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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-चरस तो मत बोइए ‘मालिक’

Deepak Dua by Deepak Dua
2025/07/11
in फिल्म/वेब रिव्यू
9
रिव्यू-चरस तो मत बोइए ‘मालिक’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

1990 के समय का इलाहाबाद। दीपक के मज़दूर पिता को किसी ने खेत समेत रौंद डाला तो उसे मार कर वह पॉवर का भूखा बन बैठा और जल्दी ही इलाके का ‘मालिक’ हो गया। उसकी मर्ज़ी के बगैर अब शहर में कुछ नहीं होता। लेकिन कुछ समय बाद वही लोग उसके खिलाफ हो गए जो कल तक उसके सरपरस्त थे। अब एक तरफ ‘मालिक’ है और दूसरी ओर उसके दुश्मन। हर तरफ से गोलियां बरस रही हैं और पुलिस कभी इस पाले में तो कभी उस पाले में कूद रही है।

अपराधी, नेता और पुलिस की जुगलबंदी का प्लॉट हमारी फिल्मों के लिए कोई नया नहीं है। सच तो यह है कि यह जुगलबंदी हमारे समाज का ही एक ऐसा कड़वा और स्वीकार्य सच है जिसे फिल्म वाले अलग-अलग नज़रिए और अलग-अलग शैली में दिखाते रहते हैं। पर्दे पर ऐसी जुगलबंदियां जब शानदार निकलती हैं तो ‘सत्या’, ‘वास्तव’ हो जाती हैं और अगर बेकार निकलें तो ‘मालिक’ (Maalik) बन जाती हैं। ऐसी तमाम फिल्मों की तरह यह फिल्म भी इस बात को रेखांकित करती है कि ताकत पाने के बाद हर अपराधी सत्ता की कुर्सी चाहता है कि ताकि आज उसके पीछे पड़ी पुलिस कल उसकी बॉडीगार्ड बन जाए।

इस फिल्म के आने से पहले यह चर्चा भी थी कि यह 2021 में आई फहाद फाज़िल वाली मलयालम फिल्म ‘मालिक’ का रीमेक होगी जिसमें अपराध और राजनीति के गठजोड़ को दिखाने के साथ-साथ यह भी दिखाया था कि असल ताकत तो राजनेताओं के हाथ में रहती है जो अपने स्वार्थ के लिए अपराधियों को पालते, पोसते, पैदा करते और मरवाते हैं। हालांकि यह ‘मालिक’ भी इसी गठजोड़ को दिखाती है लेकिन यह उस ‘मालिक’ का रीमेक नहीं है। ऐसा होता तो इस फिल्म (Maalik) पर हद से हद ‘रीमेक है, ओरिजनल नहीं’ का ही आरोप लगता। लेकिन अब तो इस फिल्म पर कोई आरोप लगाना भी बेकार होगा क्योंकि इस किस्म की घिसी-पिटी कहानियां हम लोग बरसों पहले पीछे छोड़ आए हैं।

(रिव्यू : सिने-रसिकों के लिए मलयालम ‘मालिक’)

फिल्म (Maalik) की लिखाई कमज़ोर और घिसे-पिटे ढर्रे वाली है। पिता किसी दूसरे के खेत में मज़दूरी करता है लेकिन बेटे के तेवर ऐसे हैं जैसे कहीं का ज़मींदार हो। घर में पिता का मालिक क्यों आया, बेटे ने उसे नमस्ते तक भी क्यों नहीं की, खेत क्यों बर्बाद हुआ, हुआ तो बेटे में इतना जोश किस बूते पर आया कि वह शहर के बाहुबली नेता के घर में दनदनाता हुआ जा घुसा, घुसा तो गुंडा बन कर ही क्यों निकला, बना तो ‘मालिक’ कैसे हो गया, जैसे ढेर सारे सवाल पूछने के लिए आप आज़ाद हैं लेकिन यह फिल्म कोई जवाब नहीं देगी। बेटा बेरोज़गार है, बाप मज़दूर है लेकिन बेटे की शादी ऐसी सुंदर लड़की से हो चुकी है कि ब्यूटी कंपीटिशन में भेज दो तो मिस वर्ल्ड बन जाए। लड़की भी कैसी जिसका पति गुंडई कर रहा है लेकिन उसे परवाह तब होती है जब वह मां बनने वाली होती है। और लड़की के डायलॉग तो देखिए कि पहले ही सीन में पति से शॉपिंग की मांग कर रही है, बार-बार कुछ न कुछ मांग रही है लेकिन अंत में उसे कहती है कि आज तक तुम से कुछ नहीं मांगा, आज मांगते हैं… चल री झूठी…!

