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Home यादें

यादें-1998 की वह पहली मुंबई यात्रा (भाग-5)

Deepak Dua by Deepak Dua
1998/08/22
in यादें
0
यादें-1998 की वह पहली मुंबई यात्रा (भाग-1)
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-दीपक दुआ…

26 अगस्त, 1998-गणेश चतुर्थी का दिन। इस दिन महाराष्ट्र (और अब तो देश भर में भी) में जगह-जगह, घर-घर, पंडालों आदि में गणपति ‘बिठाए’ जाते हैं। इस दिन लोगबाग गणपति की स्थापना करते हैं और कुछ दिन बाद विसर्जन। इस दिन महाराष्ट्र में सार्वजनिक छुट्टी रहती है। यानी आज हम किसी म्यूज़िक कंपनी या टी.वी. चैनल के ऑफिस नहीं जा सकते थे।

(पिछला भाग पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)

सो, मैंने और विद्युत भाई ने तय किया हुआ था कि आज हम लोग एलिफैंटा गुफाएं देखने जाएंगे।

धारापुरी टापू पर एलिफैंटा गुफाएं

मलाड स्टेशन से लोकल ट्रेन लेकर हम लोग चर्चगेट स्टेशन पहुंचे और वहां से टहलते हुए गेटवे ऑफ इंडिया। छुट्टी का दिन होने के कारण बहुत सारे लोग वहां मौजूद थे। एक स्टीमर, जिसे वहां के लोग ‘लॉन्च’ बोल रहे थे, की टिकट लेकर हम लोग समुंदर की लहरों पर यात्रा करते हुए धारापुरी टापू जा पहुंचे जहां एलिफैंटा गुफाएं स्थित हैं। इन गुफाओं और यहां उकेरे गए शिव-पार्वती के अलग-अलग रूपों को देखना एक अद्भुत अनुभव है। बीच-बीच में हल्की-हल्की बारिश भी हो रही थी और इस टापू पर बंदर भी सैलानियों को परेशान कर रहे थे। हम लोग अपने हाथ में पकड़े छाते से उन्हें डराते हुए काफी देर तक यहां घूमते रहे और फिर वापस मुंबई को चल पड़े।

‘महायज्ञ’ की शूटिंग

चर्चगेट से लोकल ट्रेन द्वारा हम लोग विलेपार्ले पहुंचे जहां फिल्मों के प्रचारक, हमारे मित्र आई.पी.एस. यादव हमारा इंतज़ार कर रहे थे। यहां से हम लोग पैदल टहलते हुए अंधेरी ईस्ट स्थित ‘जाल’ नाम के एक होटल में जा पहुंचे जहां सोनी टी.वी. पर आने वाले धारावाहिक ‘महायज्ञ’ की शूटिंग चल रही थी। दरअसल हम लोग यहां अभिनेत्री प्रीति खरे से मिलने आए थे जिनसे विद्युत भाई की बात हो चुकी थी। असल में प्रीति खरे विख्यात साहित्कार, पत्रकार विष्णु खरे जी की पुत्री हैं और विष्णु जी से विद्युत भाई का परिचय था। विष्णु जी ने ही दिल्ली में विद्युत जी को प्रीति जी का नंबर देते हुए उनसे कहा था कि मुंबई जा रहे हो तो मिल लेना। बता दूं कि ‘महायज्ञ’ अपने वक्त का बहुत ही लोकप्रिय धारावाहिक था और इसमें मनोहर सिंह, गोविंद नामदेव, रोहिणी हट्टंगड़ी, कुमुद मिश्रा, मुरली शर्मा जैसे कलाकार थे। इसके निर्देशक अनिल चौधरी भी छोटे पर्दे की दुनिया के बेहद सशक्त लोगों में गिने जाते थे जिन्होंने ‘नुक्कड़’, ‘यह जो है ज़िंदगी’, ‘रजनी’, ‘करमचंद’ जैसे बेहद सफल धारावाहिक लिखे और कई धारावाहिकों का निर्देशन भी किया। यहां पहले तो हमने प्रीति खरे, जिन्हें अनन्या खरे के नाम से भी जाना जाता है, से बातचीत की जो बाद में ‘चित्रलेखा’ पत्रिका में भी प्रकाशित हुई थी जिसे नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर के पढ़ा जा सकता है।

ओल्ड इंटरव्यू : छोटे पर्दे की बड़ी अदाकारा-प्रीति खरे

यहां हमारी भेंट अभिनेता गोविंद नामदेव से भी हुई जो कुछ हफ्ते पहले आई फिल्म ‘सत्या’ में दिखे थे, लेकिन इंटरव्यू जैसा कुछ नहीं हो पाया। अलबत्ता बरसों बाद गोविंद जी से दिल्ली में मेरी लंबी मुलाकात ज़रूर हुई जिसे नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर के पढ़ा जा सकता है।

यादें-गोविंद नामदेव से तब मिलना और अब मिलना

और हम बन गए एक्टर

‘महायज्ञ’ के निर्देशक अनिल चौधरी से भी बातचीत हुई जिसके बाद हम लोग वहां से चलने के लिए बाहर आकर अभी आगे का प्रोग्राम तय कर ही रहे थे कि अचानक निर्देशक अनिल चौधरी ने हमारे पास आकर पूछा-आप दोनों एक सीन में एकि्ंटग करना चाहेंगे? हम लोग तो चौंक पड़े। फिल्म पत्रकारों को एक्टिंग का ऑफर…! तब उन्होंने बताया कि एक सीन में छोटे ठाकुर होटल में प्रवेश करते हैं तो यदि हम दोनों उन्हें ‘छोटे ठाकुर, नमस्ते’ बोल दें तो उनका रुतबा दिखेगा। हमने ज़रा देर विचार किया और कहा, चलिए कर देते हैं नमस्ते। सीन में हमें होटल के रिसेप्शन पर रखे सोफे पर बैठ कर कोई अखबार आदि पढ़ना था और गोविंद नामदेव के आने पर उठ कर उन्हें नमस्ते बोल कर फिर बैठ जाना था। इस पर मैंने निर्देशक अनिल चौधरी से कहा कि यदि सीन रीटेक हुआ तो हमें बार-बार नमस्ते कहना होगा। तो क्यों न हम लोग उन्हें नमस्ते कह कर बाहर निकल जाएं ताकि हम लोगों का काम खत्म हो और हम अपनी अगली मंज़िल की तरफ चल दें? अनिल जी को मेरा सुझाव पसंद आया और हमने यही किया। सीन में मैं ‘चित्रलेखा’ पत्रिका का एक अंक पढ़ रहा था। जैसे ही गोविंद नामदेव आए, हमने अखबार, मैगज़ीन वहीं छोड़ी, उन्हें ‘नमस्ते छोटे ठाकुर’ कहा और बाहर की ओर चल दिए। हमारा सीन एक ही बार में ओ.के. हो गया और अनिल जी हमें धन्यवाद देने बाहर तक आए। हमने मज़ाक में उनसे कहा कि जूनियर आर्टिस्ट वाली पेमेंट ही दिलवा दीजिए, तो वह ठहाका लगा कर हंस पड़े। इस शूटिंग के बारे में मैंने किसी को नहीं बताया था। कुछ दिन बाद जब यह एपिसोड टी.वी. पर आया तो मेरे कई परिचितों ने कहा कि उन्होंने मुझे टी.वी. पर देखा।

यहां से विद्युत भाई अपने एक परिचित के घर चले गए और मैं आई.पी.एस. यादव जी के साथ उस लड़की के घर की तरफ चल पड़ा जो आगे चल कर एक बेहद कामयाब और लोकप्रिय गायिका बनी।

(आगे पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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