• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home यादें

ओल्ड इंटरव्यू : वक्त अभी दूर है-अयूब खान

Deepak Dua by Deepak Dua
1998/08/29
in यादें
0
ओल्ड इंटरव्यू : वक्त अभी दूर है-अयूब खान
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ…

यह 29 अगस्त, 1998 का दिन था। मेरी पहली मुंबई यात्रा का आखिरी दिन। आज रात की ट्रेन से दिल्ली लौटना था मुझे। लेकिन एक हफ्ते से एक ही कमरे में रह रहे कैमरामैन जे.पी. चौधरी के इसरार पर मैं इस शूटिंग को देखने जा ही पहुंचा जहां अभिनेता अयूब खान से यह बातचीत हुई।

(उस मुंबई यात्रा के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।)

अयूब खान का नाम इंडस्ट्री के उनके गिने-चुने अब अभागे कलाकारों में शुमार किया जा सकता है जो किसी बड़े स्टार के नज़दीकी रिश्तेदार होने के बावजूद कामयाबी की मंज़िल पर नहीं पहुंच पाए हैं। अभिनय-कला के कालजयी स्तंभ दिलीप कुमार के भतीजे और अदाकारा बेगम पारा के इस बेटे को इस बात के नंबर तो दिए ही जा सकते हैं कि उन्होंने अपने पारिवारिक संबंधों का इस्तेमाल कर फिल्में पाने या हथियाने की कोई प्रत्यक्ष कोशिश नहीं की है। अभिनय प्रतिभा अयूब में है यह बात वह पिछले बरस आई प्रकाश झा की ‘मृत्युदंड’ से साबित कर चुके हैं। और हिन्दी फिल्मों के आम हीरो सा चेहरा व ठीक-ठाक नाच-कूद कर लेने की मिसाल वह ‘सलामी’ और ‘माशूक’ जैसी फिल्मों से दे चुके हैं। फिर भी अभी तक आईं उनकी तमाम फिल्मों मसलन ‘संजय’, ‘स्मगलर’, ‘खिलौना’, ‘सलमा पर दिल आ गया’, ‘जियो शान से’, ‘गुंडागर्दी’, ‘दादागिरी’, ‘हफ्ता वसूली’, ‘जाने जिगर’ वगैरह ने टिकट-खिड़की पर सिसकियां ही भरी हैं। इनमें से कोई भी सोलो फिल्म नहीं थी। सभी दो-तीन हीरो वाली फिल्मों को देख कर तो यही लगता है कि फिल्म चुनने की उनकी समझ भी काफी कमज़ोर है।

अपने हालिया मुंबई प्रवास के आखिरी रोज़ इंडस्ट्री के मशहूर कैमरामैन विजय पटनी ने सुबह-सुबह फोन करके बताया कि आज वह वर्सोवा में समुद्र किनारे के किसी बंगले में एक फिल्म की शूटिंग करने जा रहे हैं। हालांकि मुझे दिल्ली लौटने की जल्दी थी फिर भी इंकार नहीं किया जा सका। सो अपना झोला संभाल ठीक 10 बजे मैं सेट पर जा पहुंचा। दूरदर्शन पर आ रहे लोकप्रिय धारावाहिकों ‘श्रीमान श्रीमती’, ‘ऑल द बेस्ट’, ‘मेड इन इंडिया’, ‘तेरे घर के सामने’ और ‘वक्त की रफ्तार’ के निर्माता अधिकारी बंधुओं की इस फिल्म को गौतम अधिकारी निर्देशित कर रहे हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि यह एक टेली-फीचर फिल्म होगी जिसमें मधु और डबल रोल में अयूब खान हैं। फिल्म का नाम पूछने पर वह बोले कि अभी तय नहीं है पर उम्मीद है कि ‘चेहरे’ जैसा कुछ रखेंगे। उनसे बात चल ही रही थी कि अयूब खान नमूदार हो गए। ‘आप अयूब से बातचीत कीजिए’ कह कर गौतम अधिकारी अगले सीन की तैयारी में लग गए। अयूब खान ने परिचय पाते ही बहुत गर्मजोशी से हाथ मिलाया और कमरे में लगे झूलेनुमा सोफे पर बैठते हुए कहा-‘कहिए क्या पूछना चाहते हैं?’ अयूब से जो बातें हुई उनके प्रमुख अंशः-

-अयूब क्या बात है, इधर बहुत कम नज़र आ रहे हैं आप फिल्मों में?

