-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
इस बात में किसी को शक नहीं हो सकता कि पंकज कपूर एक उत्कृष्ट अभिनेता हैं। बड़े-छोटे पर्दे पर निभाए अपने असंख्य किरदारों के ज़रिए वह यह बात कई बार साबित कर चुके हैं कि अभिनय का जो पाठ वह पढ़ा सकते हैं वैसा कम से कम अपने यहां तो कोई और नहीं पढ़ा सकता। लेकिन जब वह बतौर डायरेक्टर अपनी इस पहली फिल्म को लेकर आ रहे थे तब हर कोई यह बात दावे से नहीं कह सकता था कि वह एक उत्कृष्ट निर्देशक भी साबित होंगे। अब ‘मौसम’ को देखने के बाद और कुछ भले ही न कहा जाए लेकिन यह बात पूरे हक के साथ कही जा सकती है कि पंकज कपूर एक बेहतरीन स्टोरी-टैलर तो ज़रूर हैं। कहानी को गढ़ने, बुनने, बताने, फैलाने और समेटने का जो हुनर उन्हांने इस फिल्म में दिखाया है उससे वह एक चटक सैल्यूट के हकदार हो जाते हैं।
नायक-नायिका की पहली मुलाकात से उनके मिलन तक के बरसों लंबे सफर पर कई फिल्में आ चुकी हैं। सैफ अली खान, रानी मुखर्जी वाली ‘हम तुम’ इसकी उम्दा मिसाल है। लेकिन ‘मौसम’ की कहानी सिर्फ एक लड़के और लड़की के बार-बार मिलने और बिछड़ने की ही कहानी नहीं है बल्कि यह दूसरों को और अगल-बगल के हालात को भी साथ लेकर चलती है। यह धीरे-धीरे ग्रो करती है और इसके सफर में देश-दुनिया की मौजूदा तस्वीरें भी अपनी भूमिका अदा करती हैं। दरअसल एक संवेदनशील लेखक है भी वही जो अपने आसपास की दुनिया से वाकिफ हो और पंकज कपूर ने अपनी इस पहली ही कोशिश में यह बात पूरे दावे के साथ मनवाई है।
1992 में कश्मीर के हालात के चलते पंजाब के एक गांव में रहने आई आयत (सोनम कपूर) और उसी गांव के हरिंदर (शाहिद कपूर) की प्रेम-कहानी सिरे चढ़ने से पहले ही अयोध्या-मसले के चलते बिखर जाती है। सात साल बाद स्कॉटलैंड में ये दोनों मिलते हैं। बात इनकी शादी तक पहुंचने ही वाली होती है कि एयरफोर्स पायलट हरिंदर को कारगिल की लड़ाई में शामिल होने के लिए जाना पड़ता है। कई साल बीत जाते हैं और अंत में गुजरात के दंगों में ये दोनों मिलते हैं।
इस कहानी की सबसे बड़ी खासियत है इसके अंदर छुपी वह गर्माहट जो इधर हिन्दी सिनेमा के पर्दे से लगभग गायब हो चली है। रिश्तों की यह गर्माहट सिर्फ एक लड़के और लड़की के इश्क की ही नहीं है बल्कि एक परिवार के सदस्यों के बीच, एक गांव के लोगों के बीच, दोस्तों के दरम्यां, हिन्दू-मुस्लिम के बीच और इनसे भी ऊपर दो इंसानों के बीच भी साफ नज़र आई है। यह कहानी मोहब्बत की एक ऐसी गहराई दिखाती है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है और यह भी तय है कि यह छुअन हर किसी को हो भी नहीं सकती। पॉपकॉर्न चबाते और पेप्सी गटकते हुए फिल्में देखने वाली नई पीढ़ी को तो शायद बिल्कुल नहीं।
प्यार का रूहानी अहसास फिल्मी पर्दे पर कम ही महसूस होता है। ‘एक दूजे के लिए’ में जिस शिद्दत से वह था कुछ वही बात यहां भी मौजूद है। हैरी और आयत का प्यार लड़कपन से शुरू होकर अगले दस साल में अपने कई रंग बदलता है। उनका एक-दूजे को पर्चियां लिखना लुभाता है तो स्कॉटलैंड की एक बरसाती रात में ये दोनों ‘श्री 420’ के राज कपूर और नरगिस हो जाते हैं। हैरी पर मरने वाली रज्जो किसी और से शादी करने के बाद भी दिल के हाथों जिस तरह से मजबूर है, वह प्यार को समझ सकने वालों की ही समझ में आ सकता है।
शाहिद कपूर अपने किरदार में इस कदर समाए हुए नज़र आए हैं कि लगता है पंकज कपूर ने अपना सारा हुनर अपने बेटे में भर दिया है। सोनम खूबसूरत रही हैं और प्रभावी भी। बाकी तमाम कलाकार भी अपने-अपने किरदारों के साथ भरपूर न्याय करते दिखे हैं। फिल्म के गाने कहानी का हिस्सा लगते हैं। फोटोग्राफी बेइंतहा खूबसूरत है। फिल्म की लंबाई ज़्यादा है और कुछ एक जगह यह बोझिल भी हो उठती है। मगर हर बात रफ्तार से तो नहीं कही जा सकती न।
मोहब्बत की तपिश, इश्क के सुकून और रिश्तों की गहराइयां समझने वालों को यह फिल्म अपने दिल के करीब लगेगी। बहुत ही लवली ‘मौसम’ है यह, भीग जाइए इसके रस में।
(फिल्म ‘मौसम’ पर लिखा मेरा यह समीक्षात्मक आलेख फिल्म मासिक पत्रिका ‘फिल्मी कलियां’ के नवंबर, 2011 अंक में प्रकाशित हुआ था)
Release Date-23 September, 2011 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)