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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-ज्योतिबा की क्रांति दिखाती ‘फुले’

Deepak Dua by Deepak Dua
2025/04/25
in फिल्म/वेब रिव्यू
1
रिव्यू-ज्योतिबा की क्रांति दिखाती ‘फुले’
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

महान समाज सुधारक ज्योतिराव फुले (1827-1890) और उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले (1831-1897) के बारे में हम सबने सुना है। लेकिन कितना…? दरअसल भारत भूमि के हर कोने में इतने सारे महान व्यक्ति जन्म ले चुके हैं कि हर किसी के बारे में हर कोई विस्तार से जान भी नहीं सकता। किताबें हर कोई पढ़ता नहीं, ऐसे में सिनेमा आकर हमें इनके बारे में बताते हुए अपनी भूमिका सार्थक करता है। निर्देशक अनंत नारायण महादेवन की यह फिल्म ‘फुले’ यही काम करती है, पूरी सफलता के साथ।

ज्योतिबा फुले ने समतामूलक समाज का न सिर्फ स्वप्न देखा था बल्कि अपना पूरा जीवन उस स्वप्न को सत्य बनाने में लगा दिया। खासतौर से बेटियों को शिक्षित करने और स्त्रियों को उनके अधिकार दिलवाने जैसे उनके कार्य वंदनीय थे। उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले ने भी इस क्रांति में कंधे ने कंधा मिला कर उनका साथ दिया। वह सावित्री बाई ही थीं जिन्होंने शूद्रों को पहली बार ‘दलित’ नाम दिया था। ज्योतिबा को ‘महात्मा’ कहा गया और आज तक पूरा भारत फुले दंपती को पूज्य मानता है। यह फिल्म ‘फुले’ उनकी इसी संघर्ष यात्रा को दिखाती है।

अपनी शुरुआत में फिल्म बताती है कि इसे अच्छे-खासे रिसर्च के बाद बनाया गया है। फुले दंपती के बारे में लिखा गया और उनके द्वारा लिखा गया साहित्य प्रचुरता से उपलब्ध है इसलिए इस रिसर्च में मुश्किल नहीं आई होगी। मगर दो घंटे में उनकी पूरी यात्रा को समेट पाना असंभव है। यही कारण है कि यह फिल्म उनके जीवन के कुछ हिस्से दिखाते हुए प्रभावित तो करती है लेकिन सिनेमा के पर्दे पर जिस ‘नाटकीयता’ की ज़रूरत किसी दर्शक को होती है, उसकी कमी इसे देखते हुए लगातार खलती रहती है। फिल्म में एक जगह ज्योतिराव कहते हैं कि अंग्रेज़ों की गुलामी तो फिर भी सौ साल पुरानी है मैं तो लोगों को तीन हज़ार साल पुरानी गुलामी से स्वतंत्र कराना चाहता हूं। यह बहस का विषय हो सकता है कि क्या सचमुच ईसा से एक हज़ार साल पहले से लेकर 1850 तक भारत में शूद्रों के साथ अन्याय हो रहा था…? इतिहास ऐसा नहीं बताता। फिर इस फिल्म में सावित्री बाई के साथ उन फातिमा शेख को भी भारत की पहली अध्यापिका के तौर पर दर्शाया गया है जिनके बारे में एक नामी एक्टिविस्ट ने पिछले दिनों कहा था कि वह तो असल में उन्हीं के द्वारा बरसों पहले रचा गया एक काल्पनिक किरदार है। ज्योतिबा से जुड़े प्रामाणिक साहित्य में भी फातिमा का उल्लेख नहीं मिलता है।

चलिए, क्या दिखाया गया या क्या दिखाया जाना चाहिए, यह लेखक-निर्देशक की मर्ज़ी हो सकती है। लेकिन जो दिखाया गया, वह कितना ‘दर्शनीय’ है, उससे दर्शक कितने आकर्षित होंगे, यह एक फिल्मकार को अवश्य देखना होगा। मगर इस मोर्चे पर अनंत नारायण महादेवन सशक्त नहीं दिखे। कथा के प्रस्तुतिकरण में वे ऊंचाइयां और गहराइयां नहीं हैं जो दर्शक को उद्वेलित कर सकें। एक रूखा, ठंडा किस्म का ट्रीटमैंट पूरी फिल्म में लगातार दिखाई दिया है जिसके चलते पर्दे की उष्मा थिएटर में बैठे दर्शकों तक नहीं पहुंच पाती। सच तो यह है कि एक महान शख्सियत का जीवन दिखाती यह कहानी एक फिल्म की शक्ल में थिएटरों पर आने की बजाय एक लंबी सीरिज़ के रूप में किसी ओ.टी.टी. पर आए तो इसे न सिर्फ ज़्यादा देखा जा सकेगा बल्कि इसे सहेजा भी जा सकेगा।

प्रतीक गांधी ने ज्योतिबा के किरदार को प्रभावी ढंग से निभाया है। सावित्री बाई बनीं पत्रलेखा ने भी असर छोड़ा। विनय पाठक, सुशील पांडेय, दर्शील सफारी जैसे अन्य कलाकार भी सही रहे। गीत-संगीत सामान्य रहा। ज्योतिबा की स्तुति करता एक गाना असरदार लगा। लोकेशन विश्वसनीय दिखीं लेकिन सैट्स आदि फिल्म के कम बजट की चुगली खाते रहे। संवादों में मराठी और अंग्रेज़ी का इस्तेमाल इस फिल्म की पहुंच को सीमित करता है। फुले दंपती के संघर्ष को खुल कर दिखाती यह एक अच्छी फिल्म है। अपने इतिहास में समाज के एक वर्ग के प्रति होने वाले भेदभाव को दिखा कर यह फिल्म सबक देती है कि बंटे हुए लोग अक्सर गुलाम हो जाया करते हैं। कुछ समझना, सीखना चाहें तो यह फिल्म देखी जा सकती है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-25 April, 2025 in theaters

(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)

Tags: anant mahadevananant narayan mahadevandarsheel safaryjyotiba phulepatralekhaphulephule reviewpratik gandhisavitri bai phulesushil pandeyvinay pathak
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Comments 1

  1. Bharat Kumar says:
    3 weeks ago

    वाकई में यह फिल्म, अगर फिल्मी रूप के बजाय अगर सीरीज के रूप आती तो, एक लंबे अरसे तक अपना प्रभाव ottt पर कायम रखती। बशर्ते समय समय पर इसका प्रचार इंस्टाग्राम रील और यूट्यूब शॉट्स बनाकर किया जाए

    Reply

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