-फिल्में ही कहां है हुज़ूर? पिछले साल भर से इंडस्ट्री की हालत ऐसी खराब हो चुकी है कि मैं ही क्या किसी को भी नए ऑफर नहीं मिल रहे हैं। बाकी छोटी-मोटी फिल्में तो चलती ही रहती हैं।

-कोई बड़े बैनर की फिल्म जो इधर अपने साइन की हो?

-(हंस कर) हमारे लिए तो जो हमको अपनी फिल्म के लिए साइन कर ले वही बैनर बड़ा और वही फिल्म बड़ी! है कि नहीं?

-अच्छा अयूब, इंडस्ट्री में आपको आए काफी अर्सा हो चला है तो कभी यह महसूस नहीं हुआ कि आपकी ऐसी कोई फिल्म नहीं आई जो आपको स्टार का दर्जा दिला देती?

-देखिए जनाब, यह बहुत कुछ तो मेहनत पर होता है और काफी कुछ तकदीर पर। बचा-खुचा टेलेंट पर निर्भर करता है। लेकिन मुझे लगता है कि मेरा अभी वक्त नहीं आया।

-तो फिर आप क्या मानते हैं टेलेंट ज़्यादा ज़रूरी है या किस्मत?

-टेलेंट भी बहुत ज़रूरी है, किस्मत भी बहुत ज़रूरी है और सही वक्त भी बहुत ज़रूरी है। बल्कि मेरे हिसाब से तो ठीक वक्त पर ठीक जगह पर होना ज़रूरी है। अगर आप गलत टाइम पर सही जगह पर हैं तो भी कोई फायदा नहीं होने वाला।

-प्रकाश झा के साथ ‘मृत्युदंड’ करने का अनुभव कैसा रहा?

-बहुत अच्छा। बल्कि मैं तो समझता हूं बहुत कम तकदीर वाले होते हैं जिनको ऐसे प्रोजेक्ट्स में काम करने का अवसर मिलता है। उस वक्त मुझे अपने करियर में ऐसे लोगों के साथ काम करने का मौका मिला जब कोई उम्मीद ही नहीं थी। मैं अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझता हूं।

-वैसे पहले तो प्रकाश झा ने अतुल अग्निहोत्री को लिया था न?

-हां, पर अतुल के साथ कुछ डेट्स की प्रॉब्लम हो रही थी इसलिए उन्होंने मुझे यह फिल्म करने को कहा। वही वक्त की बात हुई ना। इस फिल्म के लिए मैं सही वक्त पर सही जगह था।

-इस फिल्म में माधुरी दीक्षित, ओम पुरी, शबाना आज़मी, मोहन आगाशे जैसे मंजे हुए कलाकारों के साथ काम करते हुए थोड़ी हिचकिचाहट तो हुई होगी?

-शुरुआत में तो हिचकिचाहट होती ही है क्योंकि आप समझते हैं कि भैया वे आपके बारे में क्या सोच रहे हैं, आप जो काम कर रहे हैं वह सही है कि गलत। मतलब, मैं तो बिल्कुल नौसिखिया था उनके सामने और वे तो जमे हुए आर्टिस्ट हैं। तो शुरुआत में थोड़ी झिझक थी। बाद में जब चीज़ें पकड़ में आ गईं तो इतनी हिचकिचाहट नहीं थी। क्या होता है कि जब तक आप में कॉन्फिडेंस न हो तब तक डर लगा रहता है। एक बार आपको मालूम पड़ गया कि यह सही है, ऐसे ही होना चाहिए तो कोई आपके बारे में कुछ भी सोचे, कोई फर्क नहीं पड़ता।

-‘मृत्युदंड’ में आपकी संवाद-अदायगी में जो भोजपुरी उच्चारण था उसके लिए कोई खास होमवर्क आपने किया था क्या?

-हां, प्रकाश झा साहब बाकायदा रिहर्सल करवाते थे। बताते थे कि क्या सही है, क्या गलत है, कैसे होना चाहिए?

-कोई दिक्कत पेश नहीं आई एक नई बोली की शैली को पकड़ने में?

-देखिए, जब तक नहीं मालूम था तब तक प्रॉब्लम थी। एक बार जब समझ आ गई बात, तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं रही।

बातचीत चल ही रही थी कि गौतम अधिकारी ने आकर अयूब को सीन के लिए तैयार होने को कहा। मातमपुर्सी के लिए आए लोगों की विदाई का सीन था। अयूब ने झट शर्ट उतार कर एक सफेद कुर्ता पहन लिया। बिना डायलॉग का दृश्य था जो कैमरामैन विजय पटनी और उनके सहायक जे.पी. चौधरी ने तुरत-फुरत फिल्मा लिया। शॉट देकर वापस आए अयूब से फिर बातें होने लगीं।

-इन दिनों काफी बड़े-बड़े सितारे भी धारावाहिकों में काम करने लगे हैं। तो आपका ऐसा कोई इरादा?