फिल्म (Maalik) में लगभग हर किसी का किरदार डावांडोल है। ‘मालिक’ के सामने खड़े गुंडे का, विधायक का, पुलिस वालों का, सभी का। ‘मालिक’ के साथियों का तो ज़बर्दस्त कटा है, बेचारों की न तो कोई पर्सनल लाइफ है, न कोई ख्वाहिशें। ‘मालिक’ को निबटाने के लिए खास लखनऊ से एक पुलिस वाले को बुलाया गया है। अगर वह इतना ही खास है तो तीन साल से सस्पैंड काहे बैठा है बे…? वह आते ही उछल-कूद करता है लेकिन फिल्म के दो घंटे बीतने के बाद उसे बुलवाने वाला विधायक जब उससे कहता है कि तुम बकलोल हो, तब याद आता है कि सिर्फ यही नहीं, बल्कि पूरी फिल्म ही बकलोल है-बातें बहुत कर रही है, लेकिन कहना क्या चाहती है, यह नहीं पता। दरअसल किसी भी कहानी में ‘कहन’ बहुत ज़रूरी होता है। इस फिल्म की कहानी से वह ‘कहन’ लापता है, इन दिनों आ रहीं बहुत सारी हिन्दी फिल्मों की तरह। संवाद बेशक कई जगह भारी हैं लेकिन वे कहानी के हल्के मिज़ाज में फिट नहीं लगते।

पुलकित का निर्देशन हल्का, उबाऊ और कमज़ोर रहा है। आने वाले सीक्वेंस का पहले से अंदाज़ा हो जाना और चल रहे सीक्वेंस का कोई पुख्ता आधार न होना तार्किक मन को खलता है। हां, फिल्म का तेवर उन्होंने संभाले रखा है। ‘ए’ सर्टिफिकेट प्राप्त यह फिल्म (Maalik) भरपूर हिंसा परोसती है और हिंसा दिखाने में पुलकित ने कोई नरमी नहीं बरती है। राजकुमार राव का नया, क्रूर लुक उनके चाहने वालों को भा सकता है और उन लोगों को भी जो यह कहते हैं कि हल्की-फुल्की कॉमेडी वाली अपनी फिल्मों में राजकुमार खुद को दोहराते रहते हैं। अंशुमान पुष्कर को देखना तसल्ली देता है। हालांकि ज़्यादातर समय वह ‘मालिक’ के दुमछल्ले ही बने रहे। सौरभ शुक्ला, स्वानंद किरकिरे, सौरभ सचदेवा अपने हल्के किरदारों में जंचे। प्रसन्नजित चटर्जी बहुत असहाय लगे। मानुषी छिल्लर खूबसूरती और अभिनय, दोनों ही मोर्चों पर फीकी रहीं। गाने-वाने चलताऊ किस्म के रहे जो असल में इस किस्म की मारधाड़ वाली फिल्मों के कस्बाई दर्शकों को लुभाने के लिए डाले जाते हैं।

नब्बे के वक्त की कहानी परोसती यह फिल्म (Maalik) नब्बे वाले स्टाइल में ही बनाई गई है। वही वक्त जब फिल्म वाले पर्दे पर चरस बो कर हमें बेसिर-पैर की हिंसा वाली फिल्मों के आदी बना रहे थे। अब हम आदी हो चुके हैं। चरस पसंद हो तो देखिए इसे।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-11 July, 2025 in theaters

(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)

Tags: anshumaan pushkarmaalikmaalik reviewmanushi chhillarprosenjit chatterjeepulkitrajkummar raosaurabh sachdevasaurabh shuklaswanand kirkire
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Comments 9

  1. B S BHARDWAJ says:
    3 months ago

    बहुत शानदार लिखा आपने पूरे लखनवी अंदाज में 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

    Reply
    • CineYatra says:
      3 months ago

      धन्यवाद

      Reply
  2. suraj shukla says:
    3 months ago

    शानदार समीक्षा👏👏👏

    Reply
    • CineYatra says:
      3 months ago

      धन्यवाद

      Reply
  3. Dr. Renu Goel says:
    3 months ago

    Bhut hi lajwab style me likha h
    👏👏👏👏👏

    Reply
    • CineYatra says:
      3 months ago

      धन्यवाद

      Reply
  4. NAFEES AHMED says:
    3 months ago

    कव्वा चला हंस क़ी चाल…. बस यही काफी है इस फ़िल्म क़े लिए….

    Reply
  5. Sandeep Kishor says:
    3 months ago

    पता नहीं वो समय कब आयेगा जब कोई अच्छी फिल्म देखने को मिलेगी, आँखें तरस गई बहुत समय से कोई अच्छी फिल्म नहीं देखी😊

    Reply
    • CineYatra says:
      3 months ago

      अभी हफ्ता भर पहले ‘मैट्रो… इन दिनों’ आई है, देखिए…

      Reply

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