-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
यह फिल्म शुरू होते ही पता चल जाता है कि इसे ओ.टी.टी. के लिए तो बिल्कुल भी नहीं बनाया गया था। लेकिन यह सिनेमाघरों में क्यों नहीं आई, यह इसे पूरी देखने के बाद पता चलता है। जिस फिल्म में न दम हो न खम और वह सिर्फ उम्दा होने का भ्रम फैलाने आई हो, उसके साथ ऐसा तो होना ही था।
ज़ी-5 ने इधर उम्दा विषयों और अच्छे कंटैंट वाली कई फिल्में दर्शकों को दी हैं। लेकिन लगता है इस बार ज़ी-5 वाले अनुराग कश्यप के नाम के झांसे में आ गए वरना वे लोग इस फिल्म को हाथ न लगाते।
अरे, कहानी तो रह ही गई। हां तो कहानी कुछ इस प्रकार है (जो कि लगभग आधी फिल्म बीत जाने के बाद पल्ले पड़ती है) कि दिल्ली के करीब नोएडा (उत्तर प्रदेश) का एक मंत्री है जो बातें तो ऊंची-ऊंची करता है लेकिन है बहुत ही नीच किस्म का इंसान। लावारिस लाशों को गला कर उनकी हड्डियों को विदेशों में सप्लाई करना भी उसका एक धंधा है। हिजड़ों के एक पूरे घराने को वह सिर्फ इसलिए मार देता है क्योंकि वे लोग अपनी ज़मीन इसके नाम नहीं कर रहे थे। तब उनमें से बच गई हिजड़ा हरिका (नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी) हड्डी नाम से उसके करीब पहुंचती/पहुंचता है ताकि उसका सफाया कर सके। लेकिन किसी राक्षस को मारना इतना आसान कहां होता है।
अब यह कहानी पढ़ने में जितनी सीधी है, पर्दे पर इसे उतने ही उलटे तरीके से दिखाया गया है। इसे फ्लैश बैक में दिखाया जाना इसे उलझाता है।
अदम्य भल्ला और अक्षत अजय शर्मा की लिखाई की खासियत यह कही जा सकती है कि एक लंबे अर्से बाद एक ऐसी कहानी पर्दे पर आई है जिसमें मुख्य पात्र हिजड़ा है और उसके इर्दगिर्द के ढेरों पात्र हिजड़े या ट्रांस्जैंडर। फिल्म इन लोगों की ज़िंदगी की सच्चाइयों को, कड़वाहटों को, इनकी भावनाओं को, इनकी मजबूरियों को और इनके गलत धंधों में पड़ने की बेबसी को खुल कर दिखाती है। लेकिन इसी लिखाई में काफी सारी कमियां भी हैं। पहले तो काफी देर तक यही साफ नहीं हो पाता कि पर्दे पर हो क्या रहा है। और जब पता चलता है तो लगता है कि अभी कुछ बड़ा होगा, नेता का सफाया होगा लेकिन यहां आकर फिल्म पिलपिली बन जाती है। और अंत ऐसा ‘फिल्मी’ दिखाया गया है कि लगता है कि अगर यही करना था तो इतना सब क्यों किया। आखिर में यह भी मलाल रह जाता है कि यह फिल्म आखिर कहती क्या है? नेता द्वारा हिजड़ों की ज़मीन कब्जाने वाला प्वाईंट बहुत कमज़ोर और अतार्किक है। लेखन में नेता द्वारा नोएडा के बनने की कहानी कहते हुए इंदिरा गांधी और संजय गांधी पर भी तंज कसा गया है। बात-बात में अपनों को भी गोली मारने से पीछे न रहने वाला नेता और उसके ढेरों चमचे क्लाइमैक्स में हाथ-पांव से क्यों लड़ रहे थे, यह सीन फिल्म लिखने वालों के दिमागी दिवालिएपन को दिखाता है।
इस फिल्म को खड़ा करने में अनुराग कश्यप का बड़ा हाथ रहा है। निर्देशक अक्षत अजय शर्मा का काम बुरा नहीं हैं लेकिन उनकी शैली में पूरी तरह से अनुराग ही छाए रहे हैं। अंधेरे का जम कर इस्तेमाल, रंग-बिरंगी लाइट्स, फुसफुसाते हुए बोले गए कई संवादों का कान के साइड से निकल जाना, हर इंसान निगेटिव, हर बात कड़वी। अक्षत को समझना होगा कि अपनी खुद की शैली विकसित करने वाले निर्देशक ही सफल और अनुकरणीय माने जाते हैं। रोहन प्रधान और रोहन गोखले के संगीत को अच्छा कहा जा सकता है। रोहन गोखले के कुछ गीत भी अच्छे लिखे। खासकर रेखा भारद्वाज के गाए ‘बेपर्दा…’ में जान है। कई गीतों पर भी अनुराग कश्यप की छाया बेवजह दिखाई दी।
नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी ने एक हिजड़े के रोल में सचमुच तारीफ के काबिल काम किया है। कह सकते हैं कि अब तक का सर्वश्रेष्ठ। अनुराग कश्यप तो जैसे खुद को ही जीते दिखाई दिए। सौरभ सचदेवा, राजेश कुमार, इला अरुण, विपिन शर्मा आदि, सहर्ष शुक्ला ने भी अपनी भूमिकाओं को जम कर निभाया। मौहम्मद ज़ीशान अय्यूब बहुत हल्के रहे।
यह फिल्म कुछ देती, कहती, बताती, जताती तो भी इसे देखने की सिफारिश की जा सकती थी। लेकिन यह एक ऐसे कंकाल की मानिंद बन कर रह गई है जिसमें हड्डियां तो हैं, मांस और मज्जा नहीं।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-07 September, 2023 on ZEE5
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
जबरदस्त टाइटल….
सिद्दीकी साहब तो लाजवाब है… लेकिन कहानी नई नहीं… पुरानी ही है जैसे कि साउथ की फ़िल्म का रीमेक हो (नाम याद नहीं आ रहा)… बस बिरादरियां बदल दी गयी है…
रिव्यु लिखा अच्छा लिखा गया है…
धन्यवाद