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Home यादें

यादें-1998 की वह पहली मुंबई यात्रा (भाग-2)

Deepak Dua by Deepak Dua
1998/08/22
in यादें
1
यादें-1998 की वह पहली मुंबई यात्रा (भाग-1)
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-दीपक दुआ…

23 अगस्त, 1998 रविवार का दिन था जब मौसा जी के कैंप में नाश्ता करने के बाद हम लोग अपना सामान लेकर एक ऑटो-रिक्शा से बांद्रा स्टेशन पहुंचे और वहां से लोकल पकड़ कर मलाड।

(पिछला भाग पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)

वहां से एक ऑटो ने हमें उस सोसायटी में पहुंचा दिया। मीटर की रीडिंग इस बार भी 7 रुपए 70 पैसे थी और आठ रुपए देने पर उसने हमें बाकायदा 30 पैसे वापस भी किए। हम हैरान थे और सोच रहे थे कि हमारी दिल्ली के ऑटो-रिक्शा वाले कब इतने ईमानदार होंगे? कभी होंगे भी या नहीं? उस फ्लैट में हमारी मुलाकात सबसे पहले 20-21 साल के केयरटेकर कल्याण से हुई। पता चला कि वहां और भी कुछ लोग रह रहे हैं जो निर्देश त्यागी जी के परिचित थे। इनमें पहले थे जयप्रकाश चौधरी जो फिल्मों में सहायक कैमरामैन के तौर पर काम करते थे और मशहूर सिनेमैटोग्राफर पटनी बंधुओं के असिस्टैंट थे। एक अनुज नामक युवक था जो कारोबार के सिलसिले में मुंबई आया हुआ था। इन सब के साथ हमने भी इसी कमरे में अपना बोरिया-बिस्तर जमा लिया। यह भी पता चला कि इस फ्लैट के दूसरे कमरे में एक युवा दंपती रहते हैं जो दिन भर सोते हैं और शाम को बाहर चले जाते हैं व फिर देर रात लौटते हैं। अजब नगरी, गजब किरदार।

मुंबई की सैर पर

थोड़ी देर यहां रुक कर मैं और विद्युत भाई वापस मलाड जा पहुंचे और वहां से एक लोकल पकड़ कर चर्चगेट। यहां पास में ही महाराष्ट्र टूरिज़्म वालों का ऑफिस है। फिल्मों के अलावा पर्यटन पर लिखने की आदत ने इतना होमवर्क करना तो सिखा ही दिया था कि किसी नई जगह पर जाने से पहले वहां के बारे में सारी जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए। उन दिनों यहां से मुंबई-दर्शन के लिए दो तरह के टूर ऑपरेट किए जाते थे-एक पूरे दिन का और दूसरा आधे दिन का। चूंकि दोपहर हो चुकी थी इसलिए हमने आधे दिन के टूर के दो टिकट लिए। बस आने में अभी देर थी इसलिए हम सामने ही स्थित नरीमन प्वाईंट और मरीन ड्राइव देखने चले गए। थोड़ी देर बाद लौटे और पर्यटन विभाग की उस बस से हमने मुंबई की सैर शुरू कर दी। गेटवे ऑफ इंडिया, ताज होटल, मैरीन ड्राइव, राजा जी टॉवर आदि होते हुए बस का पहला पड़ाव प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूज़ियम था। अब इसका नाम छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय किया जा चुका है। यहां से चले तो टॉवर ऑफ साइलेंस दिखाया गया। बताया गया कि पारसी लोग यहां मृतकों का अंतिम संस्कार करते हैं। पास ही हैंगिग गार्डन और बूट हाऊस भी देखा जहां जूते के आकार की एक छोटी-सी इमारत बनी हुई है। चलती बस से हाजी अली की दरगाह दिखाई गई और अगला पड़ाव हुआ डिस्कवरी ऑफ इडिया बिल्डिंग। फिर चौपाटी दिखाते हुए तारापुर एक्वेरियम ले जाया गया।

शाम को टूर खत्म होने के बाद हम दोनों टहलते हुए गेटवे ऑफ इंडिया और ताज होटल देखने जा पहुंचे। यहां से ‘बेस्ट’ की बस पकड़ कर हम लोग गिरगांव चौपाटी पहुंचे। अभी हम यहां की रौनकें देख ही रहे थे कि अचानक बारिश शुरू हो गई। अगस्त के महीने में मुंबई की सैर का प्लान बना था सो हमारे बैगों में छाते पहले से ही मौजूद थे। वहां से निकल कर हम लोग सामने ही स्थित चर्नी रोड स्टेशन पहुंचे और लोकल पकड़ कर मलाड आ गए। छुट्टी का यह दिन यूं घूमने और मुंबई देखने में खत्म हुआ। अब अगले दिन से हमें अपने काम पर लगना था।

(आगे पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: BESTchitralekhaJai Prakash ChaudharyMaharashtra Tourismmumbaimumbai 1998Mumbai TourNirdesh Tyagi
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Comments 1

  1. NAFEES AHMED says:
    1 year ago

    पढ़कर ऐसा लग रहा है कि जैसे कि कोई फ़िल्म चल रही हो…… एक लायबद्ध तारीके का वर्णन….

    Reply

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