–दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
कोई 15 साल और चार महीने पहले की बात है जब दिल्ली के ‘डिलाइट’ सिनेमा में राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘सत्या’ का प्रैस-शो हुआ था और उस दिन से लेकर आज तक मुझे या किसी को भी यह मानने में कोई एतराज नहीं है कि रामू की बनाई तमाम फिल्मों में से ‘सत्या’ उनकी सबसे जानदार, शानदार और कहें तो एक किस्म की ‘क्लासिक’ फिल्म है जिसने अपने यहां अंडरवर्ल्ड और पुलिस पर बनने वाली फिल्मों को एक नया रास्ता दिखाया। लेकिन कहते हैं न कि अति हर चीज की बुरी होती है और यही रामू की फिल्मों के साथ भी हो रहा है। अंडरवर्ल्ड और पुलिसिया थीम को रामू ने इतनी बार पकाया है कि उनकी बासी कढ़ी उबल-उबल कर अपना स्वाद खो चुकी है और जिसे अब चखने तक का मन नहीं करता। अब ‘सत्या 2’ को ही देखिए। उसी ‘डिलाइट’ के बगल वाले ‘डिलाइट डायमंड’ सिनेमा में इसके प्रैस-शो के बाद फिल्म समीक्षकों के चेहरे इस कदर उतरे हुए थे जैसे सब लोग किसी के मातम में आए हों। यकीन मानिए, अगर किसी काबिल शख्स के यहां से कोई खराब फिल्म आए तो ऐसा ही होता है।
कहानी वही पुरानी है कि कहीं से कोई ‘सत्या’ नाम का शख्स मुंबई आया है जो यहां खत्म हो चुके अंडरवर्ल्ड को फिर से खड़ा करना चाहता है लेकिन बहुत ही कॉर्पोरेट अंदाज में, बाकायदा एक कंपनी खोल कर। कैसे करता है वह ये सब और क्या वह इसमें कामयाब हो पाता है?
फिल्म में बार-बार यह कहा गया है कि कंपनी एक सोच है। मगर फिल्म देख कर यह लगता है कि काश, रामू और उनकी टीम ने कुछ सोच इस फिल्म में भी डाली होती। स्क्रिप्ट में इतने सारे छेद हैं कि छलनी भी शरमा जाए। लचर पटकथा और बेहद कमज़ोर डायरेक्शन वाली इस फिल्म को देख कर यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि यह उन्हीं राम गोपाल वर्मा की फिल्म है जो ‘सत्या’, ‘कंपनी’ या ‘सरकार’ जैसी दमदार फिल्में बना चुके हैं।
रामू की फिल्मों का कैमरा-वर्क हमेशा अच्छा होता है और इस बार भी यह देखने लायक है। सत्या बने पुनीत सिंह रत्न का काम भी बुरा नहीं है। बाकी सब साधारण से बदतर है।
अगर आपको अपना वक्त और पैसा बर्बाद करने का शौक है तो ही इस फिल्म को देखें क्योंकि यह आपको अपना सिर धुनने और बाल नोचने पर मजबूर कर देगी। अगर बहुत ही मन कर रहा है तो बेहतर होगा कि पुरानी वाली ‘सत्या’ को ही एक बार फिर से देख लें।
अपनी रेटिंग-1 स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर छपा था)
Release Date-08 November, 2013
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)