सच तो यह भी है कि एक किस्म का सॉफ्ट-पॉर्न परोसती है यह फिल्म।

एक हॉरर फिल्म का सबसे बड़ा खज़ाना होता है डर का वह मसाला जिसे कहानी के ऊपर लपेटा जाता है। वे झटके जो बार-बार आकर दर्शकों को डराते हैं। इस फिल्म में ये झटके हर थोड़ी-थोड़ी देर के बाद आकर अपना काम बखूबी कर जाते हैं। ये झटके थोड़े और ज़्यादा होते और दर्शकों को डराने के साथ-साथ दहला भी पाते तो बेहतर होता। विक्रम भट्ट का निर्देशन इस बार काफी सधा हुआ रहा है और यही वजह है कि यह फिल्म अपने फ्लेवर की फिल्मों में सिर उठाए खड़ी दिखाई देती है। इसके 3-डी इफैक्ट्स भी काफी अच्छे हैं और पर्दे पर डर देखने वालों के लिए यह एक अच्छी टाइम-पास फिल्म है।

अपनी रेटिंग-3 स्टार

(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर छपा था)

Release Date-07 September, 2012

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: bipasha basuemraan hashmiesha guptaJagat RawatManish Choudharymohan kapoorRaaz 3 reviewShagufta Rafiquevikram bhatt
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