-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
उत्तर प्रदेश के गुस्सैल ए.सी.पी. विश्वास भागवत को क्राइम ब्रांच से हटा कर रॉबर्ट्सगंज भेजा गया है। शहर में एक लड़की के गायब होने से बवाल मचा हुआ है। भागवत का वादा है कि वह 15 दिन में उसे तलाश लेगा। अपनी तफ्तीश में उसे पता चलता है कि सिर्फ वह लड़की ही नहीं बल्कि कुल 19 लड़कियां लापता हैं। पुलिस शक में एक युवक को उठाती है लेकिन उसके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं है। भागवत को यकीन है कि यही राक्षस है लेकिन वह शातिर कुछ और ही पैंतरे आजमा रहा है। अचानक कुछ ऐसा होता है कि…!
ज़ी-5 पर आई इस फिल्म ‘भागवत चैप्टर 1-राक्षस’ की कहानी में दम है। कहानी के आवरण को भी दिलचस्प ढंग से तैयार किया गया है जिससे उत्सुकता बनी रहती है। एक लड़की के लापता होने के बाद लगातार नए-नए नामों का जुड़ते चले जाना रहस्य को बढ़ाता है। उधर इस कथा के समानांतर एक युवक-युवती की परवान चढ़ती प्रेम-कहानी इस रहस्य में नया एंगल जोड़ती चलती है। लेकिन यह कहानी उतनी दिलचस्प, कसी हुई और पैनी बन नहीं पाई है जितनी होनी चाहिए थी या हो सकती थी।
पहली दिक्कत इसकी स्क्रिप्ट के साथ है जो अनेक जगह तर्क छोड़ती है और अपने प्रवाह के साथ दर्शकों को बहा कर नहीं ले जा पाती। गायब हुई लड़कियां आपस में बात क्यों कर रही थीं? पहली 18 लड़कियों के लापता होने पर कोई हलचल क्यों नहीं हुई? गायब होने के बाद उनके साथ जो हुआ वह कभी सामने क्यों नहीं आ सका? एक जैसे 19 केस और पूरे पुलिस डिपार्टमैंट में किसी को भी सी.सी.टी.वी. फुटेज या अन्य सबूत खंगालने का ख्याल नहीं आया? संवाद भी कई जगह ठूंसे गए लगते हैं जो किरदारों की विशेषताओं से मेल नहीं खा पाते।
दूसरी दिक्कत किरदारों को खड़ा करने के साथ है। 19 पढ़ी-लिखी लड़कियां मरी जा रही हैं एक ही युवक पर, और युवक भी कौन, किसी छोटे-से गांव की ‘पंचायत’ के सचिव जैसी शक्लो-सूरत वाला-न कोई खास पर्सनेलिटी, न अमीर, न विद्वान। लड़कियों को इतना मूर्ख भी नहीं होना चाहिए, कम से कम इतना तो सिखा ही जाती है यह कहानी।
(वेब-रिव्यू : दिल के छज्जे पे चढ़ेंगे, ‘बड़ा नाम करेंगे’)
तीसरी दिक्कत अक्षय शेरे के निर्देशन के साथ है। बहुत ही साधारण तरीके से वह कहानी की परतें खोलते हैं। हालांकि यथार्थ लोकेशन और कलाकारों की उम्दा एक्टिंग के दम पर उन्होंने फिल्म को साधे रखा है। दरअसल यह फिल्म इसके कलाकारों की एक्टिंग के लिए ही देखी जानी चाहिए। अरशद वारसी का गंभीर अभिनय उन्हें प्रभावी बनाता है। ‘पंचायत’ वाले जितेंद्र कुमार के अभिनय की रेंज काफी सीमित है, वह उसी में रह कर असर छोड़ते हैं। ‘बड़ा नाम करेंगे’ में आ चुकीं आयशा कादुस्कर प्यारी और प्रभावी रही हैं। तारा अलीशा बेरी, देवास दीक्षित, संदीप यादव आदि अन्य कलाकारों ने भी जम कर अपने किरदार पकड़े हैं। गीत-संगीत बहुत हल्का है।
एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि बिल्कुल यही कहानी हम लोग अमेज़न प्राइम पर आई सोनाक्षी सिन्हा वाली वेब-सीरिज़ ‘दहाड़’ में देख चुके हैं और कहीं बेहतर अंदाज़, बड़े विस्तार में देख चुके हैं। अब हूबहू उसी कहानी पर उससे कमतर ढंग से बनी हुई यह फिल्म देखनी हो तो मर्ज़ी आपकी। वैसे इस फिल्म का नाम ‘भागवत’ क्यों है? क्या लेखक-निर्देशक को अपनी कहानी की रूपरेखा बयान करता कोई सटीक शीर्षक भी नहीं मिला? ‘चैप्टर-1 राक्षस’ से साफ है कि कल को ऐसी ही किसी और कहानी को ‘चैप्टर-2,3,4…’ आदि की शक्ल में लाया जाएगा। मर्ज़ी उनकी।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-17 October, 2025 on ZEE5
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)


Zee-5 or OTT par aane se aise filmon ka na chal pana …. Yahi OTT hain… aur rahi baat review ki to aapne Kataksh kiya he hai…ki Aaj ki 21st Century mei Females itni kam aql nahi ho sakti jaisa ka film mei dikhaya gya hai… Aur rahi Bhagwat-1 ki to isse achcha to ek Panchayat Jaisi Series he bana dete to kam se kam ye to samajh mei aata ki ek Webseries dekh rahe hain…. New Experiment…But Result will be Zero…
Thanks for the Review