-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
सेना के जवानों और उनके परिवार वालों को हमारी फिल्में अक्सर दिखाती रहती हैं। इस फिल्म की कहानी ज़रा-सा हटके चलती है। फौजी पापा सरहद पर शहीद हो गए लेकिन छोटी बच्ची को सदमा न लगे इसलिए उसे यह नहीं बताया जाता। उसे लगता है कि उसके पापा भगवान के पास गए हैं और भगवान वो सामने वाले जंगल के पार पहाड़ पर रहते हैं। एक दिन वह बच्ची अपने पापा को लाने के लिए भगवान से मिलने चल देती है और…!
कहानी अच्छी है। भावनाओं का ज्वार उमड़ सकता था यदि इसे सलीके से फैलाया जाता। सबसे बड़ी दिक्कत इसकी स्क्रिप्ट के साथ ही है जो आपके दिल के दरवाजे पर दस्तक तो देती है लेकिन बस ठकठका कर रह जाती है और अंदर नहीं पैठ पाती। फिल्म संदेश दे सकती थी कि आपके आसपास किसी शहीद फौजी का परिवार हो तो उनकी देखभाल करें, उन्हें अपनाएं, लेकिन यह संदेश उभर ही नहीं पाता। फिल्म का निर्देशन भी बेहद कमज़ोर है। जब आपका बनाया सब बनावटी लगे, आपके रचे किरदार सजावटी लगें तो मान लेना चाहिए कि आपके करतबों में दमदारी नहीं है। आर्यन सक्सेना को फिल्म लिखने से लेकर बनाने तक की सारी ज़िम्मेदारियां अपने ऊपर नहीं ओढ़नी चाहिए थीं।
यह तो शुक्र है कि फिल्म के कलाकार अच्छे हैं जिन्हें देखना सुहाता है। शरमन जोशी, ज़रीना वहाब अपने कद के मुताबिक असर छोड़ते हैं तो बिदिता बाग अपने किरदार को बखूबी पकड़ती हैं। विक्रम सिंह और ज़रा देर के लिए आए शिशिर शर्मा, मुग्धा गोडसे भी सही लगते हैं। हां, बाज़ी बेशक माही सोनी नाम की उस बच्ची ने मारी है जो ढेर सारे धारावाहिक कर-करके अब एक सधी हुई बाल-अदाकारा हो चुकी हैं। निर्देशक ने इन कलाकारों को और पकाया होता और इन्हें कुछ और दमदार सीन दिए होते तो यह फिल्म वाकई जानदार हो सकती थी।
लोकेशन प्यारी हैं, गीत-संगीत बढ़िया। लेकिन यह फिल्म बहुत हल्की है। ऊपर से इसका न तो सही से प्रचार हुआ, न ही इसे ठीक से रिलीज़ किया गया। जब मीडिया को ही फिल्म के बारे में पता नहीं चलेगा तो आम दर्शकों को तो सपने आने से रहे। पतीला भर हलवा बनाने के बाद बांटते समय की जाने वाली कंजूसी अक्सर आपके किए-धरे पर पानी फेर देती है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-11 March, 2021
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)