• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-बहुत कन्फ्यूज़्ड है ‘शर्माजी की बेटी’

Deepak Dua by Deepak Dua
2024/06/28
in फिल्म/वेब रिव्यू
1
रिव्यू-बहुत कन्फ्यूज़्ड है ‘शर्माजी की बेटी’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

मुंबई शहर। तीन औरतें। पहली है एक अमीर घर की किरण शर्मा जो पटियाला से साल भर पहले ही मुंबई आई है और पाती है कि इस शहर में तो किसी के पास उसके लिए वक्त ही नहीं है। उसका पति और बेटी गुरवीन तक उससे कन्नी काटते हैं। वह बेचारी अपनेपन के लिए तरस रही है। दूसरी है एक कोचिंग सैंटर में पढ़ाने वाली मध्यमवर्गीय परिवार की ज्योति शर्मा। खुद बिज़ी है इसलिए हर काम पति को याद दिलाती रहती है। पति मदद करता है लेकिन जताना नहीं भूलता। आठवीं में पढ़ने वाली उसकी बेटी स्वाति को लगता है कि उसकी मां उस पर ध्यान नहीं देती। हालांकि उसकी सबसे बड़ी चिंता यह है कि अभी तक मेरे पीरियड्स क्यों नहीं शुरू हुए। (रियली…!) तीसरी है तन्वी शर्मा जो बरोडा (अब फिल्म में बड़ौदा को बरोडा बोला गया है तो हम क्या करें…!) से आकर मुंबई के लिए क्रिकेट खेल रही है। लेकिन उसके प्रेमी को उसका यूं टॉम बॉय होना पसंद नहीं। और हां, स्वाति और गुरवीन साथ पढ़ती हैं। (हालांकि किसी शर्मा परिवार में गुरवीन जैसा नाम कभी सुनने में तो नहीं आया। ओह हो, पटियाला कनैक्शन…!) उधर तन्वी और किरण पड़ोसन हैं। तो लीजिए, हो गया न तीन अलग-अलग कहानियों का मिलन अमेज़न प्राइम वीडियो पर…!

तीन-चार एक जैसे मिज़ाज वाली कहानियों को एक जगह पिरो कर बनने वाली फिल्मों में कब, किस कहानी का सिरा कहां को निकल ले, पता नहीं चलता। इसीलिए इधर एंथोलॉजी फिल्मों का चलन शुरू हुआ जिसमें अलग-अलग कहानियों को एपिसोड नुमा स्टाइल में एक के बाद एक दिखाया जाता है। इससे इन्हें देखना और पसंद-नापसंद करना भी आसान हो जाता है। लेकिन इस फिल्म (Sharmajee Ki Beti) की राइटर-डायरेक्टर ताहिरा कश्यप खुराना (अभिनेता आयुष्मान खुराना की पत्नी) ने पहले वाला कन्फ्यूज़न भरा रास्ता चुना है जिससे तीनों कहानियां गड्डमड्ड हो गई हैं। हालांकि विषय उन्होंने सही लिया है। मुंबई शहर में अपना-अपना वजूद बनाने की जद्दोज़हद में लगीं तीन औरतों की (और उनमें से दो की बेटियों की भी) ज़िंदगी में ताकाझांकी करती ये कहानियां पराई नहीं लगतीं। लेकिन बतौर स्क्रिप्ट-राइटर ताहिरा बुरी तरह से डगमगाई हैं। एक साथ बहुत कुछ कह देने, एक साथ बहुत कुछ दिखा देने का उनका मोह फिल्म को भारी बनाता है और दर्शकों को कन्फ्यूज़न में डालता है। कहानियां फैलाने में बनावटीपन का इस्तेमाल किया गया है और समेटने में उपदेशों का। ऊपर से किरदारों को गढ़ते समय राइटर के मन में मौजूद कन्फ्यूज़न इन किरदारों को भी कन्फ्यूज़ करती है। काफी समय तक यह स्पष्ट ही नहीं होता कि ये खुद से या दूसरों से चाहती क्या हैं और किस तरह से चाहती हैं। स्त्रियों की आज़ादी के नाम पर कुछ भी और कैसा भी परोसने का जो चलन हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में हाल के बरसों में चल निकला है, यह फिल्म (Sharmajee Ki Beti) भी उसी ढर्रे पर बनी है जिसमें दिखाई गई कुछ स्त्रियां आज़ाद होना चाहती हैं तो वहीं उनके अगल-बगल वाली गुलामी में ही खुश हैं। नारी-मुक्ति दिखानी है तो पूरी दिखाओ, सलैक्टिव क्यों होना…?

