-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
‘हेट स्टोरी’ सीरिज़ की फिल्मों की खासियत रही है इनमें नायिका का किसी पुरुष के प्रति हेट यानी नफरत से भरा बदला और साथ ही हॉट अंदाज़। देखा जाए तो इस हेट और हॉट के मिक्सचर के चलते ही युवा वर्ग में इस सीरिज़ की फिल्मों ने अपनी पैठ बनाई है। लेकिन इस तीसरे भाग ‘हेट स्टोरी 3’ में हॉट मसाले हेट की स्टोरी पर हावी होते नजर आए हैं और साथ ही हेट वाली स्टोरी नायिका के हाथ से निकल कर हीरो और विलेन की झोली में चली गई है।
महेश, मुकेश, विक्रम भट्ट के गैंग से जो भी माल आता है, उसे चाहे कोई बनाए, कोई परोसे, कुछ खास फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह देखने-चखने में एक-सा ही लगता है। इस फिल्म को विक्रम भट्ट ने लिखा है और जो कहानी है वह हिन्दी फिल्मों में पचासों दफा देखी जा चुकी है। हां, कहानी का जो सस्पैंस है, उसे वह ज़रूर अंत तक कायम रख पाए हैं लेकिन इससे रोचकता कम और खीज ज्यादा होती है।
शरमन जोशी अपनी कॉमिक इमेज से हट कर कुछ करने के लिए बेचैन तो दिख रहे हैं लेकिन आक्रामक दृश्यों में वह बेबस हो जाते हैं। करण सिंह ग्रोवर निगेटिव रोल में जंचते हैं। ज़रीन खान और डेज़ी शाह को हॉट मसाले परोसने के लिए रखा गया था और वह काम इन्होंने बखूबी किया भी। बल्कि ज़रीन और करण के एक गाने को देख कर तो लगता है कि सैंसर बोर्ड को क्या सिर्फ जेम्स बॉण्ड ही संस्कारी बनाना आता है। अगर यह सब पास ही करना है तो क्यों नहीं वह खुद ही संन्यास ले लेता?
परिवार के साथ इस तरह की फिल्में नहीं देखी जातीं। वैसे भी यह फिल्म सिर्फ उन्हीं के स्वाद की है जिन्हें पर्दे पर अच्छी कहानी से नहीं बल्कि ‘नैनसुख’ देने वाले दृश्यों से मतलब होता है।
अपनी रेटिंग-दो स्टार
Release Date-04 December, 2015
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर छपा था)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)