-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
एक कम पैसे वाला, कम पढ़ा-लिखा लेकिन मस्तमौला, दिलदार लड़का। उसे मिलती है एक परिपक्व, सुलझी हुई अमीर लड़की। दोनों में हो जाता है प्यार। मगर बीच में आ जाती है पैसे की दीवार। लड़की के बराबर पहुंचने की चाह में लड़का चल पड़ता है गलत रास्ते पर। लेकिन उसका ज़मीर आड़े आ जाता है। फिर कुछ गलतफहमियां और आखिर में सब ठीक… यानी हैप्पी एंडिंग।
अब देखा जाए तो इस कहानी में कुछ नया भले न हो लेकिन इतना मसाला तो है कि इस पर एक अच्छी फिल्म बनाई जा सके। इस फिल्म से अपनी शुरुआत कर रहे लेखक-निर्देशक सुपवित्र बाबुल ने इस कहानी को एक अलग अंदाज में कहने की जो कोशिश की वह सराहनीय है मगर यह भी सच है कि अपनी इस कोशिश में वह पूरी तरह से नहीं सध पाए हैं।
पंजाब के आनंदपुर शहर का स्टार वीडियो शूटर है बिट्टू। खुशी का कोई भी मौका हो, वीडियो बनाएगा तो सिर्फ बिट्टू। अपने काम का बॉस है वह। उसका मानना है कि वह कैमरे में लोगों को नहीं उनकी खुशियों के पल कैद करता है। एक अमीर लड़की से हुई दोस्ती और उसके बराबर पहुंचने का ताना पाकर बिट्टू एक शॉर्टकट अपना तो लेता है लेकिन अपने ज़मीर की सुन कर जल्द ही लौट भी आता है।
फिल्म की कहानी में जान है और टुकड़ों-टुकड़ों में यह लुभाती है, छूती है, सोचने पर भी मजबूर करती है। लेकिन यह बात पूरी फिल्म पर लागू नहीं होती तो इसकी वजह है इसकी स्क्रिप्ट का बार-बार ढीला पड़ जाना। दमदार डायलॉग्स की कमी भी इसे हल्का ही बनाती है। इस कहानी के तमाम किरदार कायदे से रचे गए हैं। जिस कैरेक्टर की जो विशेशताएं हैं, कमोबेश वह उन पर टिका रहता है और यही वजह है कि यह फिल्म स्वीट लगती है, अपने आसपास की ही कोई कहानी नजर आती है। बिट्टू जैसे कितने ही युवक हैं जो अमीर बनने के लिए शॉर्टकट अपनाने से नहीं चूकते लेकिन फिल्म साफतौर पर यह सीख देती है कि अपने ज़मीर की सुनने वाले लोग ऐसे गलत रास्तों से दूर रहना जानते हैं।
पुलकित सम्राट ने बिट्टू के किरदार से दमदार शुरुआत की है। उन्होंने इस रोल को बेहद कॉन्फिडैंस के साथ तो निभाया ही है इसके लुक और स्टाइल को भी सलीके से कैरी किया है। अमिता पाठक अपने रोल में फिट रही हैं। वर्मा जी बने राजेंद्र सेठी हर बार की तरह जंचे हैं। दो और कलाकारों का ज़िक्र ज़रूरी है। एक तो छोटे लाल पांडेय बने साहिल वैद हैं और दूसरे हैं अशोक पाठक जो शिमला में हीरो के असिस्टैंट विकी के रोल में हैं। काफी अच्छा काम किया है इन दोनों ने।
राघव सच्चर के संगीत में पंजाबियत की महक है और गीतों के शब्दों में सार्थकता। फिल्म के लुक पर की गई मेहनत झलकती है। सिनेमैटोग्राफी अच्छी है। काम तो बतौर निर्देशक सुपवित्र का भी बुरा नहीं है, बस पटकथा कहीं-कहीं न ढलकती और वह इसमें थोड़ी ज़्यादा कसावट व रफ्तार ले आते तो यह फिल्म और बेहतर हो सकती थी। फिर भी एक बार देखने के लिए यह बुरी नहीं है।
अपनी रेटिंग-ढाई स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू ‘हिन्दुस्तान’ समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ था।)
Release Date-13 April, 2012
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)