बतौर डायरेक्टर भी ताहिरा कोई बहुत गहरा काम नहीं पेश कर पाई हैं। हालांकि सीन बनाने में उन्होंने कई जगह पर्याप्त कल्पनाशीलता दिखाई है लेकिन अधिकांश जगहों पर वह साधारण ही रही हैं। फिल्म का नाम भी इस पर कोई खास फिट नहीं बैठ रहा है। आठवीं क्लास की बच्चियों ने इस फिल्म (Sharmajee Ki Beti) में जो ढेर सारा ‘पीरियड-विमर्श’ किया है, उसे देखते हुए फिल्म (या उस कहानी का) नाम तो ‘पीरियड्स’ ही ठीक लगता।

दिव्या दत्ता, साक्षी तंवर, सैयामी खेर अच्छा अभिनय कर लेती हैं, उन्होंने किया भी है। परवीन डबास, शारिब हाशमी, रवजीत सिंह अपनी-अपनी छोटी और कमज़ोर भूमिकाओं में ठीक-ठाक काम कर गए। छोटू बने सुशांत घाटगे और गुरवीन बनीं अरिस्ता मेहता सही लगे। स्वाति बनीं वंशिका तपाड़िया ने बेहद आत्मविश्वास के साथ अपनी उम्र से बड़े लगते किरदार को कस कर निभाया। गीतों के शब्द अच्छे लिखे गए हैं मगर संगीत उन पर हावी नज़र आया है।

इस फिल्म ‘शर्माजी की बेटी’ (Sharmajee Ki Beti) को कॉमेडी फिल्म कह कर प्रचारित किया जा रहा है जबकि सच यह है कि इसमें जो थोड़ी-सी सो-कॉल्ड कॉमेडी है, वह हंसाती कम है। इसकी नायिकाओं की उपलब्धियां रोमांचित कम करती हैं। इसके किरदारों का दर्द हमें पीड़ा कम देता है। और यह ‘कम-कम’ ही असल में इस फिल्म को कमतर बनाता है। इससे भी बढ़ कर इसे बनाने वालों के मन की कन्फ्यूज़न असल में पूरी फिल्म को और इसे देखने वालों को भी कन्फ्यूज़ करती है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-28 June, 2024 on Amazon Prime Video

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: amazon primeamazon prime videoarista mehtadivya duttaparvin dabasravjeet singhsaiyami kherSakshi Tanwarsharib hashmisharmajee ki betisharmajee ki beti reviewsushant ghadgetahira kashyap khurranavanshika taparia
ADVERTISEMENT
Previous Post

रिव्यू-कल के लिए उम्मीद जगाती ‘कल्कि’

Next Post

बुक-रिव्यू : ‘द एवरेस्ट गर्ल’ पर तो फिल्म बननी चाहिए

Related Posts

रिव्यू-सिंगल शॉट में कमाल करती ‘कृष्णा अर्जुन’
CineYatra

रिव्यू-सिंगल शॉट में कमाल करती ‘कृष्णा अर्जुन’

रिव्यू-चिकन करी का मज़ा ‘नाले राजा कोली माजा’
CineYatra

रिव्यू-चिकन करी का मज़ा ‘नाले राजा कोली माजा’

रिव्यू-मज़ा, मस्ती, मैसेज ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ में
CineYatra

रिव्यू-मज़ा, मस्ती, मैसेज ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ में

वेब-रिव्यू : झोला छाप लिखाई ‘ग्राम चिकित्सालय’ की
CineYatra

वेब-रिव्यू : झोला छाप लिखाई ‘ग्राम चिकित्सालय’ की

रिव्यू-अरमानों पर पड़ी ‘रेड 2’
CineYatra

रिव्यू-अरमानों पर पड़ी ‘रेड 2’

रिव्यू-ईमानदारी की कीमत चुकाती ‘कॉस्ताव’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-ईमानदारी की कीमत चुकाती ‘कॉस्ताव’

Next Post
बुक-रिव्यू : ‘द एवरेस्ट गर्ल’ पर तो फिल्म बननी चाहिए

बुक-रिव्यू : ‘द एवरेस्ट गर्ल’ पर तो फिल्म बननी चाहिए

Comments 1

  1. NAFEESH AHMED says:
    11 months ago

    विथाउट कन्फूजन रिव्यु…..
    कई बार फ़िल्में….. नाम औऱ काम में अंतर होता है…… शायद इस फ़िल्म में भी यही है…..

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment