दीपक दुआ…
करीब साढ़े पांच दशक पहले की बात है। नेवी के एक कमांडर को पता चला कि उसकी पत्नी का उसी के एक करीबी दोस्त के साथ नाजायज संबंध है। कमांडर नेवल बेस गया, झूठ बोल कर अपनी सरकारी पिस्तौल ली और जाकर उस दोस्त का कत्ल कर दिया। असली ड्रामा इसके बाद शुरू हुआ। पारसी कमांडर की छवि एक आम, शरीफ, देशभक्त और सीधे-सादे इंसान की थी। वहीं मरने वाले सिंधी बिजनेसमैन को लोग उसकी रंगीन-मिज़ाजी और औरतखोरी के लिए जानते थे। जल्द ही दोनों के समर्थन में उनके समुदाय वाले सड़कों पर आ गए। नामी पारसी वकील कार्ल खंडावाला कमांडर के पक्ष में और नामी सिंधी वकील राम जेठमलानी मरने वाले की तरफ से इस केस में आए। उधर मीडिया और पब्लिक कमांडर के पक्ष में आ गए और कोर्ट तक इस दबाव में आ गई। केस सुप्रीम कोर्ट तक गया जहां से कमांडर को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। लेकिन सरकार और कुछ राजनेता भी इस मामले से जुड़े बिना न रह सके। पर्दे के आगे और पीछे बहुत कुछ हुआ। मरने वाले की बहन ने कमांडर के पक्ष में क्षमादान लिख कर दे दिया और कमांडर जेल से छूट कनाडा जाकर बस गया।
कहिए, है न कहानी पूरी फिल्मी…? तो जब कहानी फिल्मी है तो जाहिर है इस पर फिल्में भी बननी ही थीं। 12 अगस्त को रिलीज हो रही अक्षय कुमार की ‘रुस्तम’ इसी मशहूर ‘नानावटी केस’ पर बनी है। 1963 में आर.के. नैय्यर की सुनील दत्त वाली ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ इस केस पर बनी पहली फिल्म थी। इसके बाद इस केस से प्रेरित कहानी पर गुलजार के निर्देशन में विनोद खन्ना वाली ‘अचानक’ 1973 में आई। खबर तो यह भी है कि पूजा भट्ट इसी केस पर ‘लव अफेयर’ नाम से एक फिल्म बना रही हैं। वह आएगी या नहीं, या कब आएगी, यह तो पता नहीं, फिलहाल ‘रुस्तम’ पर सब की निगाहें हैं। देखें, टिकट-खिड़की पर क्या गुल खिलाती है यह फिल्म।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)