-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
अरशद वारसी को लेकर ‘सहर’ जैसी सधी हुई फिल्म बना चुके कबीर कौशिक की इस फिल्म के आने से पहले इसमें सोनू सूद, नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकारों के नाम देख कर लगता है कि सचमुच एक और उम्दा फिल्म देखने को मिलेगी। लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, आपकी उम्मीदें एक-एक करके बिखरने लगती हैं और अंत में ढेर हो जाती हैं।
पुलिस महकमे के अंदर की राजनीति, उठा-पटक और मैक्सिमम पॉवर कब्जाने की कहानी कहती फिल्में हम इतनी ज्यादा तादाद में देख चुके हैं कि अब इसमें कुछ नया कहने-सुनने को रह नहीं गया है। इसी सब्जैक्ट पर बनी शिमित अमीन की ‘अब तक छप्पन’ के बाद वैसे भी सब कुछ देखा-देखा सा ही लगता है। पिछले दिनों राम गोपाल वर्मा की बेहद खराब फिल्म ‘डिपार्टमैंट’ भी यही कहानी दिखा रही थी। तो फिर कबीर की इस फिल्म में नया क्या है? जवाब है-कुछ नहीं।
मुंबई पुलिस के दो अलग-अलग सैक्शन में चल रही पॉवर कब्जाने की इस भिड़ंत में एक और सोनू सूद हैं और दूसरी और नसीर। दोनों के ऊपर उनके अफसरों, नेताओं और माफिया की सरपरस्ती है। रफ्ता-रफ्ता यह भिड़ंत इस कदर हिंसक हो जाती है कि अंत में ये दोनों सड़क पर उतर कर एक-दूसरे पर गोलियां बरसाने लगते हैं। फिल्म का एक संवाद कहता भी है-पुलिस के इस धंधे में या तो आदमी टॉप पर रहे या बाहर रहे।
फिल्म का विषय बुरा नहीं है लेकिन नएपन और गहराई की कमी इसे काफी उथला बनाती है। फिर फिल्म की स्पीड इतनी ज्यादा स्लो है कि उकताहट होने लगती है। किरदार अच्छे गढ़े गए हैं और कलाकारों ने उन्हें निभाया भी कायदे से है लेकिन इतना भर ही तो काफी नहीं होता। सोनू सूद को तो चलिए बड़ा रोल मिल गया मगर नसीर ने इसमें क्या देखा? नेहा धूपिया साड़ी में बहुत ज्यादा आकर्षक लगीं। हालांकि एक्टिंग सबकी अच्छी है। गीतकार स्वानंद किरकिरे को अभिनय करते देखना सुखद आश्चर्य है। म्यूजिक फिल्म के मिज़ाज के अनुकूल है। लेकिन फिल्म मनोरंजन या संदेश परोसने के मामले में फीकी ही नज़र आती है।
अपनी रेटिंग-दो स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू 30 जून, 2012 के ‘हिन्दुस्तान’ समाचारपत्र में प्रकाशित हुआ था।)
Release Date-29 June, 2012
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)