• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home CineYatra

रिव्यू : हल्के-फुल्के ‘बकलोल्स’

Deepak Dua by Deepak Dua
2025/12/08
in CineYatra, फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू : हल्के-फुल्के ‘बकलोल्स’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ…

बकलोल का अर्थ समझते हैं जी…? बकलोल यानी मूर्ख, नासमझ, बेवकूफ किस्म का इंसान जो बातें तो करे बड़ी-बड़ी लेकिन काम न कर पाए धेले का भी। और इस भोजपुरी फिल्म का नाम तो ‘बकलोल्स’ (Baklols) है यानी यहां एक नहीं कई सारे बकलोल हैं जो मिल कर बकलोली कर रहे हैं और उससे उपज रही है कॉमेडी। कॉमेडी तो बूझते हैं न जी…!

नई वाली हिन्दी के स्टार लेखक सत्य व्यास अपने उपन्यासों-‘बनारस टॉकीज़’, ‘दिल्ली दरबार’, ‘बागी बलिया’, ‘उफ्फ कोलकाता’ आदि से लेखन के मैदान में छाए हुए हैं। उनके उपन्यास ‘चौरासी’ पर बनी वेब-सीरिज़ ‘ग्रहण’ ने हॉटस्टार के दर्शकों को काफी लुभाया था। उनके कुछ उपन्यासों पर हिन्दी फिल्में बन रही हैं। अब उन्होंने भोजपुरी सिनेमा के मैदान में इस फिल्म ‘बकलोल्स’ (Baklols) से कदम रख दिया है जो उस स्टेज ऐप पर आई है जो हरियाणवी व राजस्थानी कंटैंट परोसने के बाद अब भोजपुरी के दर्शकों को लुभाने का काम कर रहा है।

‘बकलोल्स’ (Baklols) की कहानी में तीन फुकरे युवक हैं जिन्हें अलग-अलग कारणों से पैसा चाहिए। एक आदमी के कहने पर ये लोग एक अमीर डॉक्टर की बेटी को किडनैप कर लेते हैं। लेकिन किडनैपिंग का इन्हें अनुभव है नहीं और बकलोली इनसे जितनी चाहे करवा लो। तो बस, इन हालात में उपजती है कॉमेडी जो कभी आपको होठों पर मुस्कान लाती है तो कभी हंसी।

(फिल्म ‘बकलोल्स’ का ट्रेलर देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)

हल्के-फुल्के किस्म की नॉनसैंस कॉमेडी फिल्मों में लॉजिक नहीं ढूंढे जाते। यहां भी लॉजिक से ज़्यादा फोकस किरदारों की ऊल-जलूल हरकतों, उनके बकलोली भरे संवादों और उनके साथ हो रही हास्यास्पद घटनाओं पर रखा गया है ताकि दर्शक इस फिल्म को देख कर मुस्कुराए, हंसे और अपने दिल-दिमाग को हल्का करे।

सत्य व्यास को अपनी लिखाई से पाठकों को बांधना आता है, यह वह अपने उपन्यासों में बार-बार साबित करते रहे हैं। ‘बकलोल्स’ (Baklols) में भी उन्होंने कहानी का प्रवाह थमने नहीं दिया है। लेकिन कुछ एक मोर्चों पर यह फिल्म हल्की भी लगती है। किडनैपिंग के पीछे की भूमिका दमदार नहीं बन पाई है और किडनैपिंग हो जाने के बाद स्क्रिप्ट में सुस्ती भी आई है, दोहराव भी। कुछ नए व कसे हुए ट्विस्ट फिल्म को बेहतर बना सकते थे। कुछ सीन खिंचे हुए-से लगते हैं। अंत न सिर्फ हल्का है बल्कि ऐसा भी लगता है कि फिल्म के सीक्वेल के लिए कहानी को बीच राह में छोड़ दिया गया। हालांकि चटपटे संवाद और कलाकारों की संवाद अदायगी आप को बोर नहीं होने देती लेकिन बार-बार यह महूसस होता है कि सत्य व्यास इससे बेहतर रचते आए हैं, यहां भी वे इससे बेहतर रच सकते थे।

निशांत सी. शेखर का निर्देशन अच्छा रहा है। फिल्म का हल्का बजट उनकी कोशिशों के आड़े आता महसूस होता रहा। उन्हें कुछ और सहारा मिला होता तो यह फिल्म अधिक दमदार हो सकती थी। बैकग्राउंड से आतीं अजीब-अजीब आवाज़ें कहीं जंचती हैं तो कहीं अखरती भी हैं। सत्य व्यास ने फिल्म के गानों के अलावा संगीत में भी हाथ आजमाया है जो बढ़िया है।

रवि शर्मा, इंद्र मोहन सिंह, अशोक कुमार माजी, मनोज टाइगर, अशोक कुमार झा, राजेश तिवारी, रिया नंदिनी, हर्षिता उपाध्याय जैसे कलाकारों ने अपनी ओर से कमी नहीं आने दी है और दृश्यों को रोचक बनाए रखा है। लेकिन कुछ एक जगह महसूस होता है कि निर्देशक इन्हें कायदे से साध नहीं पाए।

हल्के-फुल्के मनोरंजन के उद्देश्य से बनाई गई यह भोजपुरी फिल्म ‘बकलोल्स’ (Baklols) ठहाके भले ही न लगवा पाए, आपके चेहरे पर मुस्कान बनाए रखती है।

(इस फिल्म ‘बकलोल्स’ को देखने के लिए स्टेज ऐप को मात्र एक रुपए में सात दिन के लिए ट्राई करना हो तो इस लिंक पर क्लिक करें)

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-7 December, 2025 on Stage App

(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ-साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब-पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)

Tags: ashok kumar majeebaklolsbaklols bhojpuribaklols bhojpuri reviewbaklols reviewbhojpuriharshita upadhyayindra mohan singhmanoj tigernishant c shekharr.k. goswamirajesh tiwaryravi sharmariya nandinisatya vyasstagestage appstage ottwriter satya vyas
ADVERTISEMENT
Previous Post

रिव्यू-ज़ख्मों का हिसाब लेने आया ‘धुरंधर’

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment