-कुमार मौसम… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
सपनों का शहर मुंबई जहां हर रोज सैकड़ों लोग अपने सपनों की डोर थामे पहुंचते हैं। इनमें से ज़्यादातर या तो इस मायानगरी की भीड़ में गुम हो जाते हैं या फिर उस सपने को सच करने में अपनी पूरी उम्र बिता देते हैं। इन्हीं सपनों को सच करने की कोशिश और संघर्ष की आंच पर जलती उम्र की कहानी को दिखाने की कोशिश करती है ज़ी-5 पर आई यह फिल्म। मध्यवर्गीय परिवारों में अक्सर ऐसे किरदार देखने को मिल जाते हैं जो सपने तो बहुत बड़े देखते हैं। लेकिन किस्मत उनका साथ नहीं देती और बची-खुची कसर ज़िम्मेदारियों का बोझ निकाल देती है जिसके तले दब कर वे अपने सपनों से मुंह मोड़ लेते हैं।
इस फिल्म की पूरी कहानी शिव कुमार यानी राजपाल यादव के इर्द-गिर्द घूमती है जो अपने परिवार का भरण-पोषण करते हुए एक्टर बनने के अपने सपने को भी ज़िंदा रखने की जद्दोज़हद में लगा हुआ है। यहां शिव कुमार के किरदार में एक सकारात्मकता दिखती है कि एक नहीं अनेक बार रिजेक्शन मिलने के बाद जहां कई कलाकार अपनी जिंदगी खत्म कर लेते हैं या जिंदगी जीने के लिए दूसरे धंधे करने लगते हैं वहीं शिव कुमार वापस पूरे उत्साह और उम्मीद के साथ अपने सपने को साकार करने के लिए जुट जाता है जैसेकि यह उसका पहला प्रयास हो।
फिल्म में राजपाल की पत्नी का मजबूत किरदार रूबीना दिलैक ने निभाया है। पर जिस स्केल का रूबीना का किरदार है वह उस स्तर पर प्रभावित नहीं कर पाती हैं। इसकी बड़ी वजह कहीं न कहीं पलाश मुछाल का कमजोर निर्देशन है। फिल्म में राजपाल के दोस्त का किरदार हितेन तेजवानी ने निभाया है जिन्होंने सपोर्टिंग किरदार के मुताबिक ठीक-ठाक अभिनय किया है। जहां किरदार के मुताबिक हितेन को स्क्रीन स्पेस तो कम मिला है, पर हर सीन में वह प्रभावी लगे हैं। इसके साथ ही फिल्म में कुलभूषण खरबंदा छोटे मगर एक अहम रोल में है। सपनों में फिल्माए एक दृश्य में कुलभूषण खरबंदा एक मशहूर डायरेक्टर के किरदार में बखूबी जंचते हैं।
कुल मिला कर कहें तो फिल्म का डायरेक्शन और स्क्रिप्ट फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है जिस वजह से फिल्म उस स्तर पर नहीं पहुंच पाई जहां तक पहुंचने का इसमें पोटेंशियल था। फिल्म में अनेक लूपहोल्स होने और कई बार कहानी के ट्रैक से उतरने के बावजूद इसे राजपाल यादव की दमदार अदाकारी और प्रभावशाली किरदार के साथ-साथ इसके खूबसूरत गानों की वजह से देखा जा सकता है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-10 June, 2022
(कुमार मौसम फिल्म शोधार्थी, फिल्म समीक्षक व स्वतंत्र लेखक हैं। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के संचार विभाग में बतौर शोधार्थी कार्यरत हैं। ओटीटी और वेब-सीरिज़़ पर शोधपरक नज़र रखते हैं और भ्रमण तथा फोटोग्राफी के खासे शौकीन हैं।)