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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-‘गोधरा’ अग्निकांड की फाइलें खोलती फिल्म

Deepak Dua by Deepak Dua
2024/07/18
in फिल्म/वेब रिव्यू
3
रिव्यू-‘गोधरा’ अग्निकांड की फाइलें खोलती फिल्म
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

‘सच हमारी आंखों के सामने होता है, बस हम लोग उसे देख नहीं पाते।’

मार्च, 2002 में हुए गुजरात के दंगों के सच-झूठ पर कितनी ही बातें की गईं, बड़े लोगों ने बड़ी किताबें लिखीं, बड़े फिल्मकारों ने बड़ी फिल्में बनाईं। लेकिन इन दंगों के मूल में जो गोधरा कांड था, उस पर बात करने से अधिकांश लोग बचते रहे। यह फिल्म ‘एक्सीडैंट ऑर कांस्पिरेसी-गोधरा’ वही बात करने आई है।

फिल्म दिखाती है कि 27 फरवरी, 2002 की सुबह गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर आकर रुकी साबरमती एक्सप्रैस ट्रेन को वहां से रवाना होते ही रोक लिया गया, उस ट्रेन पर पथराव हुआ, खासकर उसकी उन दो बोगियों पर, जिनमें कई कारसेवक पुरुष, महिलाएं और बच्चे अयोध्या में संपन्न हुए एक यज्ञ से लौट रहे थे। इन दो बोगियों को आग लगा दी गई जिनमें 59 लोग मरे। जांच आयोग के सामने बरसों तक यह साबित करने की कोशिशें की जाती रहीं कि यह अग्निकांड एक हादसा था। लेकिन गवाहों, सबूतों और फॉरेंसिक रिपोर्टों ने यह साबित किया कि यह एक सुनियोजित षड्यंत्र था। यह फिल्म उसी नानावटी जांच आयोग की उस कार्रवाई को दिखाने आई है।

किसी इन्क्वॉयरी कमीशन की रिपोर्ट को आधार बना कर फिल्म को लिखना आसान नहीं हो सकता। ज़ाहिर है कि लिखने वाला लफ्फाजी नहीं कर सकता। उसे सिर्फ और सिर्फ तथ्यों पर, उन दस्तावेजों पर निर्भर रहना होगा, जो मौजूद हैं। इस फिल्म को लिखने वालों ने भी उन तमाम तथ्यों को एक कहानी में पिरोते हुए सामने लाने की कोशिश की है। उस हादसे के कई साल बाद एक छात्र द्वारा उस हादसे से जुड़े लोगों से मिलने और उनके पक्ष जानने की कोशिशों का तरीका इस फिल्म की शैली को ‘द ताशकंद फाइल्स’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ के करीब ले जाता है। हालांकि यह लिखाई उन फिल्मों सरीखी पकी हुई नहीं है, बावजूद इसके यह अपने रास्ते से भटके बिना उन मुद्दों पर बात कर पाई है जिनके बारे में यह बात करने आई है।

ऐसी फिल्मों पर अक्सर एकतरफा होने के आरोप लग जाते हैं। लेकिन यह फिल्म खुद को सिर्फ गोधरा ट्रेन अग्निकांड तक सीमित रखती है और केवल उन्हीं तथ्यों को दिखाती, बताती है जो दस्तावेजों में दर्ज हैं। निर्देशक एम.के. शिवाक्ष ने संतुलन बनाए रखते हुए कई सारे उम्दा सीन दिए हैं जो गहरा असर छोड़ते हैं। खासतौर से कोर्ट-रूम सीन फिल्म और इसके विषय के प्रति उत्सुकता बनाए रखते हैं। अंत में ट्रेन के जलने का दृश्य मार्मिक है व सन्न कर देता है। हालांकि फिल्म देखते हुए सीमित बजट के चलते इसकी हल्की प्रोडक्शन वैल्यू उजागर होती है लेकिन बनाने वालों ने कथ्य से समझौता किए बगैर उस सच को सफलतापूर्वक सामने रखा है जिस सच को यह सामने रखने आई है।

रणवीर शौरी, मनोज जोशी, हितु कनोडिया, देनिशा घुमरा जैसे कलाकार अपने-अपने किरदारों के साथ भरपूर न्याय करते हैं। कागज़ों में दर्ज सत्य को उजागर करती ऐसी फिल्मों को देखा जाना चाहिए, इन्हें नई पीढ़ी को भी दिखाया जाना चाहिए। इन पर बात भी होनी चाहिए ताकि इस किस्म के वाकये फिर न हों और सब लोग अमन-चैन से रह सकें।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-19 July, 2024 in theaters

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: Accident or Conspiracy GodhraAccident or Conspiracy Godhra reviewdenisha ghumragodhragodhra reviewhitu kanodiyaM.K. shivaakshmanoj joshiranvir shorey
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Comments 3

  1. Ishwar Singh says:
    1 year ago

    Perfet review. Makeup my mind after watching this review.

    Reply
    • CineYatra says:
      1 year ago

      thanks…

      Reply
  2. NAFEESH AHMED says:
    1 year ago

    जब तथ्यों को तरोड़ मरोड़ कर लिखा दिया जाए औऱ अपने आपको दूध का धुला सावित करना हो…….तो ऐसी फ़िल्में बनवाई जाती हैँ….वरना क्या ज़रूरत है????

    फ़िल्में कोई अदालत नहीं है साहिब…………. शायद इसी तरह के टाइटल कि फ़िल्में बनाकर कुछ चाटुकार प्रोडूसर औऱ निर्देशक महानता प्राप्त कर चुके हैँ…..??

    Reply

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