-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
इस फिल्म की शूटिंग अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि ऋषि कपूर साहब का देहांत हो गया था। ऐसे में फिल्म वाले या तो उस कलाकार का रोल खत्म कर देते हैं या किसी दूसरे कलाकार को मेकअप करवा कर शूटिंग पूरी कर लेते हैं या फिर दिवंगत कलाकार के पूरे सीन किसी और को लेकर फिर से फिल्माते हैं। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ। ऋषि कपूर वाले किरदार में परेश रावल को ले लिया गया और इसीलिए आधी फिल्म में शर्मा जी के रोल में ऋषि तो आधी में परेश नज़र आते हैं। है न, दिलचस्प प्रयोग? काश, कि फिल्म भी ऐसी ही दिलचस्प हो पाती।
शर्मा जी को उनकी कंपनी ने जबरन रिटायर कर दिया। उनके घर में सिर्फ दो जवान बेटे हैं जो अपनी-अपनी ज़िंदगी में व्यस्त हैं। मोहल्ले के बाकी बुड्ढों की तरह शर्मा जी यहां-वहां टाइम पास नहीं कर पाते और एक दिन किसी किट्टी पार्टी में अपना कुकिंग का हुनर दिखाने चले जाते हैं। यहां से शुरू होता है शर्मा जी का नया नमकीन सफर।
एक वक्त के बाद हमारे घरों में बुजुर्गों को हाशिये पर कर देने और उनके सपनों, शौक, आदतों, इच्छाओं के बारे में जवान लोगों के बेपरवाह हो जाने के विषय को अच्छे से उकेरती इस फिल्म में मुद्दा तो उम्दा उठाया गया लेकिन इस मुद्दे पर हितेश भाटिया और सुप्रतीक सेन कायदे की कहानी ही खड़ी नहीं कर पाए। एक बासीपन, रूखापन पूरी फिल्म में साफ दिखाई देता है। फिर फिल्म की स्क्रिप्ट भी काफी हल्की और फीकी है। बार-बार लगता है कि जो हो रहा है, उसकी बजाय वह क्यों नहीं हो रहा जो ऐसी कहानियों में सहजता से होना चाहिए। घटनाओं और संवादों का प्रवाह ही बेपरवाह हो तो दर्शक उससे जुड़े भी तो कैसे? संवाद तो फिल्म में हैं ही नहीं, बस जिसका जो मन आया, वह बोले जा रहा है। ऋषि कपूर साहब की विदाई ऐसी रूखी फिल्म से तो नहीं ही होनी चाहिए थी। हितेश भाटिया का निर्देशक बेहद हल्का रहा। उन्होंने न तो फिल्म को कसने की कोशिश की, न ही इसके पकने का इंतज़ार, सो यह कच्ची ही रह गई।
एक्टिंग के नाम पर बस ऋषि कपूर का बेहतरीन अभिनय है। परेश रावल ने भी भरपूर भरपाई की है। बाकी जूही चावला, शीबा चड्ढा, परमीत सेठी, सतीश कौशिक, ईशा तलवार, आयशा रज़ा, सुहैल नैयर, सोलंकी दिवाकर आदि-आदि ठीक-ठाक सहयोग कर गए। जब किरदार ही कायदे से न खड़े किए गए हों तो कलाकार भी क्या करें। गीत-संगीत भी फीका ही रहा। दरअसल फीकी तो अमेज़न पर आई यह पूरी फिल्म ही है जिसमें सिर्फ नमक है, वह भी इत्तु सा, इसमें मसाले डालना तो इसे बनाने वाले भूल ही गए।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-31 March, 2022
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
फिल्म देखने का मन था लेकिन आपके रिव्यू से डिसाइड करते हैं ….अब क्या करें 😊😊
Thank you sir for saving money
रिव्यु की रेसिपी में शब्द रूपी मसालों का जिस तरह से प्रयोग किया है, पूरी फिल्म चलती हुई नजर आयी है, चूंकि ऋषि कपूर जी की ये आखरी फ़िल्म है, और उस आखरी पड़ाव में उनका अभिनय देखने का बहुत इक्छुक हूँ, इसीलिए कच्ची ही सही फीकी ही सही फ़िल्म देखने की इच्छा तो है, और फिर जब दोस्त की ID का अमेज़न प्राइम सब्सक्रिप्शन मुफ्त में उपलब्ध है तो क्यों न उसका लुत्फ़ उठाया जाए।
Deepak ji hum toh hamesha hi aapke dwara likha reveiw pad ker hi film dekhne ka nirnay lete hain….. Thanks aapne sach bta diya….