-अभी गौतम भाई की यह टेली फिल्म तो कर ही रहा हूं। बाकी देखिए आगे क्या होता है। टीवी पर इधर काफी अच्छा काम हो रहा है, जल्दी-जल्दी प्रोजेक्ट्स बनते हैं, रिज़ल्ट भी फटाफट आ जाता है।

-यानी टीवी से कोई एलर्जी नहीं है?

-नहीं, मैं ऐसा नहीं समझता हूं कि मैं यह नहीं करूंगा, वह नहीं करूंगा। अगर मुझे लगा कि फिल्मों में मैं ज़्यादा नहीं चल रहा हूं तो मैं टीवी में चला जाऊंगा।

-आपका परिवार फिल्म इंडस्ट्री से बरसों से जुड़ा हुआ है। उसकी कोई मदद मिली आपको रोल पाने में?

-क्या ज़रूरत है जनाब। ऊपर वाले के दिए हुए दो हाथ हैं, एक दिमाग है। मैं समझता हूं उस आदमी को मदद की जरूरत पड़ती है जो अपने-आप को कमज़ोर मानता है। मैं समझता हूं कि मुझ में इतनी समझ है कि मैं अपने लिए काम ढूंढ सकूं। मतलब जो आदमी चल सकता है उसको बैसाखी की ज़रूरत क्या है।

-अभी तक अपनी सर्वश्रेष्ठ परफॉर्मेंस किसे मानते हैं आप?

-‘मृत्युदंड’।

-अभी पिछले दिनों प्रकाश झा जी ने दिल्ली में मुझे बताया था कि वह अपनी अगली फिल्म प्लान कर रहे हैं। आपसे कोई बात की उन्होंने इस बारे में?

-देखिए क्या होता है… अभी तो सब प्लानिंग स्टेज पर है। अभी कुछ कह नहीं सकते कि वह किसको लेंगे, किसको नहीं लेंगे। उम्मीद लगाए बैठे हैं।

-कोई ऐसा आर्टिस्ट जिसके साथ काम करने की तमन्ना हो आपको?

-हर आर्टिस्ट के साथ काम करना चाहता हूं। बड़े से बड़े से लेकर नए से नए आर्टिस्ट तक।

-फिर भी कभी मन में तो आता ही होगा न कि फलां आर्टिस्ट के साथ काम करने का मौका मिल जाए तो?

-अमिताभ बच्चन साहब… 15 साल पहले अगर होते तो मैं तमन्ना रखता उनके साथ काम करने की। अभी भी मैं उनके साथ फिल्में करना चाहूंगा पर अभी तो वह खुद ही ज़्यादा फिल्में नहीं कर रहे हैं।

-और हीरोइनों में से?

-हीरोइनों में से तो देखिए एक दिली तमन्ना थी कि माधुरी दीक्षित जी के साथ काम करूं, वह पूरी हो गई और दूसरी जो तमन्ना थी वह अब पूरी हो ही नहीं सकती क्योंकि उन्होंने तो फिल्में ही छोड़ दीं। उनका नाम है श्रीदेवी… इस इंडस्ट्री में बहुत कम ग्रेट आर्टिस्ट हैं, उनमें से वह एक हैं।

-अभी आपकी कौन सी फिल्में आने वाली हैं?

-अभी एक तो ‘खोटे सिक्के’ है और एक ‘सामना’ है। बाकी बंद पड़ी हैं।

-चलिए अयूब साहब हमारी दुआएं हैं कि आपकी फिल्में जल्दी बनें, चलें और आप तरक्की करें।

-बहुत-बहुत शुक्रिया आपका।

(नोट-यह इंटरव्यू ‘चित्रलेखा’ पत्रिका के नवंबर, 1998 अंक में प्रकाशित हुआ था।)

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: ayub khanchehraadilip kumarmadhuri dixitmrityudandmumbaimumbai 1998tele film
ADVERTISEMENT
Previous Post

ओल्ड इंटरव्यू : ‘सत्या’ का कल्लू मामा सौरभ शुक्ला

Next Post

ओल्ड रिव्यू-मनोरंजक और दमदार ‘गदर-एक प्रेम कथा’

Next Post
ओल्ड रिव्यू-मनोरंजक और दमदार ‘गदर-एक प्रेम कथा’

ओल्ड रिव्यू-मनोरंजक और दमदार ‘गदर-एक प्रेम कथा’

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment