-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
महाराष्ट्र की राजनीति और वहां के लोगों के जीवन में दिवंगत बाला साहब ठाकरे का होना कितना महत्वपूर्ण था, यह महाराष्ट्र से दूर बैठे हम जैसे लोगों के लिए समझ और महसूस कर पाना शायद असंभव है। यह फिल्म हमारी उसी समझ को बढ़ाती है और हमें उन भावों को महसूस करने में मदद करती है जिनसे होकर कभी महाराष्ट्र के वे लोग गुज़रे होंगे जिन्होंने बाला साहब को करीब से देखा या जिन पर उनके होने से कोई फर्क पड़ा।
बाल केशव ठाकरे-अपनी अलग नज़र से दुनिया को देखने वाला इंसान। अपनी अलग शर्तों पर दुनिया में जीने वाला इंसान। काटूर्निस्ट की नौकरी में जब उसे अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं मिली तो उसने नौकरी छोड़ कर अपनी पत्रिका शुरू कर दी। जब देखा कि महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में तो गैर-मराठियों का वर्चस्व है तो उसने ‘अपने लोगों’ को उनका ‘हक’ दिलाने की लड़ाई छेड़ दी। पहले मराठी और फिर हिन्दू हितों की बात करते-करते बाला साहब और उनकी पार्टी ने महाराष्ट्र और हिन्दुस्तान की राजनीति में जो जगह बनाई, उससे हर कोई वाकिफ है। यह फिल्म उनके इसी सफर को करीब से और कायदे से दिखाती है।
बायोपिक फिल्मों के साथ अक्सर यह दिक्कत आती है कि वह उस व्यक्ति विशेष की छवि को चमकाने-धोने लगती है जिस पर वह बनी हो। लेकिन यहां मामला उलटा है। यह फिल्म बाल ठाकरे के किए तमाम सही-गलत कामों को बढ़-चढ़ कर दिखाती है और उन्हें जायज ठहराती है। जिस शख्स ने जीवन भर डंके की चोट पर ये काम किए हों, जिसकी इमेज ही इन कामों पर टिकी हो, उन्हें नकार कर भला इस फिल्म को क्या हासिल होता। हां, उन्हें स्वीकार कर इसे बनाने वालों की राह ज़रूर प्रशस्त होगी, यह तय है।
नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी ने ठाकरे के किरदार को बखूबी जिया है। नवाज़ बायोपिक एक्सपर्ट होते जा रहे हैं। हालांकि वह ठाकरे की आवाज़ और बोलने की शैली नहीं पकड़ पाए लेकिन उन्हें देखते हुए लगता है कि उनसे बेहतर इस रोल में कोई दूसरा नहीं हो सकता था। उनकी पत्नी बनी अमृता राव भी प्रभावी रही हैं। काम बाकी सब का भी अच्छा है। निर्देशक अभिजित पानसे के काम में मैच्योरिटी दिखती है। कुछ एक सीन उन्होंने बेहद असरदार बनाए हैं। फ्लैश-बैक में ब्लैक एंड व्हाइट का इस्तेमाल, कैमरा-एंगल, लाइटिंग, सैट्स, बैकग्राउंड म्यूज़िक, संवाद-ये सब इस फिल्म को विश्वसनीय और दर्शनीय बनाते हैं। बस, दिक्कत यही है कि अपने ज़्यादातर हिस्सों में यह फिल्म नहीं बल्कि ठाकरे पर बनी कोई डॉक्यूमेंट्री-सी लगती है। राजनीति में गहरी रूचि रखने वालों को ही यह ज़्यादा भाएगी। और हां, जल्द ही इसका दूसरा भाग भी आएगा, यह फिल्म के अंत में बताया गया है।
अपनी रेटिंग-ढाई स्टार
Release Date-25 January, 2019
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)