-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
फिर ये ‘बॉलीवुड’ वाले कलपते हैं कि हमारे बच्चों को ‘नेपो किड्स’ मत कहिए, हम उन्हें नेपोटिज़्म के चलते फिल्में नहीं देते हैं बल्कि उनका टेलेंट देख कर काम देते हैं। तो भैया करण जौहर जी, ज़रा यह बताइए कि सैफ अली खान के सुपुत्र इब्राहीम अली खान का कौन-सा टेलेंट देख कर आपने उन्हें एक साथ ‘नादानियां’ और ‘सरज़मीन’ (Sarzameen) जैसी बड़ी फिल्मों में लिया? मार्च, 2025 में आई ‘नादानियां’ में इब्राहीम के ‘टेलेंट’ को तो आप ‘देख’ ही चुके होंगे। रही-बची कसर अब ‘सरज़मीन’ में दिख गई है। ‘सरज़मीन’ का निर्देशन आपने अभिनेता बोमन ईरानी के बेटे कायोज़ ईरानी को दिया। चलिए, वह तो कुछ फिल्मों में असिस्टैंट और ‘अजीब दास्तान्स’ की एक कहानी को अच्छे-से डायरेक्ट कर भी चुके हैं। लेकिन ‘सरज़मीन’ में उनके डायरेक्शन का ‘टेलेंट’ और उससे भी बढ़ कर किसी कथा-पटकथा को चुनने व उसे फिल्माने की उनकी प्रतिभा देख कर आपको सोचना होगा कि आप कैसे-कैसों पर भरोसा करने लगे हैं।
कश्मीर की पृष्ठभूमि पर लिखी गई इस कहानी में एक आर्मी अफसर है जिसका मानना है कि सरज़मीन की सलामती से बढ़ कर कुछ भी नहीं, बेटा भी नहीं। ऐसे में वह झूल रहा है फर्ज़ और मोहब्बत के बीच। एक दिन वही बेटा उसके सामने आ खड़ा होता है। उधर उसकी पत्नी इन दोनों के बीच पुल बनाने का काम कर रही है।
ऊपर लिखी हुई कहानी अस्पष्ट हो सकती है। दरअसल इससे ज़्यादा कुछ बताया जाए तो कहानी के धागे खुल जाएंगे। वैसे इस फिल्म (Sarzameen) का ट्रेलर भी इससे ज़्यादा कुछ नहीं बता पाता है। सच तो यह है कि इस फिल्म की कहानी में ‘बताने लायक’ कुछ खास है भी नहीं। तो क्या ‘देखने-दिखाने लायक’ है…? आइए, जानते हैं।
इस फिल्म (Sarzameen) को देखिए तो सबसे ज़्यादा खीज इसकी लिखाई से होती है। लचर ढंग से लिखी गई स्क्रिप्ट पर बड़े नाम वाले चेहरों को लेकर बड़े बैनर से आने वाली इस फिल्म को देख कर यह अफसोस भी होता है कि एक तरफ तो फिल्म वाले अच्छी कहानियों का रोना रोते हैं और दूसरी तरफ अच्छी-भली कहानियों का कचूमर निकाल देते हैं। इस कदर बेढंगी स्क्रिप्ट है कि आप हैरान हो सकते हैं, अफसोस कर सकते हैं। फिल्म के अंत में आने वाला ट्विस्ट देख कर तो आप सिर पीट सकते हैं, चाहें तो बाल भी नोच सकते हैं।
आर्मी वाले किस तरह से काम करते हैं, आतंकवादी किस तरह से काम करते हैं, एक आम इंसान किन हालात में कैसे रिएक्ट करता है, यह सब इस फिल्म की स्क्रिप्ट में बहुत कमज़ोर ढंग से लिखा गया है। आर्मी अफसर कई साल से एक ही जगह पोस्टिंग लिए बैठा है, सरकार की नज़र में वह बैस्ट है लेकिन जब-जब किसी मिशन पर जाता है, फेल हो जाता है और कोई इन्क्वॉयरी तक नहीं होती, सब लोग तकनीकी तौर पर उन्नत हैं लेकिन ऐन मौके पर उनके मोबाइल का नेटवर्क उड़ जाता है, एक अभियान में पकड़े गए आतंकवादियों को अफसर अपने बेटे के बदले छोड़ने पर तैयार हो जाता है, गोया कि इतनी पॉवर सरकार ने उसे दे रखी है, बड़ा अफसर है लेकिन जब कहीं जाना हो तो खुद ही जीप, ट्रक उठा कर निकल लेता है, उस अफसर को मारने के लिए आतंकी आठ साल तक चुप बैठे रहते हैं…! किरदारों को भी बहुत खराब लिखा गया है। आर्मी अफसर की बीवी जिस तरह से बर्ताव करती है, वह बेवकूफ लगती है। और यह सब तब है जब फिल्म (Sarzameen) में दो सिविल और एक आर्मी वाले स्क्रिप्ट सुपरवाइज़र की सेवाएं ली गई हैं।
कायोज़ ईरानी का निर्देशन साधारण रहा है। हल्की कहानी और कमज़ोर पटकथा हो तो बेचारा निर्देशक फिर हर सीन के पीछे लाउड बैकग्राउंड म्यूज़िक बजा कर ही सीन बना सकता है। फिल्म की एक बड़ी कमी इसका एक्शन भी है। ऐसी फिल्मों में स्टंट कोरियोग्राफी हद दर्जे की विश्वसनीय और भव्य होती है, होनी चाहिए। लेकिन इस फिल्म के एक्शन-सीक्वेंस में ये दोनों ही गुण नहीं हैं। कैमरा बढ़िया लोकेशन पकड़ता रहा लेकिन अंधेरे वाले सीन आंखों को खटकते रहे। दो घंटे बाद जब लगा कि फिल्म (Sarzameen) खत्म हो गई है, तब भी कुछ गैरज़रूरी सीन आकर चुभते रहे।
काजोल अच्छी अभिनेत्री हैं लेकिन उनका किरदार ही खराब लिखा गया, सो उनका काम भी साधारण ही लगा। पृथ्वीराज सुकुमारन को समझना होगा कि हिन्दी वाले उन्हें हल्के में ले रहे हैं। अब तक आई उनकी तमाम हिन्दी फिल्मों (अईया, औरंगज़ेब, नाम शबाना, बड़े मियां छोटे मियां) ने उनके नाम को खराब ही किया है। इस फिल्म (Sarzameen) में भी वह बहुत हल्के रहे। इब्राहीम अली खान की एक्टिंग बेदम है। उन्हें खुद पर काफी काम करना होगा। जितेंद्र जोशी, के.सी. शंकर, बोमन ईरानी जैसे बाकी लोग औसत रहे। गाने-वाने भी औसत निकले। जियो हॉटस्टार पर आई यह फिल्म ही औसत है, बल्कि औसत से भी कमतर है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-25 July, 2025 on Jio Hotstar
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)
Uffff…. Chalo paise bach gye…