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रिव्यू-‘तू मेरी’ खिचड़ी ‘मैं तेरा’ दलिया

Deepak Dua by Deepak Dua
2025/12/25
in CineYatra, फिल्म/वेब रिव्यू
4
रिव्यू-‘तू मेरी’ खिचड़ी ‘मैं तेरा’ दलिया
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

इस रिव्यू का हैडिंग पढ़ कर यदि आप सोच रहे हों कि यह फिल्म खिचड़ी या दलिए की तरह पौष्टिक होगी और तो ज़रा रुकिए… पहले इस फिल्म ‘तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी’ (TMMTMTTM) का पूरा रिव्यू पढ़ लीजिए, फिर फैसला कीजिएगा।

अमेरिका में बस चुका एक बेहद अमीर लड़का दिल्ली से सीधे क्रोएशिया जा रहा है-घूमने, अकेले। न बिक पा रही किताबें लिख कर (पता नहीं कैसे) अमीर बन चुकी लड़की भी वहीं जा रही है-घूमने अकेले। अब किसी टूर पर दो अकेले मिलेंगे तो दुकेले हो ही जाएंगे न! तो बस, यहां भी वही हुआ। पहले रार, तकरार, फिर बिस्तर वाला और बाद में सच्चा प्यार। लेकिन बीच में आ गई मां-बाप की दीवार। दरअसल लड़के की मां को अमेरिका में रहना पसंद है और लड़की के बाप को आगरा में। अब लड़का जा पहुंचा है आगरा में अपनी सिमरन के बाऊ जी को पटाने। क्योंकि वह सिमरन ही क्या जो बाऊ जी की मर्ज़ी के बिना शादी कर ले और वह बाऊ जी ही क्या जो अंत में यह न कह दें-जा सिमरन जा, जी ले अपनी ज़िंदगी। दुर्र फिट्टे मुंह!

इस फिल्म ‘तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी’ (TMMTMTTM) में इतनी ज़्यादा रंगीनियां हैं कि आंखें चुंधिया जाएं। लड़का बार-बार अपने ऐब्स दिखाता है ताकि दर्शकों में बैठी लड़कियां आहें भरें। फिल्म में तो उसे देख कर पड़ोस की एक बुढ़िया अपने पति और जवान बेटे के सामने ही स्खलित होने लगती है। लड़की ने तो खैर दर्शकों की आंखों को इस कदर सेंका है कि सर्दी में भी गर्मी का अहसास होने लगे। पर्दे पर ‘शराब पीना हानिकारक होता है’ इतनी बार लिखा हुआ आता है कि आप को यकीन हो उठता है कि यह फिल्म नहीं बल्कि शराब कंपनियों का विज्ञापन है-ढाई घंटे लंबा। विज्ञापन तो यह दरअसल क्रोएशिया नाम के उस देश का है जहां इंटरवल तक की कहानी दिखाई गई है। अपने देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए वहां वालों ने बॉलीवुड के कंधे का जैसा इस्तेमाल इस फिल्म में किया है, यह तय है कि इसके निर्माताओं ने उनसे अपने कंधे का जम कर किराया वसूला होगा। अब फिल्म चले, न चले, उन्हें फर्क नहीं पड़ने वाला।

कई सारी कहानियों को घोल-मिला कर यह ‘तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी’ (TMMTMTTM) जैसे बेहद लंबे और बचकाने नाम की जो फिल्म बनाई गई है यह फिल्म कम और झोलझाल ज़्यादा है जिसे बनाने वालों ने नई पीढ़ी यानी ज़ेन-जी की कहानी कह कर परोसा है। इस कहानी में घर को, बाप को लात मार कर किराये पर रहने वाले युवा हैं, अकेले घूमने निकली लड़की यूं तो लड़के से नहीं पटती लेकिन लड़का शादीशुदा है, यह जान कर उसके बिस्तर पर बिछ जाती है-एडवैंचर की खातिर, सिगरेट-शराब इस पीढ़ी के लिए आटा-दाल हो चुके हैं, कपड़े पहनना इन्हें इतना ज़रूरी नहीं लगता जितना ये उन्हें उतारने को आतुर रहते हैं। अगर सचमुच अपनी ज़ेन-जी ऐसी ही होनी है जैसा यह फिल्म दिखाती है, तो हे ज़ेन-जी, लानत है तुम पर।

इस फिल्म ‘तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी’ (TMMTMTTM) की स्क्रिप्ट बेहद लचर ढंग से लिखी गई है। संवाद उबाऊ किस्म के हैं। किरदार जोकरों जैसे हैं। कहानी का प्रवाह सहज होने की बजाय जबरन मोड़ा-घुमाया गया लगता है। फिल्म के लेखक करण श्रीकांत शर्मा ज़ीरो नंबर के हकदार हैं। और इस फिल्म का नाम इतना लंबा क्यों है? इसका आधा भी होता तो क्या फर्क पड़ना था? खैर, नाम चाहे कुछ भी रखो, फिल्म तो कायदे से लिखो-बनाओ भाई। पर्दे पर किरदार हंसी-मज़ाक कर रहे हों और दर्शक उबासियां ले, पर्दे पर इमोशनल सीन चल रहा हो और आप पहलू बदल रहे हों, पर्दे पर रोमांस हो रहा हो और आपके धड़कनें न बढ़ें तो कैसी लिखाई? अब रही बात इस रिव्यू के हैडिंग में खिचड़ी और दलिए की, तो भले ही ये दोनों पौष्टिक आहार होते हों लेकिन अगर खिचड़ी बासी और दलिया सड़ा हुआ हो तो…? यही यहां भी हुआ है।

निर्देशक समीर विद्वंस इससे पहले हिन्दी में एक खराब फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ लेकर आए थे। उस फिल्म के निर्माता साजिद नाडियाडवाला थे और अब इस फिल्म ‘तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी’ (TMMTMTTM) के निर्माता करण जौहर हैं। बड़े निर्माता यानी बड़ा पैसा। लेकिन उस बड़े पैसे, बड़े संसाधनों से समीर बना क्या रहे हैं? यह रंगीन कचरा…! समीर के पास ज़रूर कुछ और भी बड़े निर्माताओं के ‘वो वाले’ वीडियो होंगे। अगर सचमुच आज के हिन्दी फिल्मकारों ने ऐसा ही सिनेमा रचना है तो हे फिल्मकारों, लानत है तुम पर।

(रिव्यू-‘सत्यप्रेम की कथा’ में न सत्य है न प्रेम)

कार्तिक आर्यन इस किस्म के छिछोरे किरदारों में जैसा काम करते हैं, वैसा ही उन्होंने इस फिल्म ‘तू मेरी मैं तेरा मैं तेरा तू मेरी’ (TMMTMTTM) में भी किया है। अनन्या पांडेय ने जितनी ‘मेहनत’ कपड़े पहनने-उतारने में की है, उसका कुछ हिस्सा वह अपनी एक्टिंग पर भी लगाएं तो बेहतर होगा। जैकी श्रॉफ पकाते हैं। नीना गुप्ता चमक बिखेरती हैं। बाकी सब भी बेहद साधारण रहे हैं क्योंकि उनके किरदारों को टिकने के लिए नहीं दिखने के लिए रखा गया है। गाने-वाने आंखों के लिए बने हैं। सच तो यह है कि यह पूरी फिल्म ही आंखों के लिए है, न दिल के लिए, न दिमाग के लिए। इसे थिएटर की बजाय मोबाइल पर देखा जाना चाहिए-कभी पॉज़ कर के, कभी ज़ूम कर के। अगर सचमुच आप ऐसी फिल्मों पर अपना समय और पैसा खर्च करना चाहते हैं तो हे दर्शकों,…!!!

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-25 December, 2025 in theaters

(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)

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रिव्यू-इस सर्कस में है टाइमपास कॉमेडी

Comments 4

  1. Chander Mohan Sharma says:
    13 hours ago

    दुआ जी शत शत नमन

    Reply
    • CineYatra says:
      11 hours ago

      धन्यवाद…

      Reply
  2. Satish Kumar Tiwari says:
    13 hours ago

    Written Perfectly , love your talent.

    Reply
    • CineYatra says:
      11 hours ago

      thanks a lot…

      Reply

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