• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-बली की बकरी बन कर ‘उलझ’ गई फिल्म

Deepak Dua by Deepak Dua
2024/08/04
in फिल्म/वेब रिव्यू
1
रिव्यू-बली की बकरी बन कर ‘उलझ’ गई फिल्म
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

सुहाना भाटिया-एक आई.एफ.एस. यानी भारतीय विदेश सेवा की अफसर। देश के एक प्रतिष्ठित परिवार की इस लड़की को बहुत कम उम्र में सरकार एक ऊंचे पद पर लंदन भेजती है। लेकिन वहां उसके साथ कुछ ऐसा होता है कि उस पर देश की गद्दार होने का आरोप लगने लगता है। कुछ लोगों के बिछाए जाल में फंसते-फंसते वह इतनी उलझ जाती है कि उसके पास पलट कर वार करने के सिवा कोई चारा नहीं बचता।

स्पाई-थ्रिलर कहानियां कायदे से बनी हों तो दर्शकों को ज़रूर भाती हैं। लेकिन इन कहानियों की पहली शर्त होती है-इनमें तार्किकता का भराव और दर्शकों को बांधे रखने का जुड़ाव। यह फिल्म ‘उलझ’ इन दोनों की मोर्चों पर हल्की पड़ जाती है। कई बड़ी फिल्में लिख चुके परवेज़ शेख की सोच एक काबिल और तेज़-तर्रार आई.एफ.एस. अफसर को दुश्मन के हाथों फंसाते समय इतनी कमज़ोर तो नहीं पड़नी चाहिए थी। देश का सबसे मुश्किल इम्तिहान पास करके, देश की सबसे सधी हुई ट्रेनिंग लेकर और देश की सबसे प्रतिष्ठित नौकरी करने वाली कोई लड़की इतनी उतावली, इतनी भोली, इतनी डावांडोल तो नहीं हो सकती कि किसी के भी बिस्तर पर जा बिछे और वह भी विदेश में जहां हर ये लोग हर पल किसी न किसी की नज़रों के घेरे में होते हैं। विरोधाभास यह कि अपने खुद के बॉयफ्रैंड को एक छोटी-सी गलती के लिए वह माफ नहीं कर पा रही है। किसी पर भी, कभी भी झपट पड़ने वाली इस लड़की को कुछ करते समय क्या आगे-पीछे सोचना आता भी है या नहीं? ऐसा किरदार क्या सोच कर गढ़ा होगा लेखकों ने?

और ज़्यादा गहराई में जाएं तो फिल्म ‘उलझ’ यह भी स्थापित करना चाहती है कि पाकिस्तान के नेता और वहां की जनता भारत के साथ दोस्ती चाहती है लेकिन भारत में इतना ज़्यादा भ्रष्टाचार है कि यहां भ्रष्टाचारी लोग विदेश सेवा में हैं, रॉ जैसी एजेंसी में हैं और यहां तक कि भारत के गृहमंत्री की कुर्सी पर भी हैं। और तो और भारत का मंत्री आई.एस.आई. से मिला हुआ है। किस के इशारे पर आखिर कौन-सा एजेंडा परोसना चाहती है यह फिल्म?

कहानी तो चलिए जो है सो है, फिल्म की स्क्रिप्ट न सिर्फ बुरी तरह से उलझी हुई है, बहुत कमज़ोर भी है। बहुत सारे सीन हैं तो तर्क की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। निर्देशक सुधांशु सरिया की यह पहली फिल्म है तो उन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जा सकता है। लेकिन ढेर सारे उम्दा कलाकार लेने के बावजूद उन्होंने जिस कमज़ोर लेखन को पर्दे पर उतारने की कोशिश की है, उसके लिए उन्हें माफ नहीं किया जाना चाहिए।

जाह्न्वी कपूर अपनी तरफ से कसर नहीं छोड़ती हैं। अब उन्हें किरदार ही कमज़ोर मिला तो क्या करें। गुलशन देवैया अपने किरदार के पैनेपन के कारण जंचे। आदिल हुसैन, राजेंद्र गुप्ता, रुशद राणा, हिमांशु मलिक, अली खान, मेयांग चैंग आदि को फिल्म कायदे के किरदार ही नहीं दे पाती। रोशन मैथ्यू चमके हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस फिल्म के सीक्वेल में (जिसका इशारा फिल्म करके जाती है) वह और रंगत बिखेरेंगे। साक्षी तंवर ज़रा देर को आकर लुभा गईं। लेकिन जो एक शख्स इस फिल्म में उभर कर दिखा वह हैं राजेश तैलंग। अपने किरदार की जुदा तस्वीरों को कायदे से समझ कर सलीके से निभाते हुए राजेश खासे असरदार रहे हैं। गीत-संगीत साधारण है, बाकी सब भी।

साधारण कहानी, उलझी हुई पटकथा और ‘बलि की बकरी’ जैसे गलत मुहावरे का इस्तेमाल करती यह फिल्म खुद अपने बनाने वालों के लिए बलि की बकरी बन कर रह गई है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-02 August, 2024 in theaters

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: adil hussainalyy khangulshan devaiahhimanshu malikjanhvi kapoormeiyang changrajender guptarajesh tailangroshan mathewrushad ranaSakshi Tanwarsudhanshu sariaulajhulajh review
ADVERTISEMENT
Previous Post

रिव्यू-न कसक न तड़प और कहानी बेदम

Next Post

रिव्यू-फिर आई ‘सस्ती’ हसीन दिलरुबा

Related Posts

रिव्यू-चरस तो मत बोइए ‘मालिक’
CineYatra

रिव्यू-चरस तो मत बोइए ‘मालिक’

वेब-रिव्यू : राजीव गांधी हत्याकांड पर सधी हुई ‘द हंट’
CineYatra

वेब-रिव्यू : राजीव गांधी हत्याकांड पर सधी हुई ‘द हंट’

रिव्यू : मस्त पवन-सी है ‘मैट्रो… इन दिनों’
CineYatra

रिव्यू : मस्त पवन-सी है ‘मैट्रो… इन दिनों’

रिव्यू-‘कालीधर’ के साथ मनोरंजन ‘लापता’
CineYatra

रिव्यू-‘कालीधर’ के साथ मनोरंजन ‘लापता’

रिव्यू-’शैतान’ से ’मां’ की औसत भिड़ंत
CineYatra

रिव्यू-’शैतान’ से ’मां’ की औसत भिड़ंत

वेब-रिव्यू : रंगीले परजातंतर की रंग-बिरंगी ‘पंचायत’
फिल्म/वेब रिव्यू

वेब-रिव्यू : रंगीले परजातंतर की रंग-बिरंगी ‘पंचायत’

Next Post
रिव्यू-फिर आई ‘सस्ती’ हसीन दिलरुबा

रिव्यू-फिर आई ‘सस्ती’ हसीन दिलरुबा

Comments 1

  1. NAFEESH AHMED says:
    11 months ago

    उम्दाह……